MP: अनोखी परंपरा! मन्नत मांगने वालों को रौंदते हुए निकला गायों का झुंड,फिर हुआ ऐसा कि देखते ही रह गए लोग 

MP News: मध्य प्रदेश के उज्जैन में एक अनूठी परम्परा देखने को मिली.मनोकामना पूरी होने पर पांच लोगों के ऊपर से गायों का झुंड निकाला गया.आइए जानते हैं इसके बारे में. 

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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित एक गांव में शनिवार सुबह रोंगटे खड़े करने वाली अनोखी परंपरा निभाई गई. यहां मनोकामना पूरी होने पर उपास कर रहे पांच लोगों पर गाय के झुंड को दौड़ाते हुए निकाला गया.आश्चर्य की बात यह है कि दर्जनों गाय द्वारा पैरों से रौंदने के बाद भी किसी को कोई चोट नहीं आई.

देखते ही रह गए लोग

उज्जैन से करीब से 75 km दूर बडनगर के पास  ग्राम भिडावद में शनिवार सुबह अलग ही नजारा था.यहां पर गोरी पूजन के बाद  गांव के ही लाखन अग्रवाल,राधेश्याम अग्रवाल,रामचंद्र चौधरी,कमल मालवीय,सोनू सिसोदिया जमीन पर उलटे लेटे और उन पर से दर्जनों गाय दौड़कर रौंदते हुए निकली. इस नजारे को जिन्होंने पहली बार देखा उनकी सांसे थम गई. 

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मान्यता है कि गाय में 33 कोटि के देवी देवताओं का वास है.उनके पैरों  के नीचे आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है. इसलिए सदियों से गांव में खुशहाली के लिए दीपावली के दूसरे दिन इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है. 

परंपरा के लिए छोड़ा घर

ग्रामीणों के मुताबिक़  दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर सदियों से यह अनूठी परंपरा निभाई जाती है. यहां जिनकी मन्नत पूरी होती है. वह लोग इसमें भाग लेते हैं.इस बार गांव के पांच लोगों ने मन्नत रख उपवास किया था.

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परम्परा अनुसार दीपावली के पांच दिन पहले सभी ने ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ दिया.

वह गांव के भवानी माता मंदिर में आकर रहकर भजन-कीर्तन करने लगे और आज सुबह गायों के पूजन के बाद जमीन पर उलटे लेट गए. इसके बाद गांव की दर्जनों गाय एक साथ उनके ऊपर से  दौड़ती हुई निकली, लेकिन किसी को खरोंच भी नहीं आई.

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ऐसे की गौरी पूजन की तैयारी 

ग्रामीणों के मुताबिक गाय सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है और इसे गौरी पूजा कहा जाता है. इसमें सुहाग पड़वा पर ग्रामीण तड़के  सबसे पहले गायो को नहलाकर सजाते है. इसके बाद चौक में जमा होकर गो माता की पूजा की जाती है. पूजन सामग्री में गाय का गोबर विशेष रूप से रखते है.  परंपरागत गीत गा कर सुख, शांति का आशीर्वाद देने का आह्वान करते हैं. फिर मन्नत धारियों को लेकर चौक जाते है. यहां उपासकों को गायों के सामने जमीन पर लेटाकर ढोल बजाते हैं. फिर एक साथ सभी गाय इनके ऊपर से रौंदते हुए निकलती है. उसके बाद गांव में जश्न मनाते हुए जुलूस निकाला जाता है. ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं लेकिन आज तक किसी को कोई चोट नहीं आई है.

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