अशोकनगर: टीचर के जुनून से बदली सरकारी स्कूल की तस्वीर, स्मार्ट टीवी से बच्चे यहां सीखते हैं क, ख, ग...

Success Story: माखन सिंह यादव इस विद्यालय में 18 दिसंबर 2007 को माध्यमिक शिक्षक बन कर पहुंचे थे. यह उनकी पहली पोस्टिंग थी. उस समय इस विद्यालय में प्राथमिक में 30 तो माध्यमिक में कुल 16 विद्यार्थी थे. उन्होंने पोस्टिंग के बाद से घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाने के लिए पैरेंट्स को मनाया. अपनी सैलरी से स्कूल में सुधार कार्य कराए. सरकार की ओर से मिले एक-एक पैसे को बचाकर मजबूत भवन बनवाया.

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Positive News: मध्य प्रदेश में जहां कई सरकारी स्कूल जर्जर भवन (Dilapidated buildings), बच्चों की कमी (Shortage of School Children), शैक्षणिक गुणवत्ता की कमी (Lack of Educational Quality), शिक्षकों की अनुपस्थिति (Absence of Teachers), घटिया मध्याह्न भोजन (Mid Day Meal) और बदहाल शौचालयों आदि के लिए बदनाम हैं. वहीं अशोकनगर जिले (Ashoknagar District) की सुदूर सीमा पर मौजूद एक माध्यमिक विद्यालय इन सभी मापदंडों पर खरा उतर रहा है. इस स्कूल में शैक्षणिक गुणवत्ता की स्थिति कुछ ऐसी है कि अशोकनगर जिले के गांवों से ही नहीं बल्कि विदिशा और गुना जिले के सीमावर्ती गांवों से कई बच्चे यहां पढ़ने आ रहे हैं.

स्मार्ट टीवी से पढ़ाई करते सरकारी स्कूल के बच्चे

कहां है यह स्कूल?

जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर अशोकनगर, गुना और विदिशा की सीमा पर बसा सूखा आमखेड़ा गांव वैसे तो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों का एक छोटा सा गांव है. लेकिन इस गांव का माध्यमिक स्कूल बीते एक दशक से इस क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहा है. इस विद्यालय से पढ़कर निकले कुछ विद्यार्थी सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में जा चुके हैं, तो वहीं कई विद्यार्थी निजी क्षेत्र (Private Sector) में भी सफलता के झंडे लहरा रहे हैं.

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हेडमास्टर माखन सिंह यादव

क्या खास है इस स्कूल में?

इस स्कूल की व्यवस्था को देखा जाए तो यहां बच्चों को बड़े-बड़े कोचिंग संस्थान की तरह स्मार्ट टीवी (Smart TV) के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती है. इस स्कूज की दो कक्षाओं में स्मार्ट टीवी लगाए गए हैं. इस बेहतर प्रबंधन के बारे में बात करते हुए हेड मास्टर (Head Master) माखन सिंह यादव ने बताया कि 2011 में उन्होंने खुद के वेतन से 22 हजार रुपए खर्च करते हुए एलईडी टीवी (LED TV) लगवायी थी. उसके बाद उन्होंने इंटरनेट का उपयोग करके बच्चों को पढ़ने की रुचि बढ़ाई.

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कुछ महीनों पहले ही राज्य शिक्षा केन्द्र ने स्कूल के लिए दो स्मार्ट टीवी भेजे हैं. जिन पर प्राथमिक कक्षा के बच्चे क, ख, ग... सीखते हैं. तो वहीं माध्यमिक कक्षा के बच्चों को इसके जरिए गणित (Math) और अंग्रेजी (English) सिखाया जाता है. फिलहाल इस समय स्कूल के बच्चे स्मार्ट टीवी पर 26 जनवरी की तैयारी करते नजर आ रहे हैं.

स्मार्ट टीवी के जरिए 26 जनवरी की तैयारी करते स्कूली बच्चे

एकीकृत शाला परिसर के तहत इस विद्यालय में कक्षा एक से आठ तक की कक्षाएं संचालित हैं. जिनमें इस वर्ष कुल 258 स्टूडेंट हैं.

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दो दर्जन छात्राएं कॉलेज तो एक दर्जन छात्र नवोदय में

2007 में इस विद्यालय में कुल 2 छात्राएं थीं. हेडमास्टर यादव ने स्थानीय पैरेंट्स को बच्चियों की सुरक्षा की गारंटी दी और उन्हें स्कूल से जोड़ा. वर्तमान में इस स्कूल में 112 छात्राएं हैं. अशोकनगर के कॉलेज में इस स्कूल से निकलकर पहुंची 25 छात्राएं पढ़ रही हैं. वहीं इसी स्कूल से एक दर्जन बच्चे निकलकर नवोदय विद्यालय पहुंचे हैं. राजपुर हायर सेकेण्डरी स्कूल की मेरिट लिस्ट (Merit List) में हर साल इसी स्कूल से पहुंचे बच्चे टॉपर रहते हैं. इस स्कूल से पढ़कर निकले 6 विद्यार्थियों ने गांव में ही एक निजी विद्यालय खोला है, जिसमें वर्तमान में 600 से अधिक छात्र हैं.

हेडमास्टर के इरादों ने बदल दी सूरत

माखन सिंह यादव इस विद्यालय में 18 दिसंबर 2007 को माध्यमिक शिक्षक बन कर पहुंचे थे. यह उनकी पहली पोस्टिंग थी. उस समय इस विद्यालय में प्राथमिक में 30 तो माध्यमिक में कुल 16 विद्यार्थी थे. उन्होंने पोस्टिंग के बाद से घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाने के लिए पैरेंट्स को मनाया. अपनी सैलरी से स्कूल में सुधार कार्य कराए. सरकार की ओर से मिले एक-एक पैसे को बचाकर मजबूत भवन बनवाया. स्कूल परिसर को चारों ओर से सुरक्षित किया. प्रवेश द्वार बनवाया. शौचालय में स्थाई पानी की टंकी, पास के हैण्डपंप में मोटरपंप डालकर पानी की सप्लाई सुनिश्चित कराई. इन सबका नजीता है कि यह स्कूल निजी स्कूलों को भी मात देता दिखाई देता है. माखन सिंह अब तक करीब साढ़े तीन लाख रुपए अपनी वेतन में से स्कूल के लिए खर्च कर चुके हैं.

स्वादिष्ट मध्यान्ह भोजन, सर्दी में चावल की जगह दे रहे पुलाव

स्कूल में वितरित होने वाला मध्याह्न भोजन भी घर के भोजन की तरह स्वादिष्ट है. इसे स्कूल प्रबंधन समिति बनाती है. एक भंडार कक्ष है, जिसमें एक माह का राशन एक साथ मंगाकर रखा जाता है. 5 रसोईयां महिलाएं भोजन बनाती हैं. जिसका सैम्पल एक टिफिन में रखा जाता है. सभी बच्चे कतारों में बैठकर भोजन करते हैं. इसी भोजन को स्टाफ भी करता है. मेन्यू का पूरा ख्याल रखा जाता है, लेकिन मौसम को ध्यान में रखकर चावल की जगह पुलाव बनाया जा रहा है. स्थिति यह है कि आसपास के गांवों में यदि अधिकारियों का दौरा हो तो स्कूल से टिफिन मंगाए जाते हैं.

लॉकडाउन के दौरान दालानों में लटकाए थे आधा दर्जन रेडियो

बच्चों में शिक्षा के प्रति अरुचि पैदा न हो, इसके लिए जब कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन लगा था तब हेडमास्टर ने 6 रेडियो खरीदकर गांव की दालानों में लटकाए थे. राज्य शिक्षा केन्द्र से इस पर ऑनलाइन कक्षाएं (Online Classes) संचालित की जाती थीं. हेडमास्टर की इस कोशिश के कारण बच्चे कई महीनों स्कूल से दूर रहने के बाद भी शिक्षा से अलग नहीं हुए. माखन सिंह द्वारा खुद के खर्च से विद्यालय में 28 पंखे और एक इन्वर्टर भी लगवाया गया है. इस विद्यालय में एक नियमित सफाईकर्मी भी है, जिससे शौचालय चकाचक रहते हैं. शौचालयों में पानी की सुचारू आपूर्ति के साथ फ्लश लगे हुए हैं. बच्चों को हाथ धोने के लिए साबुन भी रखी रहती है.

मुख्यमंत्री ने भी सराही थीं व्यवस्थाएं

इस विद्यालय की सराहना पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) भी कर चुके हैं. वह मुख्यमंत्री पद पर रहते वर्ष 2016 में ओलावृष्टि के बाद इस गांव में आए थे. तब अचानक से स्कूल पहुंचे और यहां की व्यवस्थाओं की सराहना की थी.

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