Flood in Shipra: बारिश थम गई है, लेकिन शिप्रा किनारे बर्बादी की जो तस्वीर उभर रही है, वो किसी के भी दिल को चीर दे. कल तक जो घाट श्रद्धालुओं की आस्था से गूंजते थे, आज वही घाट कीचड़ और मलबे से सराबोर हैं. मंदिरों के आंगन में जहां सुबह-सुबह घंटियां बजा करती थीं, वहां अब पानी के उतरने के बाद चुप्पी और टूटी मूर्तियों की कराह सुनाई दे रही है. गुरुवार रात हुई मूसलाधार बारिश ने शहर का नक्शा ही बदल दिया. शिप्रा नदी उफान पर आई, घाटों पर खड़े मंदिर जलमग्न हो गए, और नदी खतरे के निशान तक पहुंच गई. ऋणमुक्तेश्वर महादेव मंदिर की गौशाला पूरी तरह उजड़ गई. दीवारें ध्वस्त, शेड टूटे हुए और मवेशियों का सामान पानी में बह गया. महंत पीर महावीर नाथ की आंखों में नमी थी, जब उन्होंने कहा- “पानी उतर गया, लेकिन हमारी गोशाला भी बहा ले गया.”
शिप्रा का पानी तो उतर गया लेकिन अपने पीछे भारी मलबा और गाद छोड़ गया.
कीचड़ और खामोशी: घाटों का बदला मंजर
नदी उतरने के बाद घाटों पर जो मंजर दिखा, वो किसी फिल्मी दृश्य से कम नहीं. हर ओर कीचड़ फैला हुआ है, दुकानों के टूटे तख्ते और बिखरे सामान गवाही दे रहे हैं कि लहरें कितनी बेरहम थीं. घाटों पर बैठे पुजारी अब आरती नहीं गा रहे, बल्कि अपने मंदिरों से कीचड़ हटाकर टूटी मूर्तियों को समेट रहे हैं. दुकानदार, जो कल तक श्रद्धालुओं को फूल और प्रसाद बेचकर अपने बच्चों का पेट पालते थे, आज खाली हाथ खड़े हैं. उनकी आंखों में सिर्फ एक सवाल है—“कल फिर से रोज़गार कहां से आएगा?”
रोज़गार डूब गया, उम्मीदें टूट गईं
नगर निगम और फायर ब्रिगेड की दमकलें लगातार घाटों और गलियों की सफाई में जुटी हैं. इंजन की घर्र-घर्र आवाज़ और पानी की तेज़ धारें कीचड़ को हटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन लोगों के दिलों पर जमा उदासी का कीचड़ कौन धोएगा ? एक स्थानीय पुजारी लक्ष्मणदास ने टूटी मूर्ति को उठाते हुए कहा- “देवी-देवता भी कीचड़ में दब गए, अब हमें ही उन्हें फिर से घर लौटाना है.” वहीं दुकान लगाने वाले सुरेश ने टूटे तख्ते समेटते हुए बस इतना कहा- “ये मलबा सिर्फ दुकान का नहीं, हमारी रोज़ी-रोटी का है.”
उज्जैन की आत्मा शिप्रा की पुकार
शिप्रा नदी सिर्फ पानी की धारा नहीं, उज्जैन की आत्मा है. इसी नदी के तट पर महाकाल की आरती की गूंज सुनाई देती है, साधु-संत तप करते हैं और लाखों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाते हैं. वही नदी आज लोगों की उम्मीदें बहाकर ले गई है. बारिश थम गई है, लेकिन जो बर्बादी पीछे छूट गई, उसने हर किसी की आस्था को हिला दिया है. पानी उतरने के बाद घाटों पर खामोशी पसरी है, मानो शिप्रा खुद शोक मना रही हो. सवाल बस इतना है—क्या ये जख्म सिर्फ समय से भर पाएंगे या उज्जैन की आत्मा को फिर से संजीवनी देने के लिए हमें और इंतजार करना होगा?
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