Bhopal News: भोपाल नगर निगम में शायद विकास का मतलब है— बजट पास करो, फव्वारे लगाओ, सेल्फी लो, और फिर फव्वारे को भगवान भरोसे छोड़ दो.
अधिकारी अगर आंखें खोलते, तो भोपाल का बिगड़ा चेहरा शायद देख पाते कि कैसे जीआईएएस के नाम पर हरियाली आई लेकिन महीने भर बाद से ही हर मुरझाया पौधा सौंदर्यीकरण का तमगा लिए घूम रहा है. करोड़ों खर्च हुए और सब मिट्टी में मिल गया.
भोपाल में जीआईएस के दौरान 100 करोड़ का बजट केवल भोपाल के सौंदर्यीकरण के लिए खर्च किया गया. वादा किया गया था कि भोपाल अब रोज चमकेगा, जैसे हर गली में ट्यूब लाइट लगी हो, लेकिन जिन पौधों को करोड़ों में खरीदा गया था, वे पौधे अब स्वर्गवासी हो चुके हैं. और फव्वारे? फव्वारे लगाए गए थे प्रदूषण भगाने के लिए लेकिन अब वे खुद धूल खा रहे हैं.
ऐसा लगता है भोपाल में फव्वारे अब "अशक्त वृद्धावस्था योजना" के तहत पेंशन के हकदार हो गए हैं.
ऐसा है हाल
- 100 करोड़: खर्च कर दिया, बचा क्या- धूप और धूल
- भोपाल के 80% फव्वारे- मौन व्रत में
- 40% पौधे- सेवा समाप्ति की सूचना के साथ
फव्वारों का ये है हाल
AQI सुधारने के नाम पर जो फव्वारे लगाए गए थे, वे अब सिर्फ कबूतरों के लिए पार्किंग स्थल हैं. अगर किसी दिन गलती से चले भी गए तो शायद निगम के अधिकारी उन्हें बंद करने की अर्ज़ी लगा देंगे— "ये बिना परमिशन के कैसे चालू हो गया?"
जब नगर निगम नेता प्रतिपक्ष शाबिस्ता ज़की से इस पर बात की गई तो उन्होंने सीधा तीर मारा— बिजली का बिल नहीं भरा भाई!
क्या बोले नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष?
नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष शाबिस्ता जकी का कहना है कि जीआईएस के नाम पर पैसा खर्च किया, जहाँ ज़रूरत नहीं थी वहां भी लगाया, पानी की कमी के वजह से पौधे मुरझा रहे हैं, फव्वारे बंद हो चुके हैं. करोड़ों रूपये खर्च किये थे लेकिन ज़मीन पर अब कुछ नहीं दिख रहा है. नगर निगम ने बिजली का बिल नहीं भरा है. बिना वर्क आर्डर जारी किये किये सब काम किया महीनों बाद जाकर वर्कऑर्डर जारी किये. जनता के पैसों का दुरूपयोग है जो गलत बात है.
नगर निगम अध्यक्ष ने क्या कहा?
जब नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी से पूछा गया तो उन्होंने अपनी पीठ खुद ठोंकी और सारी शिकायतों को कपोल कल्पना करार दे दिया. ज़मीन पर भले ही फव्वारे धूल फांक रहे हों, पौधे दम तोड़ रहे हों, लेकिन अध्यक्ष जी के मुताबिक — "सब चकाचक है!
उन्होंने कहा कि नगर निगम ने इस बार अपने बजट में करीब 100 करोड़ रुपयों की राशि का प्रावधान किया है. इस बात की कोशिश की जाएगी की हम हमारे शहर को अच्छे स्वरुप में बनाए रखें. अगर कोई फाउंटेन बंद हैं तो उन्हें दिखवा लिया जाएगा, यह तकनिकी चीज़ें हैं खराबी आती रहती है.
बहरहाल, भोपाल सुधारने के लिए अब लगता है कि नगर निगम को खुद पर ही निगम बनाना पड़ेगा. यहाँ विकास की हालत ऐसी है कि शिकायत करने पर सिस्टम नींद में बड़बड़ाता है— "बाद में मिलना, अभी सपना देख रहे हैं!"
फिलहाल, शहर के फव्वारे बंद हैं, पौधे मुरझा रहे हैं और अधिकारी विकास की परछाइयों पर कविताएं लिख रहे हैं.
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