MP में इंदौर से लेकर भोपाल तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेड़ा गर्क ! जमीनी हकीकत आपको करेगी हैरान

Public Transport System news: क्षेत्रफल के लिहाज से मध्यप्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. मतलब यहां राज्य के एक कोने से दूसरे कोने में जाने के लिए बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था का होना बहुत जरुरी है. लेकिन यहां के छोटे शहरों को तो छोड़िए बड़े शहरों मसलन इंदौर में 51 हजार लोगों पर सिर्फ एक बस और भोपाल में 25 हजार लोगों पर सिर्फ एक बस की सुविधा उपलब्ध है. क्या है जमीनी हकीकत जानिए इस रिपोर्ट में

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MP Public Transport: मध्य प्रदेश के शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की हालत देखकर लगता है कि सरकार को जनता पर एक अटूट विश्वास है-"चलो, जैसे-तैसे जी ही लेंगे!" राजधानी भोपाल से लेकर इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर तक...यानी हर बड़े शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ये हाल है कि यदि किसी दिन आप वक्त पर दफ्तर पहुंच गए तो शायद आपके बॉस आपसे पूछ बैठेंगे- कैसे कर लिया?...दरअसल ये तंज यूं ही नहीं है...दूसरे जिलों-शहरों की बात तो छोड़िए खुद राज्य की राजधानी भोपाल में 150 से ज्यादा बसें खड़े-खड़े कबाड़ हो गईं लेकिन सड़कों पर नहीं दौड़ीं. इंदौर में हालत ये है कि 51 हजार लोगों पर सिर्फ एक बस की सुविधा है और राजधानी भोपाल में यही आंकड़ा 25 हजार लोगों पर सिर्फ एक बस का है.

गहराई से देखें तो बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती महंगाई और घटती बसों की संख्या ने राज्य में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम का बेड़ा गर्क कर दिया है. हालत ये है कि अब खुद सत्ताधारी दल के विधायक ही सवाल उठाने लगे हैं. ऐसी स्थिति क्यों है और सरकार का इस पर क्या जवाब है इस पर रिपोर्ट में आगे बात करेंगे पहले जमीनी हकीकत को जान लीजिए. 

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चार बार टेंडर निकला, कोई नहीं आया

ऊपर दिए गए आंकड़े बताते हैं कि राज्य में हालात कैसे हैं? सबसे पहले बात राजधानी भोपाल से शुरू करते हैं. यहां अफसरों की चुस्ती की वजह से 150 से ज्यादा सिटी लिंक बसें 'यादों के म्यूजियम' में तब्दील हो गईं. जानकारी के अनुसार यहां इन बसों को चलाने के लिए चार बार टेंडर निकाला गया. लेकिन इसके बावजूद किसी कंपनी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई. शायद उन्हें लगा होगा कि बसों को चलाने  का धंधा इतना मंदा है कि इसमें अप्लाई करने की भी जरुरत नहीं है. इसका अंजाम ये हो रहा है कि आम जनता को या तो ऑटो वालों की मनमानी झेलनी पड़ रही है या फिर धूप में खड़े होकर अपने धैर्य की परीक्षा देनी पड़ रही है.  इस गर्मी के मौसम में आपको भोपाल में बसों का इंतजार करते परेशान यात्री बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. 

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लापरवाही की वजह से भोपाल में 150 सौ बसें कबाड़ में तब्दील हो गईं

बीजेपी विधायक ने परिवहन व्यवस्था पर उठाए सवाल

अब एक दूसरी तस्वीर पर बात कर लेते हैं.बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने सरकार से विधानसभा में इस स्थिति पर सवाल पूछा. रामेश्वर शर्मा ने प्रभारी मंत्री चैतन्य कश्यप से पूछा कि परिवहन व्यवस्था में सुधार कब और कैसे होगा? इस पर चैतन्य ने बताया कि सरकार ने बजट में परिवहन सेवा को बेहतर करने के लिए बजट में प्रवधान किया है, जल्दी परिवहन व्यवस्था को बेहतर के लिया जायेगा. हम नया निगम शुरू करेंगे. इससे पहले जब प्रभारी मंत्री से ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर सवाल किया गया तो उन्होंने इलेक्ट्रिक बसों की योजना का जिक्र किया था. हालांकि GIS समिट के दौरान इंदौर से इलेक्ट्रिक बसें लाई गईं और इसमें वीआईपी लोग सफर करते रहे.  

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अकेला ऐसा राज्य जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम नहीं

 इस मसले पर हमने जानकारों से भी बात की. रिटायर्ड आईएएस एस.एस उप्पल का कहना है कि पहले बीआरटीएस सिस्टम बना था लेकिन दबाव बढ़ने पर उसे बंद कर दिया गया. सरकार के विभागों में समन्वय नहीं होने की वजह से जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. चिंता की बात ये है कि ये सारी चीजें प्रशासन की जानकारी में भी हैं. अफसरों की इस नाकामी की वजह से विपक्ष को भी बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया. कांग्रेस नेता मुकेश नायक कहते हैं देश में मध्य प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहां पब्लिक के लिए कोई ट्रांसपोर्ट नहीं है. पता नहीं इतनी बसें आईं वो कहां चली गईं. सरकार कहती है कि जल्द ही परिवहन निगम शुरू करेंगे लेकिन इसका कोई खास असर नहीं होगा.  जाहिर है अफसरों की सुस्ती और सरकार की बेरुखी की वजह से जनता अब हर रोज़ एक नई बस सेवा योजना का सपना देखने के लिए मजबूर है. 
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