सागर के सर्वज्ञ सिंह ने शतरंज की दुनिया में मचाई खलबली, सबसे कम उम्र के बने चेस मास्टर, 30 साल के रेटेड खिलाड़ी को हराकर रचा इतिहास

Sarvagya Singh Kushwaha: सर्वज्ञ सिंह कुशवाहा फिडे रैंकिंग में जगह हासिल करने के बाद दुनिया के सबसे कम उम्र के शतरंज खिलाड़ी बन गए हैं. सर्वज्ञ ने 3 साल 7 महीने 20 दिन की उम्र में ये सफलता हासिल की है. इसके पहले पश्चिम बंगाल के अनीश सरकार ने 3 साल 8 महीने की उम्र में ये सफलता हासिल की थी.

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Youngest international rated player Sarvagya Singh Kushwaha: कहते हैं कि “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं”, और यह पंक्ति सागर के नन्हे खिलाड़ी सर्वज्ञ सिंह कुशवाहा (Sarvagya Singh Kushwaha) पर बिल्कुल फिट बैठती है. महज 3 साल की उम्र में सर्वज्ञ सिंह कुशवाहा ने 30 साल के फिडे रेटेड खिलाड़ी को हराकर ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसने जिले ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. 

सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय रेटेड खिलाड़ी बने

आज सर्वज्ञ 3 साल 7 महीने 20 दिन की उम्र में इंटरनेशनल रेटेड चेस प्लेयर (Youngest international rated player) बन चुके हैं. उन्होंने फिडे रेटिंग में 1572 अंक प्राप्त कर इतिहास रच दिया है. सर्वज्ञ सिंह कुशवाहा ने शतरंज की शुरुआत सागर डिस्ट्रिक्ट चेस एसोसिएशन से की. ढाई साल की उम्र से उनकी ऑनलाइन रेटिंग दर्ज होना शुरू हो गई थी. वो स्वदेश चेस अकादमी, ओलंपियाड स्पोर्ट्स एरेना में नियमित अभ्यास करते हैं. विश्व अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता में सर्वज्ञ ने पहली बार जीत दर्ज की थी.

मोबाइल से दूर रखने की कोशिश ने बना दिया चेस चैंपियन

सर्वज्ञ की मां नेहा सिंह कुशवाहा बताती हैं कि वो उसे मोबाइल से दूर रखना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने उसे ताइक्वांडो एकेडमी में एडमिशन दिलाया,लेकिन बच्चा वहां ताइक्वांडो सीखने के बजाय सामने बनी चेस एकेडमी की ओर आकर्षित होकर बार-बार वहीं जाकर खड़ा हो जाता था.

एक दिन चेस कोच की नजर जब इस नन्हें बच्चे पर पड़ी तो उन्होंने उसे अंदर बुलाया और बोर्ड दिखाया. आश्चर्य की बात यह रही कि सर्वज्ञ ने कुछ ही दिनों में नियम और स्ट्रैटेजी सीखकर सबको चकित कर दिया.

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कोचिंग और अनुशासन ने चमकाई प्रतिभा

राष्ट्रीय प्रशिक्षक आकाश प्यासी ने उन्नत तकनीकी प्रशिक्षण देकर उनकी समझ और खेल का स्तर और ऊंचा किया.

घर में मिली सही दिशा और माहौल

सर्वज्ञ के पिता सिद्धार्थ सिंह कुशवाहा बताते हैं, “जब हमें एहसास हुआ कि उसके अंदर एक अलग प्रतिभा है, तो हमने उसका पूरा साथ दिया. हमने घर का वातावरण उसके खेल के अनुसार बनाया और उसे हर कदम पर प्रोत्साहित किया.”

मां-बाप के सहयोग, प्रशिक्षकों की मेहनत और सर्वज्ञ की जन्मजात क्षमता ने मिलकर यह असंभव लगने वाली उपलब्धि को संभव किया है. अब लक्ष्य—अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट और बड़े खिताब का. बता दें कि सर्वज्ञ अब अगले स्तर के टूर्नामेंट की तैयारी कर रहे हैं और भविष्य में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर मेडल जीतने का सपना देखते हैं.

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