विश्व तंबाकू निषेध दिवस: गुटखे के बिक्री पर रोक के बावजूद ओरल कैंसर के मामले में भोपाल दूसरे स्थान पर

Oral Cancer in Bhopal: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तंबाकू उत्पादों में बैन के बाद भी खपत में कमी नहीं हुई है. जिसके चलते कैंसर के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओरल कैंसर के मामले में भोपाल देशभर में दूसरे स्थान पर है.

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World No Tobacco Day 2024: आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस (No Tobacco Day) है. यह दिन तंबाकू के उपयोग को रोकने और तंबाकू उत्पादों को बढ़ावा न देने के लिए मनाया जाता है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) समेत कई राज्यों में तंबाकू, गुटखा और पान मसाला जैसी चीजें बेचना निषेध है, इसके बावजूद गुटखा, पान मसाला, खैनी का सेवन करने से ओरल कैंसर मरीजों की संख्या देश में दूसरे नंबर पर है. बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार (MP Government) ने 1 अप्रैल, 2012 में ही पाउच वाले गुटखा की बिक्री पर रोक लगा दी है, इसके बावजूद प्रदेश में कैंसर मरीजों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है.

मध्य प्रदेश में सरकार की आय और कैंसर मरीजों के आंकड़े गुटखे की बिक्री की जमीनी हकीकत बयां करते हैं. बता दें कि प्रदेश सरकार को तंबाकू उत्पादों से सालाना करीब 4 हजार करोड़ का फायदा होता है. यह रकम सरकार टैक्स के रूप में कमाती है.

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ICMR की रिपोर्ट में भोपाल दूसरे नंबर पर

आईसीएमआर की नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार भोपाल मुंह के कैंसर के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है. यहां एक लाख में से 16 लोग मुंह के कैंसर से और 8 लोग जीभ के कैंसर से पीड़ित हैं. वहीं इस कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए भोपाल में करीब 50 करोड़ रुपए सालाना खर्च हो रहे हैं. एम्स के एडिशनल प्रोफेसर, ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन डॉ. अंशुल राय ने बताया कि तंबाकू सेवन करने वाले लोगों में 50% को सब म्यूकस फाइब्रोसिस की समस्या हो रही है. यह आगे चलकर ओरल कैंसर में कन्वर्ट होता है.

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तंबाखू उत्पादों में इतना लगता है टैक्स

मध्य प्रदेश में गुटखे के पाउच पर रोक लगने के बाद कंपनियां पान मसाला और तंबाकू के पाउच अलग-अलग बेचने लगीं. जीएसटी एक्सपर्ट मुकुल शर्मा के मुताबिक, तंबाकू और सिगरेट पर टैक्स से मध्य प्रदेश सरकार को हर साल 4000 करोड़ रुपए तक की कमाई होती है. मध्य प्रदेश में तंबाकू उत्पादों और पान मसाला पर 28% टैक्स लगता है. जबकि सेस 11 से लेकर 270% तक लगता है. वहीं तंबाकू की पत्तियों पर 5% टैक्स लगता है.

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भोपाल में 10 लाख रुपये के गुटखे की खपत

आंकड़ों की मानें तो राजधानी भोपाल में हर रोज करीब 10 लाख रुपये के पान मसाले की खपत है. इसके अलावा बीड़ी और सिगरेट जैसे तंबाकू उत्पादों की खपत का आंकड़ा भी है. राजधानी भोपाल में आने वाले गुटखे का उत्पादन मुख्य रूप से कानपुर में होता है, यहां से इंदौर तक खेप पहुंचाई जाती है. इसके बाद भोपाल में गुटखे का पाउच तैयार किया जाता है.

भोपाल में कैंसर के मरीज बढ़ने की ये है दर

बता दें कि राजधानी भोपाल में मुंह के कैंसर के मरीज हर साल करीब 3.8 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं. इस हिसाब से अगर देखें तो शहर की 30 लाख आबादी में औसतन 500 ओरल कैंसर के मरीज हैं. आयुष्मान के 5 लाख रुपये के इलाज की दर से जोड़ें तो लगभग सालभर में 25 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. वहीं अगर दवाइयों का खर्च जोड़ें तो 50 करोड़ रुपये का खर्च होता है.

तंबाकू छोड़ने ने कम हो जाती कैंसर की संभावना

आपको बता दें कि तंबाकू खाने से हार्ट की कोरोनरी आर्टरी सिकुड़ती है. आर्टरी में कोलेस्ट्रॉल की प्लेट बन जाती है, जो खून की सप्लाई में रुकावट पैदा करती है. इससे व्यक्ति को हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर और लकवा की समस्या हो सकती है. तंबाकू सेवन से कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, जबकि तंबाकू सेवन छोड़ने से कैंसर होने की संभावना 50% तक कम हो जाती है.

तंबाकू सेवन से इंसान को कई तरह की घातक बीमारियां होती हैं. जिनमें हृदय रोग, डायबिटीज, ओरल इन्फेक्शन, बैक्टीरियल निमोनिया और मुंह का कैंसर प्रमुख है. कुछ मामलों में ओरल हेल्थ के बिगड़ने से ऑस्टियोपोरोसिस और एचआईवी एड्स ऐसी बीमारियों का रिस्क भी हो सकता है. वहीं सिगरेट पीने वालों को अंगुलियों में गैंगरीन हो सकता है.

पान मसाले में होते हैं 28 तरह के ये घातक केमिकल्स

बता दें कि केंद्र सरकार ने फरवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट को गुटखा के बारे में रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए गुटखा और पान मसाला के 3095 सैंपल लिए गए. जिनमें 28 तरह के ऐसे केमिकल्स पाए गए, जिनसे कैंसर हो सकता है. इसके अलावा इन सैंपलों में सीसे और तांबे जैसे कई हैवी मेटल्स (भारी धातु) भी पाए गए. जानकारी के लिए बता दें कि सीसा नर्वस सिस्टम, जबकि तांबा जीन्स पर भी बुरा प्रभाव डालता है. इस रिपोर्ट को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर (NIHFW) ने 2003 और 2010 के बीच देशभर में कई लैब टेस्ट करने के बाद तैयार किया था.

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