हेरिटेज महुआ शराब: जिसे 'गेमचेंजर' बताया गया वो सिस्टम की 'मदहोशी' में कैसे हुआ फ्लॉप ?

मध्य प्रदेश की आदिवासी अर्थव्यवस्था के लिए महुआ को संभावित 'गेम-चेंजर' बताया गया था. इसकी फूलों से बनी शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा दिया गया लेकिन अब इन्हीं आदिवासियों के लिये ये कड़वी शराब बन गई है.शिवराज सरकार ने 4 साल पहले अलीराजपुर और डिंडोरी इसके उत्पादन के लिए प्लांट लगाया था लेकिन अब वो बंद पड़ा है. क्या है पूरा मामला पढ़िए इस रिपोर्ट में

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Mahua liquor News: 4 साल पहले मध्यप्रदेश में महुआ से बनी शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा मिला. तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था सरकार आदिवासियों को महुआ शराब खुद बनाने और बेचने के लिए भी परमिशन देगी . जानकारों ने इसे अच्छी पहल बताया लेकिन इसे अमल में लाने में लापरवाही हुई..न तो इसके विपणन का सही से इंतजाम किया गया और न ही इसका प्रचार ही किया गया. नतीजा ये हुआ कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद योजना अधर में हैं. इसमें लगे मजदूर गुजरात पलायन कर गए. जो हेरिटज शराब बनी वो भी सड़ने लगी...आदिवासियों की किस्मत बदलने के लिए बनी ये योजना क्यों फ्लॉप हुई इसी पर NDTV ने की ग्राउंड रिपोर्ट . 

यूरोप में कीमत 100-110 रु.प्रति किलो तक 

दरअसल मध्यप्रदेश में महुआ खूब होता है. एक अनुमान के मुताबिक राज्य में साढ़े 7 साल क्विंटल से भी ज्यादा महुआ का उत्पादन हुआ था. आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं प्रदेश में महुआ का अर्थशास्त्र क्या है? बता दें कि महुआ लघु वनोपज है जिसका समर्थन मूल्य 35 रु था लेकिन हेरिटज लिकर के लिये सरकार ने इसे 40 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना शुरू किया, यूरोप के बाजारों में महुआ के फूलों के लिये तो 100-110 रु. प्रति किलो तक भुगतान हो रहा है.    

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पुणे में जाकर किसानों ने ली थी ट्रेनिंग

मध्य प्रदेश की आदिवासी अर्थव्यवस्था के लिए महुआ को संभावित 'गेम-चेंजर' बताया गया था. इसकी फूलों से बनी शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा दिया गया लेकिन अब इन्हीं आदिवासियों के लिये ये कड़वी शराब बन गई है. दरअसल शिवराज सरकार ने आदिवासी बहुल अलीराजपुर और डिंडोरी जैसे जिलों में मॉडल महिला स्वयं सहायता समूह बनाये थे. उन्हें प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता दी गई . इसके साथ ही महुआ से शराब बनाने के लिए अलीराजपुर और डिंडोरी में करोड़ों की लागत से दो डिस्टिलरी यूनिट भी बनाई गई.इसी के तहत पुणे के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट में 13 स्थानीय लोगों को महुआ स्पिरिट उत्पादन की पारंपरिक और वैज्ञानिक तकनीकों पर 22 दिनों की ट्रेनिंग मिली . तब लगा कि शायद इन जिलों के आदिवासियों की किस्मत बदलेगी. लेकिन अलीराजपुर में बनी फैक्ट्री महीनों से बंद पड़ी है. इसका बॉयलर खराब हो चुका है और यहां के श्रमिक काम की तलाश में गुजरात पलायन कर चुके हैं.

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आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बनी फैक्ट्रियां अब बंद पड़ी है.

 अलीराजपुर की फैक्ट्री में टैक्निशयन अंकिता भाबर ने बताया- ये प्लांट दिसंबर 2022 में बना था लेकिन अब ये बंद है. प्लांट का बॉयलर खराब हो गया है. उन्होंने बताया कि सीजन में हम महुआ ग्रामीणों से खरीदते हैं और फिर पूरे साल के लिए स्टॉक करके रख लेते हैं. अब चूंकि प्लांट बंद है लिहाजा यहां के मजदूर गुजरात चले गए हैं.  

मजदूरों को दो साल में मिला बस 13-14 हजार रु. !

इसी तरह डिंडोरी की डिस्टिलरी भी बंद पड़ी है. जिसकी वजह से स्व-सहायता समूह को नुकसान उठाना पड़ रहा है.फैक्ट्री से जुड़े लोग बताते हैं कि आधी इंवेट्री भी नहीं बिकी. यहां कोई महुआ बीनता था, कोई चक्की पीसता था, बॉटलिंग, कैप लगाना सारे काम यहीं होते थे, अब सब बंद हैं . यहां तक की मजदूरों के पैसे भी अटके हैं . आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक जे एस पट्टा कहते हैं कि इस प्लांट को बनाने में 3 करोड़ की लागत आई थी. अभी लाइसेंस को रिन्यू नहीं कराया है इसलिए बंद है. जल्द ही इसे शुरू किया जाएगा. मां नर्मदा स्वसहायता समूह की मालती धुर्वे कहती हैं कि यहां जो शराब बना था उसके ऑर्डर में कमी थी. सारा माल नहीं बिका था. यहां काम करने वाली महिला श्रमिकों को दो साल में 13-14 हजार ही मिले थे. इससे क्या होगा?

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हैरिटेज शराब की योजना तो अच्छी थी लेकिन अलीराजपुर में बनी ये फैक्ट्री अब बंद पड़ी है.

जिम्मेदारों ने कहा- जल्द काम शुरू होगा

बता दें कि यहां बनने वाली शराब को मोहुलो और मोंड ब्रांड के नाम से  एमपी टूरिज्म के होटल्स में ही बेची जाती है.की ये महुआ शराब प्रदेश के वॉइन शॉप और एमपी टूरिज्म के होटल्स में ही बेची जाती है. हेरिटेज शराब के उत्पादन की मंजूरी अगस्त 2022 में राज्य सरकार ने दी थी. इसके बाद जनवरी 2023 में सरकार ने इसके नियम बनाए. हेरिटेज शराब को 2023 से अगले 7 सालों तक आबकारी ड्यूटी और निर्यात शुल्क से मुक्त रखने और वैट में राहत देने का ऐलान हुआ था. अब के हालात पर जब NDTV ने डिप्टी CM जगदीश देवड़ा से सवाल किया तो उनका बेहद संक्षिप्त जवाब था. उन्होंने कहा- बिल्कुल हम देखेंगे जल्द काम शुरू हो जाएगा. कैबिनेट मंत्री निर्मला भूरियाने कहा- मैं दिखवाती हूं, मैं भी आदिवासी क्षेत्र से आती हूं. 

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