Banur Gram Panchayat: बानूर ग्राम पंचायत बैतूल जिले में एक ऐसा गांव है, जहां आजादी के 78 साल बाद भी बिजली नहीं पहुंची है. यही कारण है कि गांव वालों को महाराष्ट्र के सीमावर्ती गांवों में मूलभूत सुविधाओ के लिए जाना पड़ता है. गांववालों को बच्चों को पढ़ाने के लिए भी सरहद का मुंह देखना पड़ता है. यहां तक गेहूं पिसाने के लिए ग्रामीणों को सरहद पार महाराष्ट्र के गांवों में जाना पड़ता है.
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आजादी के 78 साल बाद भी उन्होंने अब तक गांव में बिजली नहीं देखी
आजादी के 78 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद को मजबूर बानूर ग्राम पंचायत के ग्रामीण सोमवार को कलेक्ट्रेट पहुंचे और मांगों को लेकर प्रदर्शन किया. ग्रामीणों का कहना था कि आजादी के 78 साल बाद भी उन्होंने अब तक गांव में बिजली नहीं देखी है. उन्होंने कहा कि उनके बच्चों को स्कूल जाने के लिए सरहद पार करना पड़ता है.
तीन पीढ़ियां अभावों मे गुज़र गई, लेकिन गांव में नहीं आई बिजली
भैंसदेही ब्लॉक की बानूर पंचायत ग्राम आदिवासी ग्रामीण बताते है कि उनकी तीन पीढ़ियां अभावों मे गुज़र गई, लेकिन गांव में बिजली नहीं है. उनका कहना है कि, न हमने बिजली देखी है और न कभी स्कूल गए और उनके बच्चे भी शिक्षा से वंचित है. ग्रामीणों ने बताया गांव में बिजली नहीं होने से आज भी वो साल में एक फसल लेते हैं.
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चुनाव में नेता वोट मांगने गांव आते हैं, फिर पलटकर नहीं देखते
अपनी शिकायतों को लेकर कई बार चुनाव का बहिष्कार कर चुके ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय नेता वोट मांगने गांव आते हैं, लेकिर फिर पलटकर गांव की ओर नहीं आते है. उनके बच्चे शाम को घर से बाहर नही निकालते, क्योंकि जंगली जानवर हमला कर देते हैं, क्योंकि सरकार और महकमा की नजर गांव की ओर ध्यान नहीं देते हैं.
आदिवासी बहुल ग्रामीणों को जाना पड़ता है महाराष्ट्र के गांव
आदिवासी हितों के लिए काम करने वाले मध्य प्रदेश आदिवासी संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि गांववालों ने अपनी मांगों की शिकायत लेकर जिला कलेक्ट्रेट पहुचे, लेकिन एक बार फिर आदिवासियों को तसल्ली देकर लौटा दिया गया है. प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि जल्द बानूर गांव में मूलभूत सुविधाओ के लिए बड़ा कदम उठाया जाएगा.
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