क्या आपको समझ आती है थाने और कचहरी की भाषा? MP में बनाई जा रही नई डिक्शनरी

हरिशंकर परसाई ने लिखा था, 'परसाई, तुम पर भीड़ हावी है, तुम हमेशा भीड़ की बात करते हो और भीड़ के लिए लिखते हो लेकिन यहां मामला उल्टा है. भीड़ की बात खास भाषा में लिखी जा रही है जिसे ना लिखने वाले समझ रहे हैं ना ही वे जिनके लिए वह बात लिखी जा रही है.'

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MP में कानूनी भाषा को सरल कर रही पुलिस

Bhopal: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कुछ महीने पहले कहा था कि आम लोगों को भी कानून अपना लगना चाहिए. इस दिशा में सबसे पहला कदम है कानूनी भाषा (Legal Language). थाने में दर्ज एफआईआर हों या कचहरी के फैसले या जिरह सबको समझना मुश्किल है. कई शब्द तो ऐसे भी हैं जिसे खुद पुलिसवाले या वकील तक नहीं समझ पाते. प्रधानमंत्री जयपुर में हो रहे पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के तीन दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. उम्मीद है कि यहां भी इस बात पर चर्चा होगी.

देश के कई पुलिस थानों में आज भी उर्दू-फारसी शब्दों का इस्तेमाल होता है, जिसे आम आदमी तो क्या कई बार पुलिसवाले भी समझ नहीं पाते. मध्य प्रदेश पुलिस ने तो ऐसे 675 उर्दू-फारसी के शब्दों का चयन किया है जिनका हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद करके जिलों को भेजा गया है.

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नए अधिकारियों के लिए चुने गए हिंदी के सरल शब्द

डीआईजी मनोज सिंह ने कहा, 'हमारे जो कानून थे वे काफी पुराने थे. 1700 ईसवी के थे. अंग्रेजों ने आईपीसी-सीआरपीसी बनाई. उर्दू-फारसी के शब्द मौजूद रहे और अब सरकार ने हिंदी के अच्छे शब्द लिए हैं ताकि जो नए अधिकारी आ रहे हैं वे ठीक से समझ सकें और कार्रवाई कर सकें. इन शब्दों को बदलने के लिए 600 शब्दों की एक डिक्शनरी बनाई गई है और धीरे-धीरे इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

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MP हाई कोर्ट में करीब साढ़े चार लाख मामले लंबित

पेशे से वकील फहाद कुरैशी का कहना है कि भाषा थोड़ी सरल होनी चाहिए. थोड़ी आईपीसी, सीआरपीसी पढ़ लें. ये शब्द कोर्ट में इस्तेमाल होते हैं. कई बार ये बातें वजह बनती हैं, जिनसे अदालत में भी मामले लंबित रहते हैं.
मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय में 2022 में 4,33,884 मामले लंबित थे. वहीं 2023 में 4,49,893 मामले लंबित थे.

हरिशंकर परसाई ने लिखा था, 'परसाई, तुम पर भीड़ हावी है, तुम हमेशा भीड़ की बात करते हो और भीड़ के लिए लिखते हो लेकिन यहां मामला उल्टा है. भीड़ की बात खास भाषा में लिखी जा रही है जिसे ना लिखने वाले समझ रहे हैं ना ही वे जिनके लिए वह बात लिखी जा रही है.'

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