Madhya Pradesh News: म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के... दंगल फिल्म की ये लाइन आपने कई बार सुनी होगी. इसका मतलब साफ है कि आज के समय में बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. वो कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. नीमच के एक किसान पिता ने अपनी 4 बेटियों के पिता ने खेत पर ही प्रैक्टिस ग्राउंड बना दिया. जहां दिन रात कड़ी मेहनत के बाद बेटियों ने बड़े मुकाम हासिल किए हैं. जिसकी तारीफ हर कोई कर रहा है.
समस्याओं के बाद भी नहीं मानीं हार
कहते है सफलता सुविधाओं की मोहताज नहीं होती. इसे जावद के एक गरीब किसान भरत शर्मा व उनकी 4 बेटियों ने सिद्ध कर दिखाया है. गांव के बाहर दो बीघा खेत पर झोपड़ी बना कर रह रहे हैं. भरत के घर में टेलीविजन तक नहीं है. कुछ माह पहले ही एंड्रॉयड मोबाइल खरीदा है. दो महीने पहले ही घर में बिजली का कनेक्शन मिला वह भी अस्थाई, इससे पहले गोबर गैस और सौर ऊर्जा से इतनी रोशनी कर लेते थे कि पढ़ाई कर सकें.
पिता भरत ने बेटियों को सिखाया कि खुद पर विश्वास रखो, मैं पढ़ा सकता हूं लेकिन आत्मनिर्भर तुम्हें ही बनना होगा. भरत ने कभी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा, उन्होंने सब काम सिखाये, उन्होंने लोगों और समाज की परवाह नहीं की. इस दौरान लोगों ने बेटियों के रहन-सहन के साथ विवाह को लेकर भी ताने दिए. इन तानों की न तो भरत ने और न ही उनकी बेटियों ने परवाह की केवल अपने लक्ष्य की ओर वे बढ़ते चले.
भरत पुलिस व फौज में जाना चाहते थे. वे अखाड़े में भी जाते थे, लेकिन आर्थिक परेशानियों और जिम्मेदारियों के कारण उनका सपना अधूरा ही रह गया. इसके बाद उन्होंने अपना सपना पूरा करने के लिए बेटियों को प्रोत्साहित किया और आगे बढ़ाया. दंगल फिल्म से प्रेरणा लेकर खेत पर ही बेटियों के लिए प्रैक्टिस ट्रेक बनाया. शुरुआत में वे बेटियों को सुबह 4:00 बजे उठकर रनिंग के लिए ले जाते थे धीरे-धीरे लॉन्ग जंप हाई जंप गोला फेक जैसे फिजिकल गेम खिलाकर उनकी प्रैक्टिस करवाने लगे.
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आज उनकी बड़ी बेटी असम राइफल में क्लर्क हैं. दूसरी बेटी का मप्र पुलिस में चयन हो गया है. तीसरी बेटी ने बीएसएफ का फिजिकल पास कर लिया सिर्फ इंटरव्यू बाकी है. चौथी बेटी विक्रम यूनिवर्सिटी से लांग जंप में नेशनल खेलकर आई है और पढ़ाई कर रही है साथ ही वह भी देश सेवा में जाना चाहती है.
भरत शर्मा और उनके परिवार ने जीवन बड़े ही संघर्ष और गरीबी में बिताया. उनके पास केवल 2 बीघा जमीन है. चार बेटियां कल्पना, संजना, सुमन और अनीता.खेत पर ही कच्चा मकान है, जिसमें सभी रहते हैं. खास बात यह कि पिता भरत और सभी ने मिलकर यह कच्चा मकान उस समय बनाया था. भरत ने परिवार के पालन के लिए खेती के साथ मजदूरी का काम किया. बचपन से बेटियों को पढ़ाई के साथ खेलकूद में आगे रखा.
2021 में कल्पना का आर्मी में चयन हुआ वह आज असम राइफल में सेवा दे रही है. हाल ही में संजना का मप्र पुलिस में आरक्षक के पद पर चयन हुआ है. उसका ज्वाइनिंग लेटर आना है. तीसरी बेटी सुमन ने भी बीएसएफ फिजिकल निकाल लिया है. इंटरव्यू होना है.चौथी बेटी अनीता नेशनल लांग जंप खेलकर आई है. अभी बीए फर्स्ट ईयर की पढ़ाई के साथ एयर फोर्स व अन्य भर्ती परीक्षा दे रही है.
बेटियों ने वर्दी पहनने की इच्छा जताई
संजना ने बताया कि माता-पिता ने हमें शुरू से कहा कि खुद के दम पर खड़ा होना है. उन्होंने कितनी मेहनत की यह हमने देखा है इसलिए माता-पिता के संघर्ष को बेकार नहीं कर सकते हैं. मेरा एमपी पुलिस में फिजिकल हुआ तो उसमें 100/96 अंक पाकर प्रथम रही और मध्यप्रदेश में 5वीं रैंक बनी. हम सभी बहनें यूनिवर्सिटी तक खेली हैं.बेटियां जैसे-जैसे बड़ी होती जाती हैं, मां-बाप के ऊपर लोग और परिवारजन दबाव बनाते हैं कि अब इनकी शादी का समय हो गया है. इन सब बातों को हमने नजरअंदाज किया. मां ने कभी घर का काम नहीं करवाया.
छोटी बेटी अनीता बताती है कि शुरू-शुरू में प्रैक्टिस के समय उन्हें बुरा लगता था, कि दूसरे बच्चे तो सुबह 4:00 बजे आराम से सोते रहते हैं पर पिता हमारे साथ ऐसी ज्यादती क्यों कर रहे हैं. लेकिन दूसरी बहनों को देखकर साथ ही पिता की भावना को समझ कर, उन्हें समझ आ चुका है कि पिता उनके भविष्य को संवारने के लिए उसे समय सख्त हुआ करते थे. लोग हमारे छोटे बाल और रहने के तरीकों को लेकर कुछ समय पहले कमेंट करते थे लेकिन अब हमारे जैसा ही बनना चाहते हैं.
आज भरत को अपनी बेटियों पर नाज है और वह उन तमाम माता-पिता से कहना चाहते हैं जो बेटियों को अभिशाप मानते हैं उनका कहना है बेटी अभिशाप नहीं वरदान है वही बेटियां भी अपने माता-पिता पर गर्व करती हैं. वह कहती हैं कि महिलाएं भी किसी से काम नहीं है वह हर क्षेत्र में आगे जा सकती हैं कड़ी मेहनत के साथ माता-पिता और परिवार का यदि साथ मिल जाए तो कोई उन्हें रोक नहीं सकता.
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