MY Hospital Rat Bite Case: खंडवा की लक्ष्मी और देवास की रेहाना, दो मां, जिनकी कोख ने अभी सपनों को जन्म दिया था. लेकिन इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में इन्हीं सपनों को चूहों ने कुतर डाला. मंगलवार को पहला मासूम चला गया और बुधवार को दूसरा भी इस दुनिया को छोड़ गया. किसे पता था कि इंदौर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल ही उनके सपनों को चकनाचूर कर देगा.
सिस्टम का निर्मम चेहरा है ये
NICU यानी नवजात शिशु गहन कक्ष- नाम सुनते ही भरोसा होता है कि यहां मासूमों की हर सांस सुरक्षित होगी. लेकिन हकीकत ये है कि जिन नन्हीं उंगलियों को मां चूमना चाहती थी, उन उंगलियों पर चूहों के दांत के निशान थे. यह सिर्फ़ मौत नहीं है, ये हमारे सिस्टम का सबसे निर्मम चेहरा है. लेकिन अस्पताल प्रबंधन सफाई देने में लगा है. अस्पताल अधीक्षक अशोक यादव ने कहा- दोनों बच्चों को कंजेटियल एनीमीज थी, और बाहर से रेफर होकर आए थे. एक का वजन 1 किलो और दूसरे का 1.6 था और हीमोग्लोबिन भी कम था, बच्चों पर बाइट के निशान मौजूद हैं पर उस से मौत नहीं होती है. सवाल ये नहीं कि मौत कैसे हुई? सवाल ये है कि अगर मौत बीमारी से हुई, तो क्या इससे सिस्टम का गुनाह कम हो जाता है? नवजात के नाज़ुक शरीर तक चूहा पहुंच जाए, ये लापरवाही नहीं तो और क्या है? कहा भी जाता है कि गोली से मौत नहीं होती, खून बहने से होती है. यह तर्क तो ठीक है, पर इंसान के शरीर में गोली का होना ही अपराध है. ठीक वैसे ही अस्पताल में चूहे का होना मौत जितना ही भयावह है.
अस्पताल में पहले से है चूहों का आतंक
वैसे ये घटनाएं पहली बार नहीं है, 2023 में भोपाल के हमीदिया अस्पताल के मुर्दाघर में शव का कान चूहों ने कुतरा था. विदिशा में शव की नाक और हाथ, सागर में आंखें तक नोच डाली गईं थीं. और अब, इंदौर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, एमवाय भी उसी लापरवाही का गवाह बन गया है. अस्पताल स्टाफ तक मानते हैं कि NICU में कई दिनों से एक बड़ा चूहा उत्पात मचा रहा था, आसपास का पूरा मेडिकल कैंपस, बाल चिकित्सालय, कैंसर अस्पताल, टीबी सेंटर, सब जगह चूहों की दहशत फैली हुई है. प्रबंधन का बहाना है कि बरसात में झाड़ियां उग आईं, बिलों में पानी भर गया इसलिए चूहे बाहर आ गए. मगर असलियत यह है कि यहां चूहों को मुफ्त का भोजन मिलता है. मरीजों के अटेंडर खाने की थैलियां लाते हैं और चूहे खुलेआम दावत उड़ाते हैं. डर तो हर इंसान को है, लेकिन लगता है व्यवस्था ने डरना ही छोड़ दिया है.
कार्रवाई तो हुई लेकिन सिस्टम में सुधार कब?
अब इस मामले में सरकार ने तात्कालिक कार्रवाई का ऐलान किया है.
मतलब ये है कि कागज़ पर कड़ी कार्रवाई की स्याही चमक रही है, मगर सवाल वही पुराना है- क्या इससे भविष्य में बच्चों की जान बच पाएगी? या यह कदम भी सिर्फ़ उस वादे की तरह होगा, जो हर बार टूटता आया है? विपक्ष कहता है, सरकार ने गंभीरता से हल्के कदम उठाए हैं और यह तंज़ सिर्फ़ राजनीति नहीं है. क्योंकि सच यही है कि हर मौत के बाद एक ही स्क्रिप्ट दोहराई जाती है. पहले हादसा, फिर हड़कंप, फिर नोटिस, और फिर भूल. सोचिए मरीज अस्पताल में डर के साथ कदम रखते हैं, लेकिन चूहा NICU में बेख़ौफ़ घूमता है. किससे पूछें—कौन है कसूरवार उस मांओं का जिसकी गोद हमेशा के लिए सूनी हो गई. इंसान की जान की क़ीमत इस सिस्टम के लिए इतनी सस्ती हो चुकी है कि मौत अब आंकड़ों में दर्ज होकर रह जाती है. कौन देगा हिसाब ये व्यवस्था या सरकार या हर बार की तरह इस बार भी कीमत हमेशा मां-बाप को चुकानी पड़ेगी? एमवाय अस्पताल की यह घटना सिर्फ़ एक हादसा नहीं, यह हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की वो स्याह सच्चाई है. जहां इंसान आता तो इलाज की उम्मीद से है मगर लौटता है कुतरे हुए ज़ख़्मों और टूटी हुई उम्मीदों के साथ कभी कफन में तो कभी तो कभी झूठे दिलासों के साथ.
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