World Heritage: लुप्त होने की कगार पर हैं 15000 वर्ष पुराने नीमच के वर्ल्ड हैरिटेज शैल चित्र, कब जागेगी सरकार?

Neemach Rock Paintings: NDTV इंडिया पहला निजी टीवी चैनल है, जो डीकेन कस्बे में मौजूद शैल चित्र तक पहुंचा है और इस बर्बाद होती विश्व धरोहर को पहचान दिलाने और संरक्षित करने के लिए आवाज उठा रहा है. खास बात यह है की इतनी बड़ी शैल चित्रों की श्रृंखला जिले में मौजूद होने की जानकारी चंद लोगों को ही है. 

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World Heritage of neemach in verge of extinction

World Heritage Neemach: मध्य प्रदेश का नीमच जिला अपनी अलग पहचान के लिए विख्यात है. यह नीमच ही है, जहां सबसे पहले 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई थी. यहां पुरातत्व महत्व वाले डीकेन कस्बे में मौजूद 15000 वर्ष पुराने शैल चित्र सरंक्षण के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, लेकिन महान पुरातत्व विद विष्णु श्रीधर वाकणकर की जन्मभूमि होने के बावजूद उनके बाद किसी ने इस और ध्यान नहीं दिया है.

सीआरपीएफ की जन्मभूमि, मालवा की वैष्णो देवी भादवा माता और ऐतिहासिक व पुरातत्व महत्व के स्थल के रूप में नीमच काफी विख्यात है. प्रसिद्ध पुरातत्वविद विष्णु श्रीधर वाकणकर की जन्मभूमि रही नीमच में बड़ी संख्या में विश्व धरोहर हैं. इनमें शैल चित्र प्रमुख है.

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डीकेन कस्बे के जंगल में मौजूद हैं आदिमानव काल की शैल चित्रों की कई गैलरी

नीमच जिले की जावद तहसील के डीकेन कस्बे के पास स्थित जंगल में आदिमानव काल की शैल चित्रों की कई गैलरीज आज भी मौजूद है, जिसमें हजारों छोटे-बड़े चित्र तत्कालीन सभ्यता और संस्कृति को दर्शाते है. कस्बे के पूर्व में मच्छी नदी के किनारों पर स्थित गुफानुमा खोह में विशाल चट्टानों पर आदिमानव द्वारा बनाए गए हजारों चित्र आज भी मौजूद है.

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डीकेन के पश्चिम में बहती बावड़ी गांव में मौजूद हैं पुरातात्विक महत्व का 'आधारशिला'

डीकेन के पश्चिम में करीब 12 किलोमीटर दूर बहती बावड़ी गांव के करीब एक आधारशिला मौजूद है. एक विशाल चट्टान एक छोटे से पत्थर पर टिकी होने के कारण इस स्थान का नाम आधारशिला पड़ा है. यहां नदी के किनारों पर गुफानुमा जगह पर मौजूद विशाल चट्टानों पर आदिमानव काल की अलग-अलग स्थान पर कई  चित्रों की गैलरीज मौजूद हैं. 

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डीन कस्बे में स्थित मच्छी खोह नदी में बना एक प्राकृतिक आकार ऊंचाई से मच्छी की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसे मछली खोह कहा जाता है. वर्तमान में यह स्थल वर्षाकाल में पर्यटन प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र हैं, लेकिन वह भी इसके इतिहास से अज्ञान हैं.

डीकेन कस्बे के पूर्व और पश्चिम नदी में हैं पुरपाषण काल और सनातन संस्कृति के चिन्ह 

डीकेन कस्बे के पूर्व और पश्चिम दोनो ही जगह बने चित्र आदिमानव काल की सभ्यता, संस्कृति, क्रियाकलापों, जीवन शैली, आहार, खेल, क्षेत्र में मोजूद वन्य जीवों के बारे बताते है. इसके विस्तृत अध्ययन से आदिमानव काल के गई गूढ़ रहस्य खुल सकते है. खास बात यह है कि इन चित्रों में त्रिशूल, स्वस्तिक जैसे कई ऐसे चिन्ह मौजूद है, जो भारत ही नहीं, विश्व की प्राचीन सनातन संस्कृति से जुड़े हुए प्रतीक है. इसकी सनातन संस्कृति के अति प्राचीन होने का प्रमाण है.

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आदिमानव द्वारा निर्मित चित्रों में हाथी की सवारी और चौरस के खेल की हैं कृतियां

यहां आदिमानव द्वारा बनाए गए चित्रों में हाथी की सवारी करते मानव, तीर कमान भाले आदि हथियारों से शिकार करते मानव, हिरन, जंगली सुअर, हाथी, खरगोश, कैट प्रजाति के हिसंक जानवर, मगरमच्छ, चौरस के खेल आदि आकृतियां बनी हुई है. इससे यह पता चलता है कि आदिमानव शिकार के लिए इस तरह के हथियार का प्रयोग करते थे. साथ ही, हाथी के चित्र क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी, उनके वाहन के रूप मे उपयोग करने की प्रामाणित करते है.

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समय की मार, संरक्षण के अभाव, लोगों की अनभिज्ञता, शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते अब ये शैल चित्र अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं. समय के साथ इनकी चमक फीकी होती जा रही है, इन चित्रों को देखने के लिए चट्टानों को गीला करना पड़ता है तब ये चित्र स्पष्ट दिखाई देते है.

डीकेन कस्बे की बेशकीमती वैश्विक धरोहर को संजोने और संरक्षित करने की है जरूरत

विश्व धरोहर में शुमार नीमच जिले के जावद तहसील के डीकेन कस्बे की बेशकीमती धरोहर को संजोने, संरक्षित करने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियां आदिकालीन सभ्यता के बारे में जान सके. इसके साथ ही, इन स्थानों को पहचान दिलाने की भी जरूरत है, ताकि पर्यटन और खोज में रुचि रखने वाले युवा, स्कूली बच्चे लोग यहां आए और देखें. निश्चित तौर पर यदि इन्हे पहचान मिलती है, तो क्षेत्र में पर्यटन बढ़ेगा औऱ रोजगार की नई सम्भवनाए भी निर्मित होगी.

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डीकेन कस्बे में मानव की मौजूदगी इनका अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है. यहां जंगल में मवेशी चराने आने वाले लोग इनका महत्व नहीं जानते, इसलिए इन खोह में आकर खाना बनाते है, धुंआ करते है. इतना ही नहीं, कुछ जगह तो चित्रों को पत्थर से खुरचने के भी निशान मिलते है.

बर्बाद होते नीमच के विश्व धरोहर को पहचानने वाला पहला चैनल बना एनडीटीवी 

NDTV इंडिया पहला निजी टीवी चैनल है, जो डीकेन कस्बे में मौजूद शैल चित्र तक पहुंचा है और इस बर्बाद होती विश्व धरोहर को पहचान दिलाने और संरक्षित करने के लिए आवाज उठा रहा है. खास बात यह है कि इतनी बड़ी शैल चित्रों की श्रृंखला जिले में मौजूद होने की जानकारी चंद लोगों को ही है. महान पुरातत्व विद स्वर्गीय विष्णु श्रीधर वाकणकर ने अपने जीवनकाल मे कई योग्य शिष्यों को तैयार किया. उन्होंने जिले के इतिहास को सहजने मे अपनी भूमिका निभाई.

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