
भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (IRCTC) ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर लगने वाले सुविधा शुल्क को लेकर अपनी स्थिति साफ कर दी है. निगम का कहना है कि यह शुल्क डिजिटल टिकटिंग सेवा को बनाए रखने और उसे लगातार बेहतर बनाने के लिए जरूरी है. यह स्पष्टीकरण राज्यसभा सांसद संजय सिंह के एक सवाल के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने यूपीआई सहित डिजिटल भुगतान पर AC और नॉन-AC टिकटों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने के कारण पर सवाल उठाया था.
नॉन-AC के लिए ₹10 और AC के लिए ₹20 का शुल्क
संजय सिंह ने पूछा कि जब सरकार कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है, तो नॉन-AC टिकट पर ₹10 और AC टिकट पर ₹20 का अतिरिक्त शुल्क क्यों लिया जा रहा है? उनका कहना था कि यह शुल्क कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने में बाधा बन सकता है और लोगों को डिजिटल भुगतान से हतोत्साहित कर सकता है.
रेल मंत्री का तर्क – “डिजिटल ढांचे के रखरखाव का खर्च”
8 जुलाई को दिए गए अपने लिखित जवाब में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ऑनलाइन टिकटिंग सिस्टम, जो यात्रियों के लिए बड़ी सुविधा है, उसके संचालन और रखरखाव में भारी खर्च होता है. इसमें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का अपग्रेडेशन, सुरक्षा, और लाखों उपयोगकर्ताओं के लिए सहज बुकिंग सुनिश्चित करने की लागत शामिल हैं. उन्होंने बताया कि इस प्रणाली की वजह से यात्रियों को स्टेशन पर जाकर टिकट लेने की असुविधा और समय की बर्बादी से बचाया जाता है. आज 87% आरक्षित टिकट ऑनलाइन बुक हो रहे हैं, जो इस सेवा की लोकप्रियता और उपयोगिता को दर्शाता है.
डिजिटल भुगतान पर टैक्स नहीं, “वैल्यू-एडेड सर्विस” शुल्क
रेल मंत्री के मुताबिक, यह शुल्क किसी टैक्स के रूप में नहीं लिया जा रहा, बल्कि इसे एक वैल्यू-ऐडेड सर्विस के खर्च की भरपाई के लिए लिया जाता है. ऑनलाइन टिकटिंग केवल एक भुगतान माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक महंगी, सुरक्षित और तेज सेवा है, जो करोड़ों यात्रियों को बिना लाइन में लगे टिकट लेने की सुविधा देती है.
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क्या शुल्क घटेगा?
हालांकि, विपक्ष और कुछ यात्रियों का मानना है कि यह शुल्क कम होना चाहिए या खत्म किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार का रुख साफ है कि जब तक डिजिटल ढांचे का खर्च बना रहेगा, यह शुल्क भी जारी रहेगा. फिलहाल, सरकार इसे डिजिटल सुविधा के लिए एक “वाजिब चार्ज” मान रही है, न कि कैशलेस सिस्टम पर बोझ