Water Crisis: सिंगरौली के इस गांव में बूंद-बूंद को तरसते हैं लोग? जानिए कैसे बुझती है प्यास

Water Crisis: सिंगरौली जिले के जोगियानी गांव जैसे दूरस्थ और जरूरतमंद गांवों में पानी जैसी बुनियादी सुविधा का अभाव न केवल चिंता की बात है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि आखिर कब तक आदिवासी समुदाय इस तरह उपेक्षा का शिकार बना रहेगा?

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Singrauli water crisis: सिंगरौली में पानी की समस्या

Water Crisis in MP: मध्यप्रदेश राज्य का आखिरी जिला सिंगरौली (Singrauli) वैसे तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है. कहा जाता है कि सिंगरौली ही एक ऐसा जिला है, जो चार राज्यों को जोड़ता है. लेकिन इस जिले की कुछ अपनी समस्याएं भी हैं. जिससे आम जन प्रभावित हैं, जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित बैढ़न ब्लाक के जोगियानी गांव विकास से कोसों दूर है. जिले के इस गांव के आदिवासी इलाके तक जाने के लिए सड़क तक नहीं है. लोग खेत और पगडंडी के सहारे यहां आते-जाते हैं. यहां के आदिवासी समुदाय के सैकङो लोग कई सालों से बून्द बून्द पानी के लिए तरस रहे हैं. ये नाले के गड्ढे से पानी निकाल कर अपनी सूखे कंठ की प्यास को बुझाते है. लगभग 150 की आबादी वाले इस इलाके में गोंड और बैगा जनजाति के परिवार गड्ढों का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

कैसे हैं हालात?

हालात इतने खराब हैं कि इस इलाके में कोई हैंडपंप नहीं है और न ही पानी के लिए कोई अन्य स्त्रोत, कई दशकों से इस इलाके के लोग नाले के पास बने गड्ढे का दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं. जिससे लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है. तपती धूप में सैकड़ों की तादाद में महिलाएं बच्चे और पुरुष हाथों में खाली बर्तन लेकर गांव से निकल पड़ते हैं और तकरीबन 1 किलोमीटर दूर स्थित गड्ढे तक पहुंचते हैं. फिर बाल्टी में रस्सी बांधकर गड्ढे से पानी निकालते हैं और अपने घर ले जाते हैं.

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पेयजल संकट से जूझ रहे गांव के बाशिन्दे बताते हैं कि यही गंदा पानी को पीने पर वह मजबूर हैं, पानी के लिए इलाके में न तो हैंडपंप है और न ही कोई अन्य साधन, जिस वजह से कई सालों से गांव वाले इसी गंदे पानी से अपना काम चला रहे हैं.

यहां के आदिवासियों का कहना है कि यहां नेता सिर्फ वोट मांगने के लिए ही आते है, बड़े बड़े उन्हें आश्वासन देते है, लेकिन समस्या का समाधान नहीं होता है. 

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कलेक्टर ऑफिस से मिलता है आश्वासन

ग्रामीण जिलाधिकारी कार्यालय तक अपनी फरियाद लेकर कई बार जा चुके हैं. वहां से भी उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता है. अब देखना यह होगा कि प्रशासन की ओर से किए गए वादे कितने जल्दी जमीन पर उतरते हैं.

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