MP हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: दोबारा हत्या के अपराधियों की नहीं माफ होगी सजा, अब ताउम्र रहना पड़ेगा जेल में

MP High Court Verdict: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा भुगतने वाले उन अपराधियों की सजा माफी रोक दी है जिन्होंने दोबारा हत्या या कोई जघन्य अपराध किया है. अब इन अपराधियों को अंतिम सांस तक जेल में रहना होगा.

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फाइल फोटो

Madhya Pradesh High Court Verdict on Life Imprisonment: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की ने अपराधियों द्वारा दोबारा अपराध किए जाने के मुद्दे पर बड़ा फैसला (MP High Court Verdict) लिया है. हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ (MP High Court Gwalior Bench) ने अपराध पर लगाम कसने के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे किसी भी अपराधी को दोबारा हत्या (Again Guilty of Murder) या जघन्य अपराध किए जाने पर ताउम्र सजा भुगतने का फैसला दिया है. यानी अगर कोई अपराधी पहले से आजीवन जेल की सजा काट रहा है और उसने फिर से हत्या या कोई जघन्य अपराध किया तो उसे अंतिम सांस तक जेल में रहना होगा. सरकार अब उस अपराधी की सजा माफ नहीं कर सकेगी.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ की बेंच (MP HC Gwalior Bench) ने इस फैसले के साथ ही आजीवन कारावास की सजा (Life Sentence) काट रहे उन अपराधियों पर शिकंजा कस दिया है जो दो बार हत्या के अपराध में शामिल रहे हैं. बता दें कि ग्वालियर (Gwalior) हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें शासन के नियम के आधार पर दो बार हत्या करने के बावजूद अपराधी को सिर्फ एक ही बार आजीवन कारावास की सजा मिलती थी. यानी अब किसी अपराधी को दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली तो उसकी सजा को मध्य प्रदेश शासन माफ नहीं कर पाएगा. ऐसे अपराधी को अब अंतिम सांस तक जेल में रहना होगा.

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल ग्वालियर हाईकोर्ट की डबल बेंच का यह आदेश सिंगल बेंच के उस आदेश के खिलाफ आया, जिसमें अपराधी गिर्राज घुरैया को रिहा करने का आदेश दिया गया था. अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने बताया कि गिर्राज को 25 मार्च 2004 को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. उसके बाद अन्य हत्या के केस में 9 अप्रैल 2009 को फिर उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

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15 साल की सजा काट चुका है अपराधी

जिसके बाद वर्ष 2023 में गिर्राज की ओर से एक याचिका दायर की गई, जिसमें बताया गया कि वह 15 साल से ज्यादा सजा काट चुका है. शासन की 2008 की पॉलिसी के अनुसार उम्र कैद पाने वाले अपराधी 14 साल की सजा पूरी करने के बाद रिहाई के पात्र हो जाते हैं. जबकि शासन की तरफ से यह तर्क दिया गया कि 2008 की यह कोई पॉलिसी नहीं बल्कि सरकार की योजना थी.

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