MP हाईकोर्ट ने याची का आपराधिक रिकॉर्ड देखते हुए सुनाया फैसला, इस मामले में दर्ज याचिका हुई खारिज

Jabalpur High Court: एमपी हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की क्रिमिनल हिस्ट्री देखते हुए एक फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने हनुमान मंदिर के पास सार्वजनिक शौचालय बनाने के विरोध में दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है.

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फाइल फोटो

MP High Court Verdict: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक हनुमान मंदिर (Hanuman Mandir) के पास सार्वजनिक शौचालय बनाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. खास बात यह है कि हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने याचिका खारिज करने का फैसला याचिकाकर्ता के आपराधिक रिकॉर्ड देखते हुए और मुद्दे को औचित्यहीन मानते हुए सुनाया. याचिका की सुनवाई के दौरान एमपी हाईकोर्ट के जस्टिस जी एस अहलूवालिया (Justice G S Ahluwalia) की एकलपीठ को बताया गया कि मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए सार्वजनिक शौचालय का निर्माण किया जा रहा है. जिसको चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने मंदिर के पास शौचालय बनाए जाने का विरोध किया था.

याचिका में कही गई यह बात

याचिकाकर्ता कपिल कुमार दुबे की तरफ से दायर की गई याचिका में बताया गया कि नगर परिषद गाडरवारा ने हनुमान मंदिर के पास सार्वजनिक शौचालय बनाने का फैसला लिया है. याचिका में कहा गया कि मंदिर के समीप सार्वजनिक शौचालय का निर्माण किए जाने से आसपास का माहौल खराब होने की संभावना है. वहीं सरकार की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 17 आपराधिक मामले दर्ज हैं. न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा से दंडित भी किया है. हनुमान मंदिर में आने वाले श्रद्धालु खुले क्षेत्र में आराम करते हैं, ऐसे में भक्तों की सुविधा और आसपास के क्षेत्रों को साफ और स्वच्छ बनाए रखने के उद्देश्य से सार्वजनिक शौचालय का निर्माण किया जा रहा है.

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हाईकोर्ट ने फैसले में यह कहा

जबलपुर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने फैसला सुनाते हुए अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता यह बताने में असमर्थ था कि मंदिर और सार्वजनिक शौचालय के बीच कितनी दूरी है. इसके अलावा याचिकाकर्ता का आपराधिक रिकॉर्ड भी है. सार्वजनिक उपयोगिता और भक्तों के लाभ को देखते हुए शौचालय का निर्माण किया जा रहा है. हनुमान मंदिर के आस-पास के क्षेत्र को साफ और स्वच्छ बनाए रखने के उद्देश्य से शौचालय बनाया जा रहा है. इसलिए इस न्यायालय का मानना है कि याचिका हस्तक्षेप योग्य नहीं है. एकलपीठ ने यह आदेश देने के साथ ही याचिका को खारिज कर दिया.

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