World Day for Cultural Diversity in MP: कहा जाता है “भारत गांवों में बसता है”, इसलिए विश्व के पर्यटकों को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की समृद्ध संस्कृति से अवगत कराने के लिए मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड (MP Tourism Board) द्वारा होम स्टे की अवधारणा को साकार किया गया है. इसमें पर्यटक प्रकृति की गोद में शांति के अनुभव के साथ वहां की परंपराओं, रीति–रिवाजों, त्यौहारों, कलाओं और खान–पान का आनंद ले रहे हैं. मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान यहां की परंपराओं, लोक कलाओं और विविध बोलियों में रची-बसी हुई है. यहां संस्कृति केवल संग्रहालयों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन का हिस्सा भी है, जो हर उत्सव, हर गीत और हर रंग में झलकती है.
गांव जैसा महसूस कराता है एमपी का होम स्टे
मध्य प्रदेश के छह अनूठे सांस्कृतिक क्षेत्रों–बुंदेलखंड, बघेलखंड, महाकौशल, निमाड़, मालवा और चंबल के 120 से अधिक गांवों में 200 से अधिक होम स्टे का निर्माण कराया गया है, जहां आधुनिक सुविधाओं के साथ ग्रामीण परिवेश की सुखद अनुभूति पर्यटकों को हो रही है.
एमपी की संस्कृति जीवंत परंपरा - शिव शेखर शुक्ला
प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति तथा प्रबंध संचालक, मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला ने कहा, मध्यप्रदेश की संस्कृति केवल कलाओं का संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है, जो हर गांव, हर त्योहार और हर गीत में धड़कती है. विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोने और उसका सम्मान करने का अवसर देता है. मध्य प्रदेश की छह सांस्कृतिक क्षेत्रों की विविधता के बावजूद हम एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं. हम वैश्विक मंच पर समृद्ध संस्कृति को पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं.
गांव जैसा महसूस कराता है एमपी का होम स्टे
समृद्ध है एमपी की लोक संस्कृति
मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक क्षेत्रों के अनुसार, यहां बघेली, बुंदेली, मालवी, निमाड़ी और गोंडी लोक भाषाएं हैं. प्रसिद्ध भगोरिया के साथ–साथ सैलेया, करमा, तेरहवी, जैसे नृत्य परंपराओं को प्रदर्शित करते हैं. विश्व प्रसिद्ध खजुराहो नृत्य महोत्सव, विश्व रंग, लोकरंग जैसे सांस्कृतिक उत्सव कला को वैश्विक मंच प्रदान करते हैं. वहीं, गोंड चित्रकला और भील कला पीढ़ी दर पीढ़ी इन जनजातियों को विरासत में मिली है. ध्रुपद गायन और वीणा वादन शास्त्रीय परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं.
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इन क्षेत्रों के गांवों में संचालित हैं होम स्टे
मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक क्षेत्र चंबल में लगभग 7 गांवों, मालवा में 22, निमाड़ में 17, महाकौशल में 37, बुंदेलखंड में 19 और बघेलखंड के 19 और बघेलखंड के 19 गांवों में होम स्टे का संचालन किया जा रहा है.
कहां क्या खास है? सांस्कृतिक क्षेत्र और उनकी विशेषताएं
बुंदेलखंड, वीरता और कला का संगम : बुंदेलखंड, अपनी वीर गाथाओं और ऐतिहासिक किलों के लिए प्रसिद्ध, बुंदेली भाषा और लोक कथाओं का केंद्र है. यहां का दीपावली उत्सव और बूंदी के लड्डुओं की मिठास पर्यटकों को आकर्षित करती है. विश्व प्रसिद्ध खजुराहो नृत्य महोत्सव, सांस्कृतिक उत्सव का अनूठा प्रदर्शन है. वहीं भूरा रोटी, कोदो-कुटकी पुलाव, बैंगन का भरता, महुआ के लड्डू आदि बुंदेलखंड के पाककला कौशल का एक सच्चा प्रमाण है.
बघेलखंड, प्रकृति और संस्कृति का मेल : रीवा और सतना जैसे क्षेत्रों में बसे बघेलखंड में बघेली भाषा और आदिवासी परंपराएं जीवंत हैं. यहां का मडई उत्सव, जिसमें आदिवासी समुदाय अपनी कला और नृत्य का प्रदर्शन करते हैं और सामुदायिक एकता को प्रदर्शित करते हैं. बघेलखंड की गोंड और कोल जनजातियां अपनी अनूठी चित्रकला और लोक संगीत से सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देती हैं. डुबकी वाले आलू, कढ़ी-चावल, सत्तू पराठा, तिलकुट, ठेकुआ आदि का स्वाद यहां की पाककला की परंपरा को दर्शाते हैं.
महाकौशल, इतिहास और आध्यात्मिकता का केंद्र : जबलपुर और आसपास के क्षेत्रों में फैला महाकौशल, अपनी हिंदी और छत्तीसगढ़ी प्रभाव वाली बोली के साथ जाना जाता है. त्रिपुरी नृत्य और दशहरा उत्सव यहां की सांस्कृतिक पहचान हैं. नर्मदा जयंती जैसे त्योहार इस क्षेत्र की आध्यात्मिकता और पर्यावरण के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं. यहां स्वीटकॉर्न वड़ा, पोहा जलेबी, कोदो कुटकी की खीर, सिक्या खीर आदि पारंपरिक व्यंजनों के रूप में परोसे जाते हैं.
निमाड़, रंग-बिरंगे उत्सवों का गढ़ : निमाड़, अपनी निमाड़ी बोली और जीवंत लोक संस्कृति के लिए जाना जाता है, भगोरिया हाट उत्सव का घर है. यह उत्सव, जिसमें युवा अपने जीवनसाथी चुनते हैं, संगीत, नृत्य और रंगों का अनूठा संगम है. भील और भिलाला जनजातियों की पारंपरिक कला और शिल्प इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को और समृद्ध करते हैं. बाफला रोटी और दाल, चक्की की शाक, भरता, मालपुआ, खोपरापाक, दाल पानीये यहां के प्रसद्ध व्यंजन व पकवान हैं.
मालवा, साहित्य और संगीत का स्वर्ग : उज्जैन और इंदौर जैसे शहरों वाला मालवा, मालवी भाषा और साहित्यिक परंपराओं का केंद्र है. यहां का तानसेन संगीत समारोह और रंगपंचमी उत्सव सांस्कृतिक जीवंतता को दर्शाते हैं. मालवा की लोक कथाएं और भक्ति संगीत इस क्षेत्र को एक अनूठा सांस्कृतिक स्वरूप प्रदान करते हैं. पोहा-जलेबी, भुट्टे का कीस, दाल बाफला, सेव टमाटर की सब्जी, इंदौरी चाट और नमकीन मध्य प्रदेश आने वाले हर पर्यटक की पहली पसंद होते हैं.
चंबल, वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत का क्षेत्र : चंबल में कला, वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत की समृद्ध परंपरा यहां देखने को मिलती है. चंबल में चंबली बोली और लोक नृत्य प्रसिद्ध हैं. बेड़ई आलू, बेसन की रोटी और लहसुन की चटनी, गोंद के लड्डू यहां के पांरपरिक पाककला को प्रदर्शित करते हैं.
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