'सेव, साड़ी और सोने' के लिए मशहूर रतलाम, अब 'मोतियों की खेती' में भी कमा रहा है नाम

दिलीप ने 2018 में इस तरह की खेती की शुरुआत की थी. पहले दिलीप रतलाम में सीसीटीवी बेचा करते थे, लेकिन मोबाइल पर उन्होंने मोती की खेती का आईडिया देखा और भुवनेश्वर जाकर सीफा सरकारी कॉलेज से मोती की खेती सीख ली. इसके बाद उन्होंने अपने गांव आकर अपने घर की छत पर मोतियों का प्रोडक्शन शुरू कर दिया.

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रतलाम के एक गांव में हो रही है मोतियों की खेती

Madhya Pradesh News: पूरे देश में सेव, साड़ी और सोने के लिए मशहूर रतलाम (Ratlam) अब मोतियों की खेती के लिए भी प्रसिद्ध होता जा रहा है. मध्य प्रदेश के रतलाम में मोतियों की खेती होने लगी है. जी हां सुनकर भले ही यकीन ना हो लेकिन रतलाम के एक गांव में मोतियों की खेती हो रही है. यहां के जावरा ब्लॉक के एक गांव में मोतियों की खेती की जा रही है.

दिलीप ने अपने खेत में ही तैयार कर दिए मोती

रतलाम के जावरा ब्लॉक के छोटे से गांव नौलखा में मोतियों की खेती हो रही है. यह गांव काफी पिछड़ा हुआ है लेकिन मोतियों की खेती को लेकर इस समय ये सुर्खियों में बना हुआ है. पहले किताबों में हमने पढ़ा है की मोती तो समुद्र में से निकलते हैं लेकिन एक युवा ने रतलाम में ही अपने खेत में इसको तैयार कर डाला है. इस शख्स का नाम दिलीप जगदेव है, ये बेहद साधारण परिवार से आते हैं और चार भाई -बहनों में सबसे छोटे हैं.

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पहले बेचा करते थे सीसीटीवी

दिलीप ने 2018 में इस तरह की खेती की शुरुआत की थी. पहले दिलीप रतलाम में सीसीटीवी बेचा करते थे, लेकिन मोबाइल पर उन्होंने मोती की खेती का आईडिया देखा और भुवनेश्वर जाकर सीफा सरकारी कॉलेज से मोती की खेती सीख ली. इसके बाद उन्होंने अपने गांव आकर अपने घर की छत पर मोतियों का प्रोडक्शन शुरू कर दिया. ये बात 2018 की है. उन्होंने सबसे पहले बेंगलुरु से 500 सीप लाकर मोती की खेती शुरू की थी, जो अब 500 से बढ़कर 7000 मोती तक पहुंच गई है. दिलीप का अगला टारगेट 20 हजार मोती पैदा करने का है. एक सीप से दो मोती पैदा होते हैं और यह सीप बेंगलुरु से लाई जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में एक मोती को बनने में 12 से 18 महीने का समय लगता है. 

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