PM College of Excellence: प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस में प्रभारी प्राचार्यों की नियुक्ति के मामले में उच्च शिक्षा विभाग को हाई कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है. उच्च शिक्षा विभाग ने अनेक कॉलेजों में पदस्थ प्रभारी प्राचार्यों को हटाकर अन्य को नियुक्त किया, जो उनसे जूनियर है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के जस्टिस विवेक जैन ने डॉ. बृजकिशोर तिवारी व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए प्रभारी प्राचार्य के पद पर जूनियर प्रोफेसर की नियुक्ति को निरस्त कर दिया.
प्रभारी प्राचार्य के पद पर जूनियर प्रोफेसर की नियुक्ति निरस्त
अपने आदेश मे हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी नहीं की जाए. किसी भी कॉलेज में यदि पहले से वरिष्ठ प्रोफेसर पदस्थ है, तो ऐसी स्थिति में किसी जूनियर प्रोफेसर को प्रभारी प्राचार्य बनाकर नहीं भेजा जाए. हालांकि कोर्ट ने आदेश में कहा कि जिन कॉलेजों में सीनियर प्रोफेसर प्रभारी प्राचार्य के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन वो लिखित में जूनियर प्रोफेसर के अंडर काम करने के लिए तैयार हैं. ऐसी स्थिति में उच्च शिक्षा विभाग किसी जूनियर प्रोफेसर को प्रभारी प्राचार्य बना सकता है.
प्राचार्य पद की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं रखने का आरोप
दरअसल, साल 2024 में 72 सरकारी कॉलेजों को प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस बनाने का निर्णय लिया गया. इसमें तय किया गया कि प्रिंसिपल फैकल्टी की नियुक्ति उच्च शिक्षा विभाग में उपलब्ध ऊर्जावान लोगों से की जाएगी. याचिकाकर्ता डॉ. बृज किशोर तिवारी जो कि शासकीय पीजी कॉलेज गुना में प्रोफेसर (मैथ्स) पदस्थ हैं और 10 साल से अधिक समय से प्रभारी प्राचार्य के पद पर कार्यरत थे. 8 नवंबर 2024 को डॉ. प्रभात चौधरी (राजनीति विज्ञान) को प्रभारी प्राचार्य बनाया गया. इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. कोर्ट को बताया गया कि डॉ. चौधरी याची से लगभग 10 साल जूनियर हैं. पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस में प्राचार्य पद की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं रखी गई.
हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी
केस में सुनवाई के दौरान शासन की ओर से दलील दी गई, याची चाहें तो अपनी पसंद के तीन कॉलेजों के नाम बता दें, ताकि उन्हें वहां स्थानांतरित किया जा सके, अन्यथा उन्हें किसी दूर के कॉलेज में पदस्थ भी किया जा सकता है. इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि पूर्व में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस में नियुक्तियों की प्रक्रिया पर उन प्रोफेसरों ने आपत्ति जताई थी, जो लंबे समय से कॉलेजों में पदस्थ हैं. उनका ये तर्क था कि पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस में पदस्थापना के लिए राज्य सरकार ने आवेदन आमंत्रित किए हैं. ऐसे में जो प्रोफेसर इस प्रक्रिया में भाग नहीं लेना चाहते, उनके कॉलेज में किसी जूनियर को प्रभारी प्राचार्य बनाया जा सकता है. ऐसा होने से उन्हें जूनियर के अंडर में काम करना पड़ेगा.
उच्च शिक्षा विभाग को हाई कोर्ट से फटकार
कोर्ट ने कहा कि इस पर शासन की तरफ से ये अंडरटेकिंग दी गई थी कि इस प्रक्रिया में प्रोफेसर की वरिष्ठता की अनदेखी नहीं की जाएगी, लेकिन शासन ने नियुक्ति का जो मॉडल तैयार किया, उसमें ये विसंगति देखने को मिल रही है, जिसमें जूनियर को प्रभारी प्राचार्य बनाया गया.
हाई कोर्ट ने कहा कि पक्षकारों को उन प्रोफेसरों की वरिष्ठता का अपमान करने की अनुमति कभी नहीं दी, जिन्होंने पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस के लिए आवेदन नहीं दिया या फिर आवेदन तो दिया, लेकिन प्रभारी प्राचार्य बनने में सफल नहीं हो सके. इस केस में शासन ने मनमाने रवैए का प्रदर्शन किया.
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