MP में इस जिले से शुरू हुआ था Quit India Movement, जानें - क्या है राम सराय भवन का इतिहास

Bharat Chhodo Andolan: विदिशा में हर साल भारत की आजादी के दिन एक खास जगह को जरूर याद किया जाता है. इसका खास इतिहास है कि ये वही जगह है, जहां से एमपी में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

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एमपी में इस जिले में युवाओं ने शुरू की थी भारत छोड़ो आंदोलन

Start of Quit India Movement: भारत की आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई के पन्नों में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के विदिशा (Vidisha) का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. सन 1942 का वो दौर, जब विदिशा के युवाओं ने विदेशी कपड़ों की होलिका जलाकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था. कहा जाता है कि एमपी में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत यहीं से हुई थी. अंग्रेजी हुकूमत के समय विदिशा, सिंधिया रियासत का हिस्सा था. कांग्रेस के बैनर तले यहां कोई भी राजनीतिक गतिविधि प्रतिबंधित थी. ऐसे में विदिशा के लोगों ने प्रजामंडल और सार्वजनिक सभा नाम से संगठन बनाकर आजादी की अलख जगाई. 1930 में दत्तात्रेय सरवटे ने प्रजामंडल और 1937 में रामसहाय जी ने सार्वजनिक सभा बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम शुरू की.

विदिशा से शुरू हुआ था एमपी में भारत छोड़ो आंदोलन

अंग्रेजी कपड़ों की होलिका

विदिशा में 1942 के अगस्त में युवाओं ने घर–घर जाकर विदेशी कपड़े इकट्ठा किए और जगह–जगह उनकी होलिका जलाकर आजादी का शंखनाद किया था. यह केवल कपड़ों की आग नहीं थी, बल्कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की शुरुआत थी. विदिशा का राम सराय भवन, यानी राम कुटी आजादी की दास्तान आज भी बताता है.

राम सराय भवन का इतिहास

शहर में बसा राम सराय भवन वही जगह है, जहां जब एमपी को मध्य भारत के नाम से जाना जाता था, तब यहीं बैठकर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार और भारत छोड़ो आंदोलन की योजनाएं बनीं और उन्हें अमल में लाया गया. यही वह जगह थी, जहां यह ठान लिया गया था कि अब विदेशी कपड़ों का पूरी तरह बहिष्कार होगा. विदिशा के हर गली-मोहल्ले में विदेशी कपड़ों की होली जलने लगी और यह भवन उस दौर का जीवंत गवाह बन गया.

विदिशा से शुरू हुआ था एमपी में भारत छोड़ो आंदोलन

क्या कहते हैं इतिहासकार?

इतिहासकार अरविंद शर्मा बताते हैं कि महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का जो आंदोलन चलाया था, उसकी गूंज विदिशा में और तेज हुई. वे कहते हैं कि आज भी विदेशी टैरिफ और आत्मनिर्भरता के सवाल पर वैसा ही जनजागरण जरूरी है. विचारक बृजेन्द्र पांडे बताते हैं कि विदिशा सिंधिया रियासत का हिस्सा था. लेकिन, यहां आजादी का जुनून महिलाओं में भी था. उन्होंने ग्वालियर जाकर वहां के आईजी को चूड़ियां भेंट की थीं, जो उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत के सामने खुली चुनौती थी.

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विदिशा का भारत की आजादी में खास योगदान

विदिशा का योगदान केवल आंदोलन तक सीमित नहीं रहा. आजादी के बाद रामसहाय जी मध्यभारत प्रांत के विधानसभा अध्यक्ष बने, राज्यसभा पहुंचे और संविधान सभा के सदस्य के रूप में देश की नींव रखने वालों में शामिल हुए. विदिशा का यह इतिहास आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा है. यह याद दिलाता है कि आजादी केवल एक दिन का जश्न नहीं, बल्कि पीढ़ियों की कुर्बानियों का नतीजा है.

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