57वीं पुण्यतिथि: समाज व राष्ट्र निर्माण का दर्शन देने वाले अंत्योदय के प्रणेता पं दीनदयाल : CM मोहन

सीएम मोहन यादव ने लिखा है कि हमारी संस्कृति संपूर्ण जीवन, संपूर्ण सृष्टि का समग्र विचार करती है. यही एकात्म भाव व्यष्टि से समष्टि की रचना करता है. यही पंडित दीनदयाल जी के विकास का व्यापक पक्ष है, सार्वभौम है, प्रासंगिक है. इसमें श्रीकृष्ण के वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से लेकर आज के ग्लोबलाइज्ड युग का समावेश है.

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Pandit Deendayal Upadhyay: पुण्यतिथि पर सीएम मोहन ने दीनदयाल उपाध्याय को किया याद

Pandit Deendayal Upadhyaya Punyatithi: इस साल पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyaya) की 56वीं पुण्यतिथि (56th Death Anniversary) मंगलवार 11 फरवरी को है. दीनदयाल उपाध्याय को लेकर सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने अपने ब्लॉग (Blog) में लिखा है कि व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र निर्माण का दर्शन देने वाले विलक्षण व्यक्तित्व के धनी, एकात्म मानव दर्शन तथा अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के चरणों में कोटिशः नमन. भारतीय जन संघ पार्टी (Bharatiya Jana Sangh Party) के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता, एकात्म मानववाद एवं अंत्योदय दर्शन के प्रणेता थे.

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राजनीति सत्ता के लिए नहीं अपितु समाज की सेवा के लिए हो

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ऋषि-राजनेता रहे जिन्होंने राजनैतिक चिंतन के लिए एकात्म मानवदर्शन का सूत्र दिया और शासन की नीतियां बनाने का मार्ग प्रशस्त किया. दीनदयाल जी जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्र जीवन दर्शन के दृष्टा हैं. पंडित जी द्वारा लगाए गए जनसंघ के पौधे का विस्तार विचार के रूप में देश ही नहीं दुनिया में भी हुआ है. उन्होंने एक ऐसी राजनैतिक धारा निर्मित की जिसका लक्ष्य राष्ट्र निर्माण है. उनका मानना था कि राजनीति सत्ता के लिए नहीं अपितु समाज की सेवा के लिए हो, स्वतंत्रता के साथ भारत राष्ट्र की यात्रा भारतीय दर्शन के अनुरूप होनी चाहिए.

पंडित जी ने भारत के भविष्य की कल्पना वेदों में वर्णित चार पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के आधार पर की थी. यह चारों पुरुषार्थ मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर के संतुलन से संभव है. इससे ही एक आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का निर्माण हो सकता है.

पहला पुरुषार्थ धर्म है जिसमें शिक्षा, संस्कार और व्यवस्था है तो दूसरे अर्थ में साधन, संपन्नता और वैभव आता है. अर्थ उपार्जन सही तरीके से हो, इसके लिये पंडित दीनदयाल जी ने मानव धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. इस तरह धर्मानुकूल, अर्थात उचित मार्ग से अर्थ उपार्जन करने का मार्ग प्रशस्त किया. तीसरा पुरुषार्थ है काम, जिसमें मन की समस्त कामनाएं शामिल हैं. मनुष्य को संतुलित, समयानुकूल और सकारात्मक स्वरूप में कार्य करना चाहिए. चौथा पुरुषार्थ है मोक्ष, अर्थात संतोष की परम स्थिति। यदि व्यक्ति संतोषी होगा तो वह समाज और राष्ट्र निर्माण का आधार बन सकता है। इन चार पुरुषार्थों की अवधारणा के अनुसार, यदि व्यक्ति और समाज को विकास के अवसर दिये जायें तो स्वावलंबी और समर्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है.

राष्ट्र निर्माण और भविष्य की संकल्पना

पंडित दीनदयाल जी ने राष्ट्र निर्माण और भविष्य की संकल्पना को लेकर गहन चिंतन किया, जिसमें भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुरूप राष्ट्र की चित्ति से विराट तक की कल्पना थी. उनके विकास का आधार एकात्म मानव दर्शन है. इसमें संपूर्ण जीवन की रचनात्मक दृष्टि समाहित है. उन्होंने विकास की दिशा को भारतीय संस्कृति के एकात्म मानवदर्शन के मूल में खोजा.

हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में पंडित दीनदयाल जी की परिकल्पना को धरातल पर उतारने का प्रयास किया जा रहा है। दीनदयाल जी का मानना था कि अर्थव्यवस्था जितनी विकेन्द्रीकृत होगी उतनी नीचे तक जाएगी और यही स्वदेशी भाव के साथ सृजन का आधार होगा। माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत के आर्थिक विकास को लेकर जो कदम उठाये जा रहे हैं उसके मूल में दीनदयाल जी का अर्थदर्शन ही है। पंडित दीनदयाल जी ने भारत की कृषि, उद्योग, शिक्षा और आर्थिक नीति कैसी हो इन सबका विस्तार में उल्लेख किया है.

माननीय प्रधानमंत्री जी ने दीनदयाल जी के आर्थिक चिंतन को धरातल पर उतारा है. उनके मार्गदर्शन में हम विरासत से विकास की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं जो अंत्योदय लक्ष्य को पूर्ण करने की दिशा में महत्वपूर्ण है. दीनदयाल जी का कहना था कि जब तक अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति का कल्याण नहीं हो जाता तब तक विकास सही अर्थों में संभव नहीं है. इसी भाव को धरातल पर उतारते हुए मध्यप्रदेश में 7 रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया. इससे प्रदेश के हर अंचल, हर क्षेत्र के लोगों की आवश्यकता, क्षमता, मेधा और दक्षता को अवसर मिलेगा. प्रदेश का हर व्यक्ति इससे जुड़ेगा और विकास की धारा में शामिल होगा. यह समिट एक तरफ जहां प्रदेश के कोने-कोने से और गांव-गांव से लोगों को उद्योग से जोड़ेगी वहीं विश्व पटल पर उनके उत्पादों को पहचान दिलायेगी.

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इसके लिये हमने यूके, जर्मनी और जापान की यात्रा की है. हैदराबाद, कोयंबटूर तथा मुंबई में रोड-शो कर उद्योगपतियों को निवेश के लिये आमंत्रित किया है. क्षेत्रीय से लेकर ग्लोबल स्तर तक उद्योग के लिये किया गया यह पहला नवाचार है. इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में हम 24-25 फरवरी 2025 को भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन कर रहे हैं. यह समिट दीनदयाल जी के स्वदेशी और विकेन्द्रीकरण के चिंतन को सार्थक करेगी. हमारे उद्योग और व्यवसाय की श्रृंखला में अंतिम पंक्ति का व्यक्ति भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ पायेगा और अंत्योदय का लक्ष्य पूर्ण होगा.

दीनदयाल जी ने विकास को लेकर कल्पना की थी कि विश्व का ज्ञान और आज तक की अपनी संपूर्ण परंपरा के आधार पर हम गौरवशाली भारत का निर्माण करेंगे. प्रधानमंत्री जी का संकल्प है, स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक देश को विश्व की सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित करना.

मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता है कि मध्यप्रदेश को समृद्ध और संपन्न बनाने के लिये लोकल से ग्लोबल को जोड़ने का जो प्रयास किया है उसके परिणाम ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में दिखाई देंगे. मुझे विश्वास है कि हमारा यह प्रयास पंडित दीनदयाल जी के आर्थिक विकास के चिंतन अनुरूप विकसित मध्यप्रदेश निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.

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