NDTV पड़ताल :  34 लाख रुपये खर्च करके हजारों पेड़ लगाने का किया गया था दावा, लेकिन अब सिर्फ उड़ रही धूल 

NDTV की पड़ताल में सांची से सरकारी पौधरोपण का सच सामने आया है. 2009 में 34 लाख रुपये की लागत से हजारों पौधे लगाने के दावे किए गए. लेकिन आज जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. हालांकि, जब इस मामले पर वन विभाग के एसडीओ सुधीर कुमार पटेल सवाल पूछा गया, तो बचते हुए नजर आए. 

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Government Plantation : NDTV की पड़ताल ने सरकारी पौधरोपण के दावों की पोल खोल दी है. दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार वर्षों से पर्यावरण बचाने के लिए पौधरोपण की योजनाएं चलाती आ रही है. इन योजनाओं के तहत विदिशा के सांची के आमखेड़ा गांव में लाखों पौधे लगाए जाने का दावा किया गया था. सरकार ने तो इस उपलब्धि के दम पर गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी अपना नाम दर्ज करा लिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पौधे अब भी जीवित हैं? या फिर ये योजनाएं सिर्फ कागजों और फोटो सेशन तक ही सीमित रह गईं?

 सरकार का वादा अधूरा रह गया?

जब NDTV की टीम सांची के आमखेड़ा गांव पहुंची, तो हरे-भरे जंगल की जगह सिर्फ वीरान मैदान नजर आया.यहां धूल उड़ती हुई दिखी.  स्थानीय निवासी सुनीता सहरिया ने बताया, "कुछ साल पहले यहां जंगल बनाया गया था, लेकिन अब कुछ नहीं बचा. अब तो सिर्फ मैदान ही रह गया है. " राजेश सहरिया ने कहा- "2009 में जंगल बनाया गया था, लेकिन यह सिर्फ एक साल ही जिंदा रहा. उसके बाद किसी ने पलट कर भी नहीं देखा. कुछ पौधे सूख गए, कुछ काट दिए गए. "

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NDTV की टीम सरकारी पौधरोपण की पड़ताल करने के लिए सांची के आमखेड़ा गांव पहुंची, जहां 2009 में 34 लाख रुपये की लागत से "महिला वन" योजना चलाई गई थी.लेकिन यहां से पेड़ गायब मिले.सारे दावे हवा-हवाई पाए गए.

'महिला वन' योजना, सपना या हकीकत?

2009 में तत्कालीन लोकसभा सांसद और बाद में विदेश मंत्री बनीं सुषमा स्वराज ने इस योजना की शुरुआत की थी. इस परियोजना के तहत लाखों सीताफल के पौधे लगाए गए थे. सरकार की मंशा थी कि इससे इलाके में हरियाली बढ़ेगी और साथ ही आसपास के सहरिया आदिवासियों को रोजगार भी मिलेगा. स्थानीय लोगों को 15 दिनों तक पौधे लगाने के काम में लगाया गया, लेकिन इसके बाद किसी ने इन पौधों की देखभाल नहीं की. नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे सभी पौधे सूख गए और आज इस क्षेत्र में न तो जंगल बचा और न ही कोई हरियाली दिखाई देती है.

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क्या VVIP हेलीपैड बना इस जंगल के विनाश की वजह?

स्थानीय लोगों का कहना है कि सांची यूनिवर्सिटी के उद्घाटन के लिए इस जंगल में हेलीपैड का निर्माण करवाया गया था, ताकि वीवीआईपी मेहमान यहां उतर सकें। इसके लिए जंगल के बड़े हिस्से की कटाई कर दी गई, जिससे यह वन पूरी तरह खत्म हो गया।

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सवाल वो जो पूछना जरूरी है ?

  • सवाल उठता है कि इस योजना के लिए खर्च किए गए 34 लाख रुपये आखिर कहां गए?
  • क्या यह योजना सिर्फ एक फोटो सेशन बनकर रह गई?
  • क्या सरकार को इतनी बड़ी योजना के रखरखाव की कोई परवाह नहीं थी?
  • क्या इसमें भ्रष्टाचार हुआ और यदि हां, तो जिम्मेदार कौन है?

सरकार से जवाबदेही की मांग

सरकार को इस मामले में जवाब देना चाहिए. यदि इस योजना का उद्देश्य पर्यावरण को बचाना और स्थानीय लोगों को रोजगार देना था, तो फिर यह योजना असफल क्यों हो गई? अब देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या सफाई देती है. क्या कोई अधिकारी इसकी जिम्मेदारी लेगा?  क्या भविष्य में ऐसी योजनाएं सिर्फ घोषणाओं तक सीमित रहेगी, या फिर इनका क्रियान्वयन भी सही तरीके से किया जाएगा?

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NDTV से जानें क्या बोले अधिकारी 

 NDTV ने जब इस मामले में वन विभाग के एसडीओ सुधीर कुमार पटेल से 'महिला वन' पर सवाल किया गया, तो मीटिंग का हवाला देकर सवाल को टाल दिया गया. यह रिपोर्ट दर्शाती है कि कैसे सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर सफल होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है. 34 लाख रुपये खर्च कर लाखों पौधे लगाए गए, लेकिन नतीजा यह निकला कि आज वहां सिर्फ एक वीरान मैदान है. यह एक बड़ा सवाल है-आखिर कौन खा गया सांची आमखेड़ा के महिला वन का पैसा?

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