Water Crisis In MP : पानी की असली कीमत तब समझ आती है, जब प्यास लगती है. और जरूरत पर पानी न मिले.. तब हर एक बूंद हर एक व्यक्ति के लिए काफी मायने रखती है. मध्य प्रदेश में इन दिनों गर्मी का मौसम है. लोग तेज धूप में सब तप रहे हैं. जंगल, जमीन और जीव भी इससे प्रभावित हैं. वहीं, इंसानों के सामने भी 'जल संकट' खड़ा हो गया है. विदिशा के करियाखेड़ा और टीलाखेड़ी इलाकों में आज भी लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए नगर पालिका के टैंकरों पर निर्भर हैं. पानी की लगी लंबी लाइन सरकारी दावों और वादों की पोल खोल रही है. खास बात ये है कि यह क्षेत्र केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है.
"हर घर नल, हर नल में जल", 'जल जीवन मिशन' और 'जल अभिषेक मिशन' जैसी कई योजनाएं कारगर साबित नहीं हो रही हैं. ये योजनाएं कागजों में तो हैं, लेकिन इनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. शायद इसी लिए यहां पानी की एक बूंद के लिए भी जंग जारी है.
विदिशा की सूखी उम्मीदें
विदिशा के करियाखेड़ा और टीलाखेड़ी इलाकों में आज भी लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए नगर पालिका के टैंकरों पर निर्भर हैं. पानी के टैंकर का लोग घंटो इंतजार करते हैं. गर्मी में जब तापमान 40 डिग्री के पार होता है, तब लोग अपने खाली केन और बाल्टियां लेकर सड़कों पर खड़े होते हैं. जैसे ही टैंकर इलाके में पहुंचता है, एक भगदड़ जैसी स्थिति बन जाती है.
बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग-सभी दौड़ पड़ते हैं.कुछ को दो केन पानी नसीब हो जाता है, तो कुछ खाली हाथ लौटते हैं.
एक रहवासी महिला ने बताया कि तीन दिन में एक बार पानी आता है, वो भी मुश्किल से दो कैन भरने की इजाजत मिलती है.
पूरे परिवार का गुजारा कैसे हो? बच्चे स्कूल छोड़कर पानी भरने के लिए लाइन में लगने को मजबूर हैं. जहां एक तरफ देश शिक्षा के अधिकार की बात करता है, वहीं विदिशा में मासूम बच्चे खाली बाल्टी लिए टैंकर का इंतजार करते दिखते हैं.
टपकते टैंकर, बहता पानी
जिन टैंकरों से पानी पहुंचाया जा रहा है, उनकी हालत भी खस्ता है.जर्जर टैंकरों से रास्ते भर पानी टपकते-टपकते खत्म हो जाता है.नतीजा इलाकों में पानी की जरूरत वैसे की वैसे बनी रहती है.
नगर पालिका की दलील
विदिशा नगर पालिका के मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) दुर्गेश ठाकुर ने पानी संकट को लेकर सफाई दी. कहा, "हम रोजाना 80 फेरे लगा रहे हैं टैंकरों के. कोशिश है कि हर जरूरतमंद इलाके तक पानी पहुंचे."
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कागजों में पूरा, ज़मीन पर अधूरा
सरकारी रिकॉर्ड में भले ही नल जल योजनाएं सफल दिख रही हों. लेकिन विदिशा के करियाखेड़ा और टीलाखेड़ी जैसे इलाकों में आज भी प्यास का संघर्ष हर दिन की सच्चाई है.
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