यहां हर साल बढ़ती जा रही थी भगवान गणेश की ये चमत्कारिक प्रतिमा, जानें सिर पर क्यों ठोकी गई कील...

Ganesh Chaturthi Special: गणेश भक्तों के लिए आज की दिन काफी खास है, तो इस खास मौके पर NDTV आपके लिए लेकर आया है, भगवान गणेश से जुड़ी कुछ ऐसी अनोखी कहानियां और किस्से जिन्हें आप भी पढ़कर कहेंगे अरे वाह.. यहां तक की खुद को ऐसी जगह पर आने से रोक भी न पाएंगे.एक ऐसी ही सदियों पुरानी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है, सागर जिले में. जानें ये क्यों विशेष है..

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Famous Ganesh Temple In MP Sagar: आज दिन शनिवार है, और अवसर गणेश चतुर्थी का है. इस खास मौके पर भगवान गणेश से जुड़ी कुछ खास किस्सा आया है, मध्य प्रदेश के सागर जिले से. यहां हम आपको भगवान गणेश से जुड़ी एक खास प्रतिमा के चमत्कारिक कहानी के बारे में बताएंगे. 

ये देश का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है

लाखा बंजारा झील के किनारे स्थित भगवान गणेश का दिव्य मंदिर.

सागर के लाखा बंजारा झील किनारे स्थित श्री गणेश जी का अष्टकोणीय मंदिर बुंदेलखंड के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. मराठा काल में जमीन की खुदाई के दौरान प्रकट हुई थी श्री गणेश की यह अद्वितीय चमत्कारिक प्रतिमा. इसकी स्थापना के बाद से हर साल बढ़ती जा रही थी, जिसे देखते हुए सागर प्रवास पर आए शंकराचार्य ने एक अभिमंत्रित कील प्रतिमा के सिर पर ठोककर गणेशजी को बढ़ने से रोका था.भारत में अष्टकोणीय श्रीगणेशजी का यह दूसरा सबसे बड़ा मंदिर हैं, मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर की तरह है.

इस मंदिर को तैयार करने में लगे 35 वर्ष

गणेश मंदिर.

मराठा काल में यहां जमीन की खुदाई के दौरान भगवान श्रीगणेश की यह प्रतिमा निकली थी, जिन्हें उनके पिता शंकर जी के साथ विराजमान किया गया था. मंदिर निर्माण का कार्य वर्ष 1603 से शुरू हुआ. महाराष्ट्र से आए कारीगरों को यह अष्टकोणीय मंदिर तैयार करने में लगभग 35 साल लग गए थे.वर्ष 1638 में इस मंदिर की स्थापना हुई और तब ही से यह पूरा क्षेत्र गणेश घाट के नाम से प्रसिद्ध है.

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मराठा शासक बाजीराव के समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मंदिर में सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है.देशभर के श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं.

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 कील सिर पर ठोकी तब जाकर रुकी..

पुजारी गोविंदराव आठले ने बताया कि मंदिर में श्रीगणेशजी की प्रतिमा विराजमान कराने के बाद ऐसा महसूस हुआ कि हर साल प्रतिमा थोड़ी-थोड़ी बढ़ने लगी है, तो उन्होंने सागर प्रवास पर आए शंकराचार्य से संपर्क किया. इसके बाद शंकराचार्य ने यहां आकर गणेशजी की आराधना की. काफी पूजा-अर्चना के बाद उन्होंने एक अभिमंत्रित लोहे की कील गणेशजी के सिर पर ठोकी, जो आज भी प्रतिमा में देखी जा सकती है.इसके बाद प्रतिमा उसी हाइट में है.यहां गणेशजी को सिर्फ सिंदूर और पीले फूल ही अर्पित किए जाते हैं.

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