नक्सलियों का 'फील्ड ब्रेन' था रामधेर मज्जी ! खुद बताया-कैसे ढहा 3 राज्यों में फैला MMC Zone का अंतिम किला ?

Naxal Commander Ramdhar News:मध्यप्रदेश से माओवादी ढांचे का अंतिम किला ढह गया है. 1 करोड़ के इनामी और MMC ज़ोन के 'फील्ड ब्रेन' नक्सली नेता रामधर मज्जी ने 11 टॉप कमांडरों के साथ आत्मसमर्पण कर तीन राज्यों में फैले नक्सलियों के अंतिम बड़े किले को खुद ही ध्वस्त कर दिया है.

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Naxal MMC Zone Collapse: मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में कभी खौफ का दूसरा नाम रहा रामधेर मज्जी अब पुलिस हिरासत में बैठा है. वह नेता, जो करोड़ रुपये के इनाम के साथ MMC ज़ोन की पूरी सशस्त्र संरचना का आख़िरी स्तंभ माना जाता था. दक्षिणी MMC ज़ोन के 14 सदस्यीय गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित दस्ते का मुखिया, कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड और राजनांदगांव-खैरागढ़-बालाघाट के बीच फैले संवेदनशील कॉरिडोर का नियंत्रक अब हथियार डाल चुका है. सुरक्षा एजेंसियां इसे बीते दो दशकों के सबसे बड़े घटनाक्रम के रूप में देख रही हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, “रामधेर के सरेंडर के साथ MMC ज़ोन उत्तर और दक्षिण दोनों का अध्याय खत्म हो गया. मध्यप्रदेश अब लगभग नक्सल–मुक्त है.”

जनवरी 2025 में ही बना था MMC जोन का प्रभारी

यह वही रामधेर है जिसे कभी तीन राज्यों की पुलिस खाक छानकर ढूंढ रही थी. जिस ज़ोन में दीपक तेलतुंबड़े जैसे बड़े कमांडरों का प्रभाव था, वहीं उनकी मौत और गिरफ्तारी के बाद कमान आखिरकार रामधेर को मिली थी. जनवरी 2025 में MMC ज़ोन का प्रभारी बना यह नेता साल खत्म होने से पहले ही संगठन से टूट गया और सरेंडर कर दिया.

NDTV से बातचीत में रामधेर का स्वीकारोक्ति भरा बयान चौंकाने वाला है. उसने कहा, “हम सोनू दादा, सतीश दादा जैसे लोगों का आत्मसमर्पण देख रहे थे. पार्टी के महासचिव कॉमरेड बीआर दादा से जो बातें हुई थीं,उससे भी हम स्थिति भांप रहे थे. हम सोच रहे थे कि बची हुई केंद्रीय कमेटी से कोई मार्गदर्शन आएगा,लेकिन संबंध टूटते गए.

अगस्त के बाद हम लोग एक-दूसरे से मिल भी नहीं पाए. अनंत ने बयान जारी कर सरेंडर किया, उसके बाद हमने भी तय कर लिया कि निकलना है. अब समाजसेवा करेंगे, संविधान के दायरे में काम करेंगे.”

नक्सलियों का फील्ड-लेवल “ब्रेन” था रामधेर

यह बयान सिर्फ एक नक्सल नेता का मनोवैज्ञानिक तौर पर टूटना नहीं,बल्कि उस पूरे कथित “लाल गलियारे” का बिखरना दर्शाता है जिसने दशकों तक तीन राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों को अस्थिर रखा. रामधेर मज्जी की यात्रा एक साधारण गांव के युवक से शुरू होकर CPI (Maoist) के सबसे ताक़तवर फील्ड कमांडरों में शामिल होने तक पहुंची थी. मल्लेमड्डी, थाना बेदरे, ज़िला बीजापुर का रहने वाला यह लगभग 50 साल का शख्स 5 फुट 9 इंच लंबा है, तेलुगु, गोंडी और हिंदी का जानकार यह कमांडर संगठन की ज़मीन पर रणनीति का अंतिम शब्द माना जाता था. जंगलों में पैदल 30-40 किमी की लगातार मूवमेंट उसकी खासियत थी ऐसी क्षमता जिसे देखते हुए उसे फील्ड-लेवल “ब्रेन” कहा जाता था. 

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पत्नी ही बॉडीगार्ड और सलाहकार भी

उसकी पत्नी ललिता उर्फ़ अनीता, जो DVCM थी, उसका सबसे बड़ा रणनीतिक सहारा थी. दोनों को MMC ज़ोन में भेजते समय संगठन ने उन्हें नकली पहचान ‘अमरजीत और अनीता' दी थी. अनीता उसकी बॉडीगार्ड भी थी, घुटनों में दर्द के बावजूद अनीता जंगल ऑपरेशनों का हिस्सा बनी रही. यही वह दंपत्ति था जिसने 2024–25 में MMC ज़ोन के गिरते हुए ढांचे को दोबारा खड़ा करने का प्रयास किया. साल 2024 के अंत में जब रामधेर को MMC Special Zonal Committee का प्रभारी बनाया गया, तब संगठन की हालत बद से बदतर थी.

फ़रवरी 2025 में वह अपनी पत्नी और लगभग 12–14 अत्यंत प्रशिक्षित हथियारबंद कैडरों के साथ उत्तर बस्तर से MMC ज़ोन में पहुंचा. कुछ ही महीनों में इस टीम ने बस्तर, बीजापुर, कोंडागांव और बालाघाट क्षेत्रों के अनुभवी लड़ाकों को जोड़कर MMC ज़ोन की सैन्य संरचना फिर से खड़ी कर दी.

उस समय ज़ोन में लगभग 50 भारी हथियारों से लैस नक्सली सक्रिय बताए जाते थे, जिनमें 1 CCM रामधेर और 3 SZCM कबीर, विकास, और राकेश मुख्य भूमिका में थे.

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गार्ड दस्ता कहा जाता था 'डेडली यूनिट'

रामधेर का निजी गार्ड दस्ते को संगठन में “डेडली यूनिट” कहा जाता था. उसके साथ हमेशा AK-47, INSAS, SLR और .303 जैसे हथियारों से लैस सात प्रशिक्षित कैडर तैनात रहते थे, जिनमें सुकैश उर्फ़ रंगा गार्ड कमांडर, धनुष उर्फ़ मुन्ना, रामसिंह, रोनी उर्फ़ तुल्ले, लक्ष्मी और सागर शामिल थे. जंगल में किसी भी मीटिंग, मूवमेंट या ऑपरेशन के दौरान रामधेर इनके बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता था. यही उसका गार्ड दस्ता भी था.

जवानों को नहीं पता चलता था सटीक लोकेशन

उसके पास तकनीकी संसाधनों में लैपटॉप, टैबलेट और कई मोबाइल फ़ोन भी थे.इंटेलिजेंस दस्तावेज़ों के अनुसार, 3 सितंबर से 29 अक्टूबर 2025 तक रामधेर लगातार छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और मध्यप्रदेश के बालाघाट के बीच लोकेशन बदलता रहा. रवली, जटलूर, कोंगे-वाटा-बेरिलटोला और रवंडिगु उसके प्रमुख ठिकाने रहे. उसके जंगल मार्ग इतने गुप्त थे कि सुरक्षा बल महीनों पीछा करने के बाद भी उसकी सटीक लोकेशन तक नहीं पहुँच पाते थे. कांकेर जिले के कई थानों में हत्या, हत्या की कोशिश, IED विस्फोट, पुलिस पार्टी पर फायरिंग, ग्रामीणों की हत्या और UAPA जैसे गंभीर मामलों में रामधेर वांछित था. उसकी टीम कई पुलिस ऑपरेशनों को चकमा देकर बच निकलती रही थी, और ग्रामीणों को मुखबिर बताकर की गई हत्याओं में उसका नाम सामने आता रहा था. 

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भीतर से टूटने लगी थी रामधेर की टीम

मगर पिछले महीनों में उसकी टीम भीतर से टूटने लगी थी. संगठन के भीतर असंतोष बढ़ रहा था, कई कैडरों ने रामधेर से खुलकर कहा कि वे बाहर निकलना चाहते हैं. बस्तर से आए कई लड़ाकों में थकान और निराशा बढ़ रही थी.

NDTV पहले ही अपनी रिपोर्ट में बता चुका था कि रामधेर अब केवल अपने अंतिम 14 कैडरों के साथ बचा हुआ है और यह ज़ोन ढहने की कगार पर है. यह विश्लेषण पूरी तरह सही साबित हुआ.

कुछ ही दिन पहले बालाघाट में MMC के उत्तरी KB डिवीजन के दस सबसे ख़तरनाक नक्सलियों जिनमें दो SZCM और चार महिला कैडर शामिल थीं ने मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने हथियार डाल दिए. ठीक 24 घंटे बाद रामधेर की टीम भी टूटकर बिखर गई. सुरक्षा एजेंसियां इस घटनाक्रम को MMC आंदोलन के “फाइनल चैप्टर” के रूप में दर्ज कर रही हैं. उत्तरी MMC ज़ोन पहले ही खाली माना जा रहा था. कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के पूरे क्षेत्र को “क्लियर ज़ोन” घोषित किए जाने की तैयारी है. और अब दक्षिण MMC ज़ोन भी रामधेर के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हो चुका है. जिस नक्सली का नाम सुनकर छह जिलों में दहशत फैल जाती थी, जो तीन राज्यों के जंगलों में मौत और भय का पर्याय बन चुका था वही रामधेर मज्जी आज कानून के सामने हथियार डालकर बैठा है. यह सिर्फ एक आत्मसमर्पण नहीं बल्कि लाल गलियारे की वह आख़िरी सांस है, जिसे तीन राज्यों के जंगल दशकों से सुनते आए थे.
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