Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कई मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन प्रदेश की सरकार और स्वास्थ्य विभाग के सामने सीधा सवाल खड़ा करने वाला गंभीर मामला प्रदेश के शिवपुरी (Shivpuri) से सामने आया हैं. जहां रन्नौद स्वास्थ्य अस्पताल के बाहर एक प्रसूता को खुले आसमान के नीचे अस्पताल के बाहर प्रसव करने पर मजबूर होना पड़ा.
आदिवासी महिलाओं ने प्रसूता की डिलीवरी की
यहां अस्पताल के दरवाजे के बाहर आदिवासी महिलाओं ने प्रसूता की डिलीवरी की. इसके बावजूद डॉक्टर सहित नर्सिंग स्टाफ ने डिलीवरी के दौरान कोई मदद भी नहीं की. इधर अस्पताल के जिम्मेदार डॉक्टर का कहना हैं कि उन्होंने प्रसूता को जिला अस्पताल रेफर कर दिया था. एम्बुलेंस प्रसूता को लेने भी पहुंच गई थी, लेकिन परिजन प्रसूता को लेकर जिला अस्पताल रवाना नहीं हुए. जिसके बाद ये घटना हुई.
शिवपुरी के जिला अस्पतला कर दिया रेफर
शिवपुरी जिले के रन्नौद कस्बे में शंकरपुर की रहने वाली 22 साल की कमल आदिवासी को पहली डिलीवरी के लिए रन्नौद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था. प्रसूता के रिश्तेदार गुड्डन आदिवासी ने बताया कि अस्पताल आने के बाद स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर ने शिवपुरी जिला अस्पताल रेफर कर दिया. पैसों की व्यवस्था नहीं थी. इस कारण समय पर जिला अस्पताल जा नहीं सके थे. बुधवार रात 9 बजे प्रसूता को तेज प्रसव पीड़ा होने लगी.
अस्पताल स्टाफ ने दी थाने में बंद कराने की धमकी
जब अस्पातल में डॉक्टर सहित नर्सिंग स्टाफ से अस्पताल के भीतर लेकर डिलीवरी कराने की गुहार लगाई तब स्टाफ ने मदद तो नहीं की बल्कि थाने में बंद कराने की धमकी दे दी. यही वजह रही की प्रसूता को मजबूर होकर अस्पताल के बाहर नवजात को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इस मामले में रन्नौद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉ अक्षय शर्मा ने बताया कि प्रसूता को बुधवार की शाम 6 बजे लाया गया था. जांच के दौरान प्रसूता का हीमोग्लोबिन महज 6 ग्राम था, जबकि हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम होनी चाहिए थी. 9 या 10 हिमोग्लोबिन होने पर एक बार डिलीवरी की जा सकती थी. मल्टी ग्रेविडा के साथ गंभीर एनीमिया होने के चलते और गाइडलाइन के तहत प्रसूता को जिला अस्पताल रैफर किया गया था.
108 एंबुलेंस भी बुला ली गई थी लेकिन...
उन्होंने बताया कि प्रसूता को जिला अस्पताल भेजने के लिए 108 एम्बुलेंस भी बुला ली गई थी लेकिन परिजन प्रसूता को जिला अस्पताल ले जाने को राजी नहीं हुए. उसी समय अस्पताल में दूसरा डिलीवरी केस आ गया जिसमें स्टाफ व्यस्त हो गया.
अस्पताल प्रबंधन और आदिवासी परिवार के बीच सामंजस्य नहीं बैठा हो ये मान सकते हैं लेकिन अस्पताल परिसर में डिलीवरी के दौरान डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने प्रसूता की मदद नहीं की ये तो साफ दिख रहा था. इस मामले में CMHO HELTH शिवपुरी डॉ संजय रिशेश्वर ने पूरे मामले की जांच करने के आदेश जारी किए हैं. उनका कहना है कि मामले में शिकायत उन तक पहुंची है और वह इस पूरे मामले की जांच कर कर दोषी स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
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