Parali Burning in Madhya Pradesh: पराली जलाने के मामले में मध्य प्रदेश देश में पहले नंबर पर है... यकीनन, ये खबर बहुत चिंताजनक है... लेकिन, उसी मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के आदिवासी बाहुल्य जिले इस मामले में मिसाल बनकर सामने आए हैं. यहां खेती के पारंपरिक तरीकों (Traditional Farming Methods) की वजह से इसका समाधान मिल सकता है. एमपी ने पराली जलाने (Parali in MP) की घटनाओं में पंजाब को पीछे छोड़ दिया है. यहां एक महीने में 1200 से अधिक मामले सामने आए हैं.
प्रदेश के कुछ जिले के किसान कहते हैं कि पराली जलाना उनके लिए मजबूरी है. उनके पास दूसरा विकल्प नहीं है. तो वहीं, दूसरी तरफ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के किसान पराली के मामले में मिसाल साबित हो रहे हैं, जहां इन क्षेत्रों से पराली के सबसे कम मामले सामने आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं प्रदेश में पराली का क्या हाल है और किसानों का और सरकार का इसको लेकर क्या कहना है.
किसानों ने बताई अपनी मजबूरी
राजेश काजले नर्मदापुरम जिले के केसला गांव में रहने वाले एक किसान हैं. इनकी 1 एकड़ की छोटी सी जोत है. पराली जलाने को लेकर ये कहते हैं कि फसल कट गया. इसके बाद जानवर चरते हैं. इसके बाद डंठल रहती है, फिर बखर देते हैं. फिर गेंहू लगा लेंगे. इसे जलाने से प्रदूषण तो होता है, दिक्कत होती है. कोई दूसरा तरीका मिलेगा तो वही करेंगे. लेकिन, अभी पराली को जलाना मजबूरी है.
आदिवासी किसानों ने बताए पराली जलाने के विकल्प
एमपी के आदिवासी बाहुल्य जिलों में पराली को पशुओं के चारे के रूप में, खाद बनाने के लिए, ऊर्जा उत्पादन, मिट्टी की दीवार बनाने में और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है . ग्वालियर-चंबल में किसान सुपर सीडर का इस्तेमाल भी करने लगे हैं, जो नरवाई को मिट्टी में मिला देता है. इससे गेहूं की फसल के लिये हरी खाद की पूर्ति हो जाती है. नरवाई जलाए बगैर सीधे बोवनी से समय व लागत की बचत भी होती है. सुपर सीडर ढाई से तीन लाख का आता है, लेकिन इसके लिये सरकार 1.05 लाख तक का अनुदान भी देती है.
इन तरीकों पर हो सकते हैं शिफ्ट
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों के किसान पराली जलाने के मामले में सबसे पीछे हैं. इसके लिए सही विकल्प इन्हें पता है. बैतूल जिले के मल्हारापंखा गांव की रहने वाली ज्योति अहाके कहा कहना है कि वे पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं. जलाने से प्रदूषण फैलता है. इसकी जगह इसी को मवेशियों को चारा खिला देते हैं. राजना गांव के रहने वाले किसान कैलाश पराडकर का पराली न जलाने को लेकर कहना था कि उन लोगों को मवेशियों को खिलाने के लिए चारा कम पड़ता है, इसलिए नहीं जलाते, बल्कि इसी को मवेशियों को परोस देते हैं.
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कैबिनेट मंत्री की किसानों से अपील
कैबिनेट मंत्री उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग नारायण सिंह कुशवाहा का पराली जलाने के मामले को लेकर कहा, 'किसानों से मेरा अनुरोध है कि अब पराली जलाने से जितना फायदा नहीं होता, उतना नुकसान होता है. जमीन के अंदर कई पोषक तत्व रहते हैं, जीवाणु रहते हैं, वह भी पराली जलाने से नष्ट होते हैं. पराली को जलाने की बजाय इकट्ठा कर CNG प्लांट के लिए दे सकते हैं. इसका अन्य माध्यमों में इस्तेमाल कर सकते हैं. पराली जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है.
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