Rani Durgavati Balidan Diwas: चन्देलों की बेटी थी, गौंडवाने की रानी थी, चण्डी थी, रणचण्डी थी, वह दुर्गावती भवानी थी... ये पंक्तियां वीरांगना रानी दुर्गावती के लिए है. धर्म एवं राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाली, अदम्य साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति, महान वीरांगना रानी दुर्गावती का आज बलिदान दिवस है. रानी दुर्गावती, जिनकी तुलना केवल काकतीय वंश की रुद्रमा देवी और फ्रांस की जोन ऑफ आर्क से की जा सकती है, 52 में से 51 युद्धों में रानी दुर्गावती अपराजेय रहीं. वह युद्ध के नौ पारंपरिक व्यूहों जैसे वज्र व्यूह, क्रौंच व्यूह, अर्धचंद्र व्यूह, मंडल व्यूह, चक्रशकट व्यूह, मगर व्यूह, औरमी व्यूह, गरुड़ व्यूह और श्रींगातका व्यूह से भली-भांति परिचित थीं. खासकर, क्रौंच व्यूह और अर्द्धचंद्र व्यूह में उनकी महारत थी. क्रौंच व्यूह का प्रयोग बड़ी सेना के लिए होता था, जिसमें पंखों में सेना और चोंच पर वीरांगना रानी दुर्गावती होती थीं. दूसरी ओर अर्द्धचंद्र व्यूह का प्रयोग छोटी सेना के साथ बड़े दुश्मन पर आक्रमण करने के लिए किया जाता था. आइए जानते हैं रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर उनके जीवन के बारे में...
प्रारंभिक जीवन
वीरांगना रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को दुर्गाष्टमी के दिन कालिंजर के किले में राजा कीरत सिंह और उनकी पत्नी कमलावती के घर हुआ था. राजा संग्रामशाह और उनके पुत्र दलपतिशाह, राजा कीरत सिंह की पुत्री वीरांगना दुर्गावती के सौंदर्य, शिष्टता, मधुरता और पराक्रम से बहुत प्रभावित थे. इसीलिए संग्रामशाह ने कीरत सिंह से उनकी पुत्री का विवाह अपने पुत्र दलपतिशाह के साथ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया.
ऐसी होती थी रानी की रणनीति
रानी दुर्गावती की रणनीति अकस्मात् आक्रमण पर आधारित होती थी. वह दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में निपुण थीं. गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभालते ही उन्होंने 52 गढ़ों को बढ़ा कर 57 कर दिया था और परगनों की संख्या भी 57 कर दी थी. उनकी सेना में 20 हजार अश्वारोही, एक सहस्र हाथी और प्रचुर संख्या में पैदल सैनिक थे. गोंडवाना साम्राज्य भारत का पहला साम्राज्य था जहां महिला सेना का भी दस्ता था, जिसकी कमान रानी दुर्गावती की बहिन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी संभालती थीं.
16 वर्ष का शासन, 51 युद्धों में अपराजेय
रानी दुर्गावती के 16 वर्षों के शासन काल में, यह साम्राज्य पूरे भारत में ऐसा एकमात्र राज्य था जहाँ कर के रूप में सोने के सिक्के लिए जाते थे, राज कार्य में हाथियों का उपयोग किया जाता था. रानी दुर्गावती के शौर्य, पराक्रम, प्रबंधन और देशभक्ति के सामने दुनिया की कई रानी महारानी फीकी थी. दुर्भाग्यवश, भारतीय इतिहासकारों ने उनके और गोंडवाना साम्राज्य के महान इतिहास को नजरअंदाज कर दिया है. वे 51 युद्धों में अपराजेय थीं.
नारी सशक्तिकरण
नारी सशक्तिकरण की दिशा में भी रानी दुर्गावती ने अद्वितीय कार्य किए. उन्होंने गढ़ा में पचमठा में स्त्रियों के लिए पहला गुरुकुल स्थापित किया, जिसमें स्वामी विठ्ठलनाथ ने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान की. भेड़ाघाट में स्थित कलचुरि कालीन तांत्रिक विश्वविद्यालय - गोलकी मठ का जीर्णोद्धार भी उनके कार्यकाल में हुआ, जहां संस्कृत, प्राकृत और पाली भाषा में शिक्षा प्राप्त होती थी.
रानी की शहादत
अकबर की सेना ने रानी दुर्गावती पर तीन बार आक्रमण किया, लेकिन रानी ने तीनों बार उन्हें पराजित कर दिया. एक महिला शासक से इतनी बार हारने के बाद असफ खां गुस्से से भर गया और 1564 में उसने एक बार फिर रानी के राज्य पर आक्रमण कर दिया. उसने छल-कपट का सहारा लेते हुए सिंगारगढ़ को चारों ओर से घेर लिया और युद्ध में बड़ी तोपों का इस्तेमाल किया. युद्ध के दौरान रानी दुर्गावती और उनके कई सैनिक घायल हो गए, रानी की आंख पर एक तीर लग गया. उनके कुछ सैनिकों ने उन्हें युद्धभूमि छोड़ने की सलाह दी, लेकिन रानी ने बहादुरी से इनकार कर दिया.
यह ऐतिहासिक युद्ध जबलपुर के पास मदन महल किले में हुआ था, जहां रानी की शहादत हुई थी और आज वहां रानी दुर्गावती की समाधि स्थित है.
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