Pado Ki Ladai: रायसेन में दीपावली के अगले दिन बाद यादव समाज द्वारा पाड़ों की लड़ाई कराई जाती है और इस लड़ाई को देखने सैकड़ो की संख्या में आमजन पहुंचते हैं. आपको बता दे की रायसेन में पाड़ों की लड़ाई से पहले गाय भैंसों को सजाया जाता है और उसके बाद ढोल ताशों के साथ यादव समाज के लोग पाड़ों को लेकर पहुंचते हैं. हीरामन बाबा के दरबार में और पूजा अर्चना करके हीरामन बाबा को दूध का भोग और भोग लगाने के बाद दूध के प्रसाद का वितरण करते है इसके बाद शुरू होता है पाड़ों की लड़ाई का खेल.
इनका दिखा जलवा
रायसेन में आज हुई पाड़ों की लड़ाई में रामस्वरूप यादव के भोला किंग और चैन सिंह यादव के पाड़े दोहरा सरदार के बीच दो बार लड़ाई हुई, लगभग आधे घंटे की तक चली इस लड़ाई में किसी पाड़े की जीत-हार नहीं हुई. इस लड़ाई को देखने के लिए पेड़ों पर चढ़े नजर आए लोग. तो वहीं लगभग आधे घंटे तक जब जीत हार का फैसला नहीं हो पाया तो उसके बाद दोनों पाड़ों को अलग-अलग किया गया.
क्या है परंपरा?
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में दीपावली के पावन पर्व के एक दिन बाद पाड़ों लड़ाई होती है. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 85 साल पुरानी परंपरा में पाड़ों की लड़ाई से पहले भगवान श्री कृष्णा जिस समाज में जन्मे उसी यादव समाज के लोग हीरामन बाबा की पूजा करते है. पूजा-अर्चना के दौरान दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण के बाद पाड़ों को लड़ाया जाता है.
रामस्वरूप यादव ने बताया कि पाड़ों की लड़ाई की ये लगभग 85 साल पुरानी परंपरा है जिसमें यादव समाज द्वारा पहले पूजा की जाती है और उसके बाद पाड़ों को लड़ाया जाता है. इसमें जीतने वाले पाड़े के मालिक को ईनाम दिया जाता है. आज की लड़ाई में किसी भी पाड़े की जीत हार नहीं हुई इसलिए दोनों पाड़ों को बराबरी पर घोषित किया गया.
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