मुफ्त का खाना नहीं, रोजगार चाहिए... मन बना चुके हैं बुद्धिजीवी मतदाता, क्या चाहता है MP का वोटर?

बुद्धिजीवियों ने कहा कि इस चुनाव का जो भी परिदृश्य है वह इस अंचल में भी दिखाई दे रहा है. उससे यही आभास हो रहा है कि इस बार के चुनाव के जरिए राज्य में आने वाले समय के लिए मतदाता एक नई इबारत लिखे जाने का मूड बना चुका है.

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क्या चाहता है मध्य प्रदेश का बुद्धिजीवी मतदाता?

Election in MP: छतरपुर (Chhatarpur) जिले के गैर राजनीतिक बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग खुलकर कह रहा है कि 2023 का विधानसभा चुनाव (Assembly Election) महज 5 वर्ष की सरकार चुनने के लिए ही नहीं हो रहा है. बल्कि इस बात को जिले के हर मतदाता (Voters) को अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि जिले की सभी 6 विधानसभा सीटों के जो निजाम मतदाता 17 नवंबर को चुनने जा रहे हैं उसमें अगर चूक या असावधानी हुई और अगर यही हाल बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) का हुआ तो मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से जुड़े बुन्देलखण्ड के समूचे क्षेत्र की अवाम सही प्रतिनिधि विधानसभा में नहीं पहुंचा सकेगी. फिर ऐसे निजामों से आपके अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों का भला नहीं होगा और आपको 5 साल अपनी चूक का खामियाजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा. जिले के शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और सामाजिक संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों का यही नजरिया सामने आया है.

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मजबूत और विश्वसनीय सरकार का है यह चुनाव

बुद्धिजीवियों का मत है कि सिर से पांव तक कर्ज में डूबे इस राज्य को अब एक ऐसी मजबूत और भरोसे वाली सरकार की जरूरत है जो बुन्देलखण्ड के इस अंचल के एक बड़े वर्ग में अब मुफ्त के खाने की आदत न डाले. बल्कि उनके लिए रोजगार पैदा करे. उनके बच्चों का भविष्य बनाए, गली-कूचों तक फैल चुके भ्रष्टाचार पर सख्त लगाम कसे, आज भी पूरी तरह कृषि पर ही निर्भर इस अंचल के किसानों को सक्षम बनाए, पढ़े-लिखे नौजवानों को आकर्षक पैकेज पर बाहर नौकरी करने से रोकने और उन्हें अपने ही अंचल के भीतर नौकरी देने के लिए प्रस्तावित उद्योगों और अन्य संस्थानों को शुरू कराए और काम की तलाश में कई वर्षों से इस अंचल से हो रहे पलायन को रोके. यह सब कुछ केवल एक मजबूत और विश्वसनीय सरकार ही दे पाएगी इसलिए अब इसकी नितांत अवश्यकता है.

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मतदाता का काम केवल EVM का बटन दबाना नहीं

जिले के बुद्धिजीवियों का स्पष्ट मत है कि इस चुनाव के जरिए जिले का मतदाता जिले का भविष्य सुनिश्चित करने जा रहा है. मतदाता अपने इस अधिकार की हैसियत और क्षमताओं को समझे. वह न तो मतदाता सूची और न ही इसकी पर्ची में दर्ज नाम है और न ही वह ईवीएम का बटन दबाने वाला नागरिक भर है. बल्कि वह अपना और अपने विधानसभा क्षेत्र के बेहतर भविष्य का रचियता भी है. जिले का प्रत्येक मतदाता अपने ज़ेहन में इस बात को भी ध्यान में रखकर ईवीएम का बटन दबाए कि प्रदेश की स्थापना के 66 वर्षों के बाद भी उसके अपने क्षेत्र का दोहन ही होता आया है. शायद इसलिए बार-बार कहा जा रहा है कि 'जागो मतदाता जागो'.

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भविष्य की नई इबारत लिखने वाला चुनाव

चर्चा के अंत में बुद्धिजीवियों ने कहा कि इस चुनाव का जो भी परिदृश्य है वह इस अंचल में भी दिखाई दे रहा है. उससे यही आभास हो रहा है कि इस बार के चुनाव के जरिए राज्य में आने वाले समय के लिए मतदाता एक नई इबारत लिखे जाने का मूड बना चुका है. यह भी पहली बार देखा जा रहा है कि बिना शोरगुल के मतदाताओं ने जिस खामोशी को ओढ़ रखा है, मानों वह बिना कहे यह समझाने की कोशिश में है कि अब हमसे मत पूछो, अब तो हम 17 नवंबर को ईवीएम को हाज़िर-नाज़िर मानकर उसी से अपना मत व्यक्त करेंगे. 

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