Teachers' Day Special: ज़रा सोचिए, एक गांव का स्कूल जहां बच्चे आने से कतराते हों, मैदान वीरान पड़े हों और दीवारें टूटे खंडहर जैसी दिखती हों. लेकिन वहीं कोई प्रधानाध्यापक अपनी जिद, मेहनत और जुनून से उस सुनसान जगह को हंसी-खुशी और सीखने का केंद्र बना दे तो क्या कहेंगे? सीहोर के महुआखेड़ी गांव के इस सरकारी स्कूल की ऐसी ही कहानी है. जिसे कभी लोग खंडहर कहकर नजरअंदाज कर देते थे. टूटी दीवारें, जर्जर छत, बच्चों की गिनती पचास से भी कम. हालात ऐसे कि कोई भी इसे शिक्षा का मंदिर मानने को तैयार न होता. लेकिन कहते हैं न अगर एक इंसान ठान ले तो तस्वीर बदल जाती है. इस स्कूल की तस्वीर भी बदली प्रधान अध्यापक सतीश त्यागी की जिद और मेहनत से.
कभी ऐसी हालत थी स्कूल की...जिसे प्राचार्य ने अपने जुनून से बदल दिया
कबाड़ से निकली खिलखिलाहट
साल 2020-21 में इस स्कूल में मुश्किल से 58 बच्चे आते थे. आज यहां 105 नन्हें सपनों की आवाज गूंजती है. यह जादू किसी सरकारी योजना या बड़े बजट से नहीं हुआ, बल्कि एक शिक्षक के हुनर और विश्वास से हुआ. त्यागी सर ने तय किया कि जो टूटा-फूटा सामान लोग कबाड़ समझते हैं, वही बच्चों की मुस्कान की वजह बनेगा. पुराने टायर झूलों में बदल गए, बेकार फर्नीचर खेल के साथी बन गए और प्लास्टिक की बोतलों से बनी रंगीन चीज़ों ने बच्चों की दुनिया को नया रंग दे दिया.
खंडहर को स्मार्ट क्लास में बदला
लेकिन बदलाव सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहा. जो क्लासरूम कभी डरावने खंडहर की तरह लगते थे, त्यागी सर ने अपनी जेब से खर्च करके उन्हें स्मार्ट क्लास में बदल दिया. रोशनी आई, रंग आया, और बच्चों की आंखों में चमक भी. मैदान को समतल किया गया ताकि बच्चे बेफिक्र होकर खेल सकें. स्कूल परिसर में साफ पानी और रोशनी का इंतज़ाम हुआ, जिससे यह जगह अब बच्चों के लिए सुरक्षित और आकर्षक लगने लगी.
प्राचार्य अपने जुनून के पक्के हैं...स्कूल को उन्होंने अपनी मेहनत से संवारा है
पढ़ाई ही नहीं, सेहत का भी ख्याल
त्यागी सर का मानना है कि पढ़ाई किताबों की चार दीवारी तक कैद नहीं होनी चाहिए. इसलिए उन्होंने “लर्निंग कॉर्नर” बनाए, दीवारों पर शिक्षा से जुड़ी पेंटिंग्स सजाईं, और हरियाली से परिसर को जीवंत कर दिया. बच्चे अब जहां-जहां देखते हैं, वहां कुछ नया सीखने का मौका उन्हें मिलता है. त्यागी सर ने बच्चों की पढ़ाई ही नहीं, बल्कि उनकी सेहत का भी ख्याल रखा. स्कूल के आंगन में सब्जियों की क्यारियां लगाई गईं, ताकि पीएम पोषण योजना के तहत बच्चों की थाली में ताज़गी और पोषण दोनों भर सकें.
एक इरादे ने बदल दी तक़दीर
इन कोशिशों का असर साफ दिखा- नामांकन दोगुना हो गया, बच्चे नियमित रूप से स्कूल आने लगे, खेलों से उनका आत्मविश्वास बढ़ा और अभिभावकों का भी भरोसा लौटा. इतना ही नहीं, इसी स्कूल की एक बच्ची का चयन हाल ही में नवोदय विद्यालय में हुआ. आज ये स्कूल सिर्फ एक शिक्षण संस्था नहीं, बल्कि मिसाल बन चुका है. ये कहानी बताती है कि अगर इरादा पक्का हो, तो न संसाधनों की कमी रुकावट बनती है और ना हालात. बदलाव हमेशा बाहर से नहीं आता, कभी-कभी वो एक अकेले शिक्षक की सोच से निकलकर पूरे गांव का भविष्य बदल देता है.
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