ये हैं MP के 'मांझी', सरकार ने नहीं सुनी गुहार तो खुद ही पहाड़ काट बनाने लगे रास्ता, आजादी के बाद से नहीं बनी सड़क

MP News: बड़वानी जिले के मतरकुंड गांव में आजादी से अभी तक सड़क नहीं बनी है. यहां के लोग कई नेताओं के चौखट पर अर्जी लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक सड़क नहीं बनी है. इसी के चलते गांव के लोगों ने संकल्प लिया कि अब वे पहाड़ काटकर सड़क खुद ही बनाएंगे.

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दो साल से पहाड़ काट रहे हैं मतरकुंड गांव के आदिवासी.

No Road in Matarkund Village: बिहार के दशरथ मांझी को कौन नहीं जानता? दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया था. इससे पहले उन्होंने बिहार (Bihar) से लेकर दिल्ली (Delhi) तक सड़क बनाने की गुहार लगाई, लेकिन जब उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने खुद ही कुदाल और फावड़ा उठाकर रास्ता बनाने का संकल्प लिया. और पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बनाया. दशरथ मांझी पर एक फिल्म भी बन चुकी है, जो काफी चर्चित रही.

बिहार के दशरथ मांझी की तरह ही एक कहानी मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बड़वानी जिले (Barwani) की है, जहां के ग्राम मतरकुंड के लोग मांझी की तरह ही हाथों में कुदाल और फावड़ा लेकर खुद ही रास्ता बनाने निकल पड़े हैं. दरअसल, इस गांव में सड़क बनाने के लिए यहां के लोग शासन-प्रशासन सबसे गुहार लगा चुके हैं. जब उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई तो थक-हारकर खुद ही रास्ता बनाने के संकल्प लिया.

गांव के लोग समय निकालकर रास्ता बनाने में जुटे हैं.

आजादी के बाद से नहीं बनी सड़क

तकरीबन एक हजार परिवार की आबादी वाले मतरकुंड गांव में आजादी से अभी तक सड़क नहीं बनी है. यहां के लोग कई नेताओं के चौखट पर अर्जी लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक रोड नहीं बनी है. इसी के चलते गांव के लोगों ने संकल्प लिया कि अब रोड हम हमारे हाथों से बनाएंगे. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चौकी के अंतर्गत आने वाला  मतरकुंड गांव में करीब 1000 परिवार रहते हैं. मुख्य मार्ग से करीब 5 किलोमीटर अंदर इस गांव में अभी तक सड़क नहीं पहुंची है.

इलाज नहीं मिलने से हो चुकी है पांच लोगों की मौत

यहां के लोगों का कहना है कि हमारे गांव में जब भी कोई बीमार पड़ता है या कोई प्रेग्नेंट महिला को अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ती है तो हमें झोली या खाट का इस्तेमाल करना पड़ता है. अक्सर कोई बीमार पड़ता है तो उसे ले जाने में देरी होती है, जिसके चलते यहां पर लगभग चार से पांच लोगों की मौत हो चुकी है. गांव के लोगों ने बताया कि गांव वालों ने मिलकर इस घाट को काटने का संकल्प लिया है.

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आजादी के बाद से अभी तक यहां सड़क नहीं पहुंची है.

ग्रामीणों ने बताया कि वे आदिवासी लोग खेती-किसानी और मजदूरी का काम करते हैं. जब-जब समय मिलता है गांव के लोग इकट्ठा होते हैं और इस घाट को काटने का काम करते हैं. अभी पिछले दो साल से घाट की कटिंग ये लोग खुद की मेहनत से कर रहे हैं. पहले तो यहां पर पैदल चलना दूबर था, लेकिन गांव वालों की 2 साल की मेहनत के बाद अब थोड़ा सा आने-जाने में आसानी हो रही है.

ग्रामीणों की ये है मांग

प्रशासन से ग्रामीणों की मांग है कि उनके गांव में पक्की सड़क नहीं तो कच्ची सड़क दे दे, ताकि यहां तक का एंबुलेंस आ जाए और गांव के लोगों को सुरक्षित हॉस्पिटल या कहीं पर भी ले जाने में आसानी हो. गांव के लोगों का यह भी कहना है कि अगर उनके गांव को सड़क नहीं मिलती है तो अगली बार आने वाले चुनाव में किसी भी दल के नेता को गांव में घुसने नहीं दिया जाएगा.

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