SIR Draft List 2025: मध्य प्रदेश की सियासत में एक बड़ी हलचल मची है. राज्य में 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' यानी SIR की ड्राफ्ट लिस्ट जारी हो चुकी है और इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. प्रदेश की मतदाता सूची से लगभग 42 लाख नाम काट दिए गए हैं. चुनाव आयोग इसे सूची का शुद्धिकरण कह रहा है, लेकिन धरातल पर उन लोगों की परेशानी बढ़ गई है जो सालों से वोट डालते आ रहे थे. अब अगले एक महीने तक दावों और आपत्तियों का दौर चलेगा, जिसके बाद 21 फरवरी को फाइनल लिस्ट जारी होगी.
पुश्तों से रह रहे लोग भी हुए 'बेगाने'
राजधानी भोपाल के मछली मार्केट इलाके के रहने वाले रईस खान की कहानी इस पूरी प्रक्रिया की गंभीरता को दर्शाती है. रईस बताते हैं, "हमारे परिवार की कई पुश्तें भोपाल में ही पली-बढ़ी हैं. 100 साल से ज्यादा का वक्त हो गया, हमारा पुश्तैनी मकान है. मेरे मां-बाप, दादा-दादी सब यहीं के थे. 2003 की लिस्ट में भी मेरा नाम था और इस बार परिवार में बाकी सबका नाम आया है, बस मेरा ही नाम काट दिया गया है."
भोपाल में ये वोटर समझ नहीं पा रहे कि वे तो पुश्तों से यहीं रह रहे हैं लेकिन उनका नाम मतदाता सूची से कैसे कट गया?
कुछ ऐसा ही हाल जफर बेग का है. जफर पिछले चुनाव में भी पर्ची न मिलने से परेशान थे और इस बार ड्राफ्ट लिस्ट से भी गायब हैं. वे कहते हैं, "मेरे बेटों और बहुओं के नाम आ गए हैं, लेकिन मेरा नाम कटा हुआ है. मैं भोपाल की पैदाइश हूं, मेरा 1973 का लाइसेंस है, आधार कार्ड है, लेकिन लिस्ट में मेरे लड़के की फोटो के बगल में किसी और की तस्वीर लगी है. मेरा नाम 2003 की लिस्ट में भी था, लेकिन अब मैं खुद को साबित करने के लिए कागज लिए घूम रहा हूं." दरअसल इस कटौती का असर किसी एक वर्ग पर नहीं बल्कि पूरे प्रदेश पर पड़ा है. इसके लिए पहले आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं फिर भोपाल के ही वॉर्ड 3 की बात करेंगे...जहां एक ही इलाके में 5000 नाम कटे हैं.
वॉर्ड नंबर 23: एक ही इलाके में 5000 नाम कटे
अकेले भोपाल के वॉर्ड नंबर 23 में हालात चिंताजनक हैं, जहां लगभग 5000 मतदाताओं के नाम काटे गए हैं. ऐसे ही एक परेशान शख्स हैं- शादाब अली. वे अपनी पत्नी अफशां अली का नाम जुड़वाने के लिए भटक रहे हैं. वे बताते हैं, "घर के 10 लोगों के नाम आ गए, बस पत्नी का नाम नहीं आया. 2003 में उनका नाम था, लेकिन 2025 की इस लिस्ट ने उन्हें बाहर कर दिया है." वहीं स्थानीय निवासी रफीक कुरैशी कहते हैं कि प्रशासन की लापरवाही साफ दिख रही है. रफीक के मुताबिक, "हजारों नाम कटे हैं और जो लोग स्थानीय हैं, उन्हें फॉर्म तक नहीं मिला क्योंकि उनका नाम सूची में ही नहीं था. जब 2003 की लिस्ट में नाम था, तो अब क्यों हटाया गया? हम बीएलओ तक फॉर्म पहुंचा रहे हैं ताकि इन स्थानीय लोगों का हक न मारा जाए." राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी संजीव झा का कहना है कि, "22 जनवरी तक आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है. जिन मतदाताओं की मैपिंग नहीं हुई है, उन्हें हम नोटिस जारी करेंगे ताकि वे अपना पक्ष रख सकें."
VIP सीटों पर भी गिरी गाज, छिड़ी सियासी जंग
यह कटौती केवल आम गलियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रदेश के दिग्गजों के क्षेत्रों में भी बड़ा फेरबदल हुआ है.
जाहिर है इस मुद्दे पर सियासत भी चरम पर है. कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि यह सब तय प्रक्रिया के तहत हुआ है, वहीं कांग्रेस नेता सज्जन वर्मा ने इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं. अब सारा दारोमदार 22 जनवरी तक चलने वाली प्रक्रिया पर है. अगर लोग अपने दस्तावेज लेकर बीएलओ तक नहीं पहुंचे, तो राज्य का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र के इस सबसे बड़े अधिकार से महरूम रह जाएगा.
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