Water Crisis: उमरिया जिले के इस गांव में मटमैला पानी पीने की मजबूरी! जल स्रोत सूखे, ऐसे बुझ रही प्यास

Water Crisis in MP: सरकार जिले के अंतिम छोर पर बसे हर ग्रामीणों को योजनाओं का लाभ देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन सिस्टम की लचर व्यवस्था के चलते ग्रामीणें को लाभ नहीं मिल पा रहा है. टिकुरा पठारी गांव के लोगों को नल जल योजना का भी लाभ नहीं मिल सका और गांव के लोग चट्टानों से रिसने वाली एक एक बूंद को एकत्रित कर घाटी के नीचे से पानी ढोने को मजबूर हैं.

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Water Crisis in MP: जल संकट से जूझता गांव

Water Crisis: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य उमरिया (Umaria) जिले का टिकुरा पठारी गांव भीषण जल संकट (Water Crisis in MP) से जुझ रहा है, पहाड़ में बसे होने के कारण जल स्रोत सूख चुके हैं. हैंडपंप के अलावा प्यास बुझाने कोइ साधन नहीं है. धरती का ताप बढ़ते ही हैंडपंप पानी की जगह हवा फेंक रहे हैं. ऐसे में गांव के लोग पहाड़ों की घाटी में उतरकर जान जोखिम में डाल कर पानी तक पहुंच रहे हैं. वहां भी पानी की एक एक बूंद-बूंद सहेजकर गुजर बसर करने विवश हैं.

घंटों का इंतजार तब कहीं बुझती है प्यास 

एक मात्र स्रोत पहाड़ी के नीचे झिरिया में दिनभर घंटो लोग पानी रिसने का इंतजार करते हैं. मजबूरी में पहाड़ के नीचे पथरीले रास्ते से जाकर गांव के लोग पानी लाते हैं और इसी झिरिया के गंदे दूषित पानी से प्यास बुझा रहे है. इसके साथ ही निस्तार कर रहे हैं. गांव के लोगों को सरकारी नल-जल योजना का लाभ भी नहीं मिल सका, गांव में एक हैण्ड पम्प है, वो भी महीनों से हवा फेंक रहा है.

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सरकार जिले के अंतिम छोर पर बसे हर ग्रामीणों को योजनाओं का लाभ देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन सिस्टम की लचर व्यवस्था के चलते ग्रामीणें को लाभ नहीं मिल पा रहा है.

इसी तरह हर गांव में पेयजल मुहैया कराने के लिए सरकार नल-जल योजना के तहत गांव-गांव तक पानी की टंकी एवं पाइप लाइन के माध्यम से गांव के लोगों के घरों तक नल से पानी पहुंचा रही है. मगर टिकुरा पठारी गांव के लोगों को इस योजना का भी लाभ नहीं मिल सका और गांव के लोग चट्टानों से रिसने वाली एक एक बूंद को एकत्रित कर घाटी के नीचे से पानी ढोने को मजबूर हैं. गांव में वर्षों से इसी तरह लोगों को भारी मशक्कत करके अपनी प्यास बुझा रहे हैं.

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ग्रामीणों का क्या कहना है?

ग्रामीणों का कहना कि बच्चों से लेकर वृद्ध, युवा, महिला एवं पुरुष सुबह से ही झिर में जाकर बैठ जाते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं. उन्होंने कहा कि "पूरा समय हमारा इसी में निकल जाता है. हमारे अन्य कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं, और पहाड़ी घाटियों से आने जाने पर कई बार गिर भी जाते हैं. इतना ही नहीं गिरने के कारण एक महिला का हाथ भी टूट गया था, जो वृद्ध असमर्थ हैं उनको और भी दिक्कत है. वो पानी लेने झिरिया नहीं आ पाते वो यहां वहां से पानी मांग कर अपनी प्यास बुझाते हैं." ग्रामीणों ने बताया कि जब हमारे गांव में किसी के घर शादी विवाह या अन्य कार्य किए जाते हैं तो हमें दूरदराज से पैसे देकर पानी टैंकर के माध्यम से पानी मंगाना पड़ता है, तब जाकर हम अपना काम कर पाते हैं.

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