Fossil Park: न कैंटीन न गेस्ट हाउस और न ही..... देश के एकमात्र फॉसिल्स पार्क में नहीं है बेसिक सुविधाएं

MP News: देश का एक मात्र फॉसिल्स पार्क उपेक्षा का शिकार है. यहां पर्यटकों के लिए न तो खाने की कोई व्यवस्था है और न ही रहने की कोई व्यवस्था.

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National Fossil Park Ghughwa: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में डिंडौरी जिले (Dindori) का घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क (Ghughwa National Fossil Park) जहां काफी तादाद में तरह-तरह के बेशकीमती जीवाश्म पाए जाते हैं. पार्क में मौजूद जीवाश्म साढ़े छह करोड़ वर्ष पुराने होने का दावा किया जाता है. कहने को तो यह देश का इकलौता सबसे बड़ा फॉसिल्स पार्क (India's Only Fossil Park) है, लेकिन जिला प्रशासन और वन विभाग (Forest Department) की लापरवाही के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने वाला यह पार्क अब अपनी पहचान खोते हुए नजर आ रहा है. पार्क में न तो पर्यटकों के रुकने के लिए उचित इंतजाम हैं और न ही भोजन की व्यवस्था. लिहाजा पर्यटकों का अब इस पार्क से मोह भंग होता जा रहा है.

हैरत की बात यह है कि मंडला के कान्हा नेशनल टाइगर रिजर्व और उमरिया के बांधवगढ़ नेशनल टाइगर रिजर्व के बीचों बीच स्टेट हाइवे से लगे होने के बाद भी घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क अपग्रेड नहीं हो पाया है. जबकि इसी रास्ते से होकर सैकड़ों देशी व विदेशी सैलानी गुजरते हैं. आपको बता दें कि देश के इकलौते घुघवा जीवाश्म उद्यान में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधियों ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया.

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घुघवा फॉसिल्स पार्क में डायनासोर का अंडा रखा हुआ है.

करीब 6 हजार साल पुराने जीवाश्म मौजूद

घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क की हालत यह है कि इसका मेन गेट देखकर कोई भी धोखा खा सकता है. घने जंगलों के बीच स्थित पार्क की खूबसूरती बाहर से देखते ही बनती है, लेकिन पार्क के अंदर पहुंचते ही चौंकाने वाली तस्वीरें नजर आने लगती हैं. बताया जाता है कि जीवाश्म तब बनते हैं जब मरे हुए पौधों या जानवरों के शरीर के ऊतकों का प्रतिस्थापन (Replacement of Tissues) खनिज पदार्थों से हो जाता है. मरे हुए जीव या पेड़-पौधे, पत्थर की तरह कठोर हो जाते हैं और उसका रूप वही रहता है. 

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जिन पौधों के जीवाश्म इस पार्क में मौजूद हैं वो करीब साढ़े 6 करोड़ वर्ष पुराने बताए जाते हैं. पार्क में तरह-तरह के जीवाश्म बिखरे पड़े हैं, जिन्हें न तो विधिवत रखा गया है और न ही वैज्ञानिक सम्मत तरीके से जीवाश्मों को संरक्षित किया गया है. पार्क के म्यूजियम में रखा कथित डायनासोर का अंडा भी आकर्षण का केंद्र है, जिसे सैंकड़ों वर्ष पुराना होने का दावा किया जाता है. पर्यटकों के लिये पार्क के अंदर मौजूद कैंटीन करीब 12 वर्षों से बंद पड़ी हुई है. इसके अलावा स्टाफ की कमी के चलते गेस्ट हाउस में पर्यटकों के रुकने के कोई इंतजाम भी नहीं हैं.

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पार्क में पिछले 12 साल से कैंटीन चालू नहीं है.

पिछले 12 साल से बंद पड़ी है कैंटीन

पार्क में तैनात महिला वनकर्मी प्रियंका ने NDTV को इस पार्क की खासियत के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि यह अपने देश ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे बड़ा फॉसिल्स पार्क है. जहां व्यापक तौर पर साढ़े छह करोड़ वर्ष पुराने ट्री फॉसिल्स पाए जाते हैं. पार्क की स्थापना 5 मई 1983 को हुई थी, जो 27. 24 हेक्टेयर में फैला हुआ है. प्रियंका ने बताया कि पार्क में कैंटीन तो है, लेकिन टेंडर नहीं होने के कारण पिछले 12 सालों से बंद पड़ा हुआ है. 

परिवार के साथ जबलपुर से घुघवा पहुंचे सैलानी आशीष का कहना है कि देश के इस इकलौते जीवाश्म पार्क में पर्यटकों के लिए उचित इंतजाम करना चाहिए, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके. 

घुघवा फॉसिल्स पार्क में पर्यटकों के लिए उचित इंतजाम नहीं हैं.

जीर्णोद्धार के लिए आई राशि हुई लैप्स

आपको बता दें कि घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क को अपग्रेड करने के लिए करीब चार साल पहले केंद्र सरकार ने 1 करोड़ 96 लाख रुपये जारी किए थे, लेकिन वन विभाग के अफसरों और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही के कारण यह राशि लैप्स हो गई. जानकारी के मुताबिक, वन विभाग के अफसरों ने निर्धारित समय में पार्क से संबंधित दस्तावेज जमा नहीं किए, जिसके कारण पार्क का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया.

इलाके के पूर्व विधायक भूपेंद्र मरावी जिनका गृह ग्राम घुघवा नेशनल पार्क से बिल्कुल लगा हुआ है, उन्होंने पार्क की बदहाली और उपेक्षा के लिए जिले के अफसरों को जिम्मेदार बताया है. वहीं वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले में कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते हुए नजर आ रहे हैं.

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