MP Election: 2020 में लग चुका है बड़ा झटका, इस बार क्या होंगी कांग्रेस की चुनौतियां?

Madhya Pradesh Election: 2018 में जीत के बाद भी सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस के लिए अब भी मध्य प्रदेश में कई चुनौतियां है. बीजेपी का 2003 के बाद लगातार 40 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

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Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों (Assembly Election) में 230 सीटों में से महज 38 सीटें हासिल की थी. इसके बाद लगातार सत्ता की रेस में पिछड़ती रही, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में अपने पुराने खराब प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए 15 साल बाद एक बार फिर से दमदार प्रदर्शन किया था. इस चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीत कर भाजपा (BJP) को सत्ता से बेदखल कर अपनी सरकार बनाई थी. हालांकि, मार्च 2020 में तत्कालीन कांग्रेस (Congress) नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के अपने 22 समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाने से कमलनाथ (Kamal Nath) के नेतृत्व वाली सरकार एक बार फिर से सत्ता से बाहर हो गई. इस प्रकार राज्य में भाजपा दोबारा सत्ता में लौट आई.

इन मुद्दों को लेकर कांग्रेस लड़ रही है चुनाव

मध्य प्रदेश में  17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कथित भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के साथ ही आदिवासियों, किसानों और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर भाजपा को घेरने की तैयारी कर रही है. कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में जोरदार जीत के बाद कांग्रेस का मनोबल मजबूत बढ़ा हुआ है. वह अगले साल लोकसभा चुनावों के समर में उतरने से पहले मध्य प्रदेश में आक्रामक चुनावी अभियान चला रही है.

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मध्य प्रदेश में ये हैं कांग्रेस का मजबूत पक्ष

राज्य में कांग्रेस की वोट भागीदारी दो दशक पहले के 30 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 40 प्रतिशत से अधिक हो गई थी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा में धार्मिक प्रवचनों का आयोजन करके भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे की धार कुंद करने की पुरजोर कोशिश की है. द्रमुक नेताओं की सनातन धर्म पर विवादास्पद टिप्पणियों के बाद कमलनाथ ने  विपक्षी दलों के 'इंडिया' गठबंधन की भोपाल में प्रस्तावित बैठक भी रद्द करा दी थी. जमीनी हालात कांग्रेस के पक्ष में देखते हुए हाल के महीनों में भाजपा के कई नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों पर कांग्रेस को मतदाताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद है. कांग्रेस ने 2018 में इनमें से 30 सीटें जीती थीं.

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ये हैं कांग्रेस के लिए चुनौतियां

भाजपा के मजबूत संगठन के उलट कांग्रेस में मजबूत संगठनात्मक ढांचे का अभाव है. कांग्रेस को ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंधिया की अनुपस्थिति खल सकती है, जहां पिछली बार इस पार्टी ने 34 में से 26 सीटें जीती थीं. सिंधिया के वफादार विधायकों के दल-बदल के बाद हुए उपचुनावों में इस अंचल में कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटकर 16 रह गई है. राज्य में 66 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस पिछले दो या इससे अधिक चुनावों में जीत हासिल नहीं कर सकी है. चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा करने के भाजपा के कदम और कांग्रेस की ‘रुको और देखो' की स्थिति ने इस धारणा को मजबूत किया कि कांग्रेस गुटबाजी से सावधान है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल (1993-2003) को निशाने पर लेते हुए भाजपा एक बार फिर दावा कर रही है कि इस अवधि में सूबे में सड़क, बिजली और पानी की समस्याओं से बुरी तरह जूझना पड़ा था.

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भाजपा के खिलाफ माहौल से हो सकता है फायदा

2003 के बाद राज्य की सत्ता में 18 साल पूरे कर चुकी भाजपा के लिए कथित सत्ता विरोधी लहर चिंता का विषय है, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हो सकता है. भाजपा की राज्य इकाई में टूट-फूट भी कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. दो दशकों में पहली बार सिंधिया के कुछ वफादारों सहित कई भाजपा नेता पाला बदल कर विपक्षी दलों में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस बेरोजगारी, व्यापमं भर्ती घोटाले और पटवारी भर्ती परीक्षा में कथित अनियमितताओं को जोर-शोर से उठाने में कामयाब रही है. दिल्ली में आबकारी नीति के कथित घोटाले से घिरी आम आदमी पार्टी इस बार मध्य प्रदेश में वैसा आक्रामक चुनाव अभियान नहीं चला रही है, जैसा उसने गुजरात में पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में चलाया था.

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कांग्रेस के लिए ये हैं चुनौतियां

2008 में मामूली गिरावट को छोड़ दिया जाए, तो भाजपा ने 2003 के बाद से सूबे में 40 से अधिक प्रतिशत वोट भागीदारी बनाए रखी है. यानी 2018 में हार के बाद भी भाजपा 40 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. राज्य में पिछले दो महीनों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के मुख्य रणनीतिकार व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सिलसिलेवार यात्राएं सत्तारूढ़ दल के चुनाव अभियान को खासा बल दे सकती हैं. इस बार भाजपा ने नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गज नेताओं को बतौर उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारा है. ये नेता इस अटकलों को बल देकर भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान का मुकाबला कर सकते हैं कि वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस  विधानसभा चुनावों में  मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा का चेहरा नहीं हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसे नये राजनीतिक दल कांग्रेस की परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं.

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