Sehore ki khabar: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सीहोर का कभी बांस बहेड़ा (Bans Baheda) देश भर की पहचान हुआ करता था. दुर्लभ प्रजाति के कटंग बांस वन विभाग (Forest Department) की अनदेखी के कारण से अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. और ऐतिहासिक ब्रिटिश कालीन बांस बहेड़ा सिमटता जा रहा है. इसके संरक्षण के लिए वन विभाग द्वारा पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए. कभी लोगों के लिए आर्कषण का केन्द्र रहा बांस बहेड़ा, विलुप्ती की कगार पर पहुंचने लगा है.
इंदौर-भोपाल हाइवे पर बांस बहेड़ा की हालत खस्ता
अंग्रेजों की छावनी हुआ करता था सीहोर
ब्रिटिश काल में जब सीहोर अंग्रेजों की छावनी बना, तो यहां पर पॉलीटिकल ऐजेन्ट द्वारा कई निर्माण कार्य कराए गए. इसमें प्रार्थना के लिए सीवन नदी के किनारे आल सेंट चर्च का निर्माण कराया गया, घूमने के लिए एक मैदान बनाया, जिसे वर्तमान में चर्च मैदान कहा जाता है और सीवन नदी की सुदंरता बढ़ाने के लिए विदेश से कटंग बांस का बीज बुलाकर यहां रोपा गया. इंदौर-भोपाल हाइवे के दोनों ओर सीवन नदी के किनारे इस दुर्लभ प्रजाति के बांस लगाए गए.
मुख्य आकर्षण का केंद्र था बांस बहेड़ा
जब नदी के किनारे यह बांस बहेड़ा तैयार हो गया, तो नदी और इंदौर-भोपाल हाइवे की सुदंरता बढ़ गई. लंबे-लंबे बांस लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गए. यहां से निकलने वाले लोग यहां रूकते थे, इन बांसों के साथ फोटो भी खींचते थे. यह लोगों के लिए दर्शनीय स्थल था. लेकिन, धीरे-धीरे यह बांस बहेड़ा दुर्दशा का शिकार हो गया. इन बांसों के रख-रखाव पर वन विभाग ने ध्यान नहीं दिया. गर्मियों में बांस बहेड़े में आग लगने की घटनाएं अक्सर होती रहती है, कई लोग बांस चोरी भी करते हैं.
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कार्ययोजना पर अमल नहीं
कुछ सालों पहले वन विभाग ने इंदौर-भोपाल हाइवे और सीवन नदी के किनारे दुर्लभ कटंग बांसों को संरक्षित करने और इस क्षेत्र को टूरिस्ट सर्किट के रूप में पहचान दिलाने के लिए कार्य योजना तैयार करके सरकार के समक्ष भेजी थी. योजना के तहत नगरीय प्रशासन विभाग, पर्यटन विभाग, इको पर्यटन बोर्ड, राष्ट्रीय बांस मिशन के सहयोग से सीवन नदी, सुन्दर वन और बांस बहेड़ा के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के लिए कार्य किए जाने थे.
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