मंत्री ही नहीं, शिक्षक भी हैं सांसद डीडी उइके! सात साल पहले इस्तीफा देने के बाद भी कैसे हुआ ये कमाल?

MP DD Uikey Still Listed as Teacher: सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन यह मामला दिखाता है कि सिस्टम अपडेट होने में कितना समय लगता है, सांसद बनने के बाद भी डीडी उइके को पोर्टल पर शिक्षक बताया जा रहा है.

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MP Minister DD Uikey Still Listed as Teacher: मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग का डिजिटल सिस्टम एक बार फिर सवालों के घेरे में है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बैतूल सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने सात साल पहले शिक्षक पद से त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन विभाग का पोर्टल आज भी उन्हें 'वर्किंग शिक्षक' दिखा रहा है. यह चौंकाने वाली लापरवाही सरकारी सिस्टम की सच्चाई उजागर करती है.

सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन यह मामला दिखाता है कि सिस्टम अपडेट होने में कितना समय लगता है, सांसद बनने के बाद भी डीडी उइके को पोर्टल पर शिक्षक बताया जा रहा है कि तो फिर किसी और की बात क्या ही की जाए. 

शिक्षा विभाग का पोर्टल बना मजाक

दरअसल, बैतूल जिले के ग्राम बघोली स्थित हाई स्कूल में पदस्थ शिक्षक दुर्गादास उइके ने साल 2017 में अपने पद से त्यागपत्र दिया था. इसके बाद वे राजनीति में सक्रिय हुए और दो बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. वर्तमान में वे केंद्रीय राज्य मंत्री के पद पर हैं. इसके बावजूद शिक्षा विभाग का पोर्टल आज भी उन्हें बघोली हाई स्कूल में “उच्च श्रेणी शिक्षक” के रूप में दिखा रहा है. 29 अक्टूबर को जब केंद्रीय मंत्री डीडी उइके का जन्मदिन मनाया जा रहा था, इस दौरान यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. सोशल मीडिया और शिक्षा पोर्टल पर बधाई संदेशों के बीच यह देखा गया कि पोर्टल पर भी उन्हें शुभकामनाएं दी जा रही हैं, लेकिन 'शिक्षक' के रूप में.  

जल्द किया जाएगा सुधार 

मामला सामने आते ही शिक्षा विभाग के अधिकारी सक्रिय हो गए. जिला शिक्षा कार्यालय में अफसरों की भागदौड़ शुरू हो गई. बघोली हाई स्कूल के वर्तमान प्राचार्य ने माना कि यह गलती लंबे समय से बनी हुई है और इसे जल्द ठीक कराया जाएगा. हालांकि, सवाल यह उठता है कि सात साल तक किसी ने इसे नोटिस क्यों नहीं किया.

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डिजिटल सिस्टम पर उठे सवाल

शिक्षा विभाग का यह मामला सिर्फ एक तकनीकी भूल नहीं, बल्कि सरकारी पोर्टल्स की विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है. जब एक केंद्रीय मंत्री का डेटा सात साल तक अपडेट नहीं हुआ, तो बाकी शिक्षकों और कर्मचारियों के रिकॉर्ड की स्थिति क्या होगी, इसका  अनुमान लगाया जा सकता है. यह घटना सरकारी सिस्टम की सुस्ती और जवाबदेही की कमी का प्रतीक बन गई है.
 

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