Lok Sabha Election 2024 Voting Percentage: पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को 102 सीटों पर चुनाव संपन्न हुए, लेकिन इस चुनाव में वोट प्रतिशत (Election 2024 Phase-1 Voting Percentage) में आई कमी ने बड़े-बड़े चुनावी विशेषज्ञों से लेकर राजनीतिक पार्टियों के भी होश उड़ा दिए हैं. दरअसल, इस चुनाव में दो प्रतिशत से लेकर 14 प्रतिशत तक वोटिंग एक झटके में कम हो गई. ऐसी स्थिति में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि इसका चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा. ऐसे में आइए- इतिहास की नजर से जानते हैं. कि जब पिछले चुनावों में वोट प्रतिशत घटा तो इसका क्या असर पड़ा, वोट बराबर रहे तो क्या असर हुआ और जब वोटों में वृद्धि हुई, तो इसका क्या असर हुआ. सबसे पहले आइए देखते हैं कि किस राज्य में कितने प्रतिशत वोटों में कमी आई है.
(MP Election Voting Percentage) एमपी में घट गए 12 प्रतिशत वोट
देश के दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में 2019 में 75 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 63 फ़ीसदी पर आ गए हैं. यानी एक झटके में यहां 12 प्रतिशत वोट कम हो गए हैं.
(UP Election Voting Percentage) यूपी में तकरीबन 9 % कम पड़े वोट
राज्यवार जब हम आंकड़े को देखते हैं, तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में इससे पहले के चुनाव में इन्हीं सीटों पर जिन पर 19 अप्रैल को वोटिंग हुई है, 66.6 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, लेकिन इस बार वह घटकर 57 .55 फ़ीसदी पर आ गई. यानी तकरीबन नौ फ़ीसदी वोट कम हो गए हैं.
(Bihar Election Voting Percentage) बिहार में 7% कम पड़े वोट
बिहार में 53.6 फ़ीसदी वोट 2019 में पड़े थे. इन्हीं चार सीटों पर जहां इस बार वोटिंग हुई है. लेकिन, इस बार मत प्रतिशत एक झटके में घटकर 46. 72 प्रतिशत रह गई है. यानी यहां भी 7 प्रतिशत वोट कम हो गए हैं.
(Rajasthan Election Voting Percentage) राजस्थान में 14 प्रतिशत कम हुई वोटिंग
वहीं, 2019 में राजस्थान में 64 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो इस बार घटकर 50 प्रतिशत पर आ गई है. यानी तकरीबन चौदह फ़ीसदी वोट यहां कम हो गए हैं.
(Maharashtra Election Voting Percentage) महाराष्ट्र में 10% कम हुई वोटिंग
महाराष्ट्र में जिन सीटों पर पहले चरण के दौरान वोटिंग हुई है. वहां 2019 में 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 54 प्रतिशत रह गई है. यानी लोगों में मौजूदा सत्ता को लेकर ऐसी निराशा है कि वह घर से ही निकले.
(West Bengal Election Voting Percentage) पश्चिम बंगाल में बढ़ा वोट प्रतिशत
पहले चरण में पश्चिम बंगाल मात्र ऐसा राज्य है, जहां वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि हुई है, जिसे भाजपा के लिए मुफीद समझा जा रहा है. यहां 2019 में 66 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार बढ़कर सत्तर प्रतिशत हो गई है.
बाकी सभी राज्यों में आई गिरावट
इसके बाद राज्य दर राज्य बढ़ते चले जाइए, लेकिन कहीं भी वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी नजर नहीं आएगी. अरुणाचल प्रदेश में 2019 में 82 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 63 प्रतिशत रह गई है. असम में तब इक्यासी प्रतिशत था, जो इस बार घट कर 70 प्रतिशत रह गई है. मणिपुर में 2019 में 82 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जहां इस बार हिंसा के बीच 67 प्रतिशत वोटिंग हुई है. दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में 2019 में 72 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 62 प्रतिशत रह गई है. वहीं, माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में 2019 में 71 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 63 प्रतिशत रह गई है. उत्तराखंड जो 61 पे था, वो घटकर 53 पर आ गया है.
चुनावी शोर के बीच घटी वोटिंग
हैरत की बात ये है कि वोटिंग प्रतिशत में गिरावट ऐसे वक्त में हुई है, जब देश में राजनीति उफान पर है. लोकसभा चुनाव को लेकर पूरा देश शोर में डूबा हुआ है, लेकिन ऐसा लगता है कि नेताओं के भाषणों और वादों का जनता के ऊपर कोई असर ही नहीं हुआ. यह उदासीनता से दो-तीन बातों का साफ पता चलता है. जनता का पहला संदेश ये है कि हमारे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है, तो हम किसी के लिए क्यों निकले. दूसरी स्थिति ये बताई जा रही है कि इस वक्त जो मौजूदा सरकार है, उसके प्रति हमारी कोई अच्छी रुचि है ही नहीं, तो फिर घर से बाहर क्यों निकले. और तीसरी परिस्थिति है, जिस पार्टी को आप चुनेंगे उससे भी बदलाव की उम्मीद नहीं है. ऐसे में ये कहा जा रहा है कि राजनीति तोर पर यह चुनाव 2004 की दिशा में बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, क्योंकि 2004 में 58 फ़ीसदी वोट पड़े थे. यानी उससे पहले के चुनाव के 60 फ़ीसदी से वोट प्रतिशत नीचे आ गया था.
2004 में 2% वोट कम होने सत्ता से बाहर हो गए थे अटल
2009 में वोट प्रतिशत नहीं बदलने पर नहीं बदली सत्ता
वहीं, 2009 में वोटिंग प्रतिशत 58 फ़ीसदी ही रही. यानी बढ़ा नहीं, तो कम भी नहीं हुआ. ऐसे में मनमोहन सिंह की सरकार एक बार फिर से सत्ता हासिल करने में सफल हो गई.
2014 में मत प्रतिशत बढ़ने पर बदल गई सत्ता
2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और मोदी लहर के बीच वोटिंग का प्रतिशत 66 फीसदी तक चला गया और एक झटके मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता से बेदखल हो गई.
2019 में एक प्रतिशत बढ़ा वोट और बरकरार रही सत्ता
इसके बाद 2019 में तो भारतीय इतिहास में वोटिंग सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत चला गया और मोदी सरकार एक बार फिर से सत्ता पाने में सफल हो गई.
मौजूदा वोट प्रतिशत सत्ता के लिए है खतरे की घंटी
ऐसे में पहले चरण की वोटिंग रफ्तार साफ बता रही है कि अगर इसी हिसाब से अगले छह चरणों में वोटिंग हुई, तो यह वोटिंग एक तरीके से लगभग 59 प्रतिशत या ज्यादा से ज्यादा 60 प्रतिशत पर ही आकर रुक जाएगी, जो वर्तमान सत्ता के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. दरअसल, वोट प्रतिशत में ये गिरावट ऐसे वक्त में हो रही है, जब मौजूदा सत्ताधारी दल और उसके नेता देश को 2047 में विकसित राष्ट्र बनाने की बात कह रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर इस देश को पैदल नापते हुए कांग्रेस सांसद जमीनी मुद्दा उठा रहे हैं. यानी ये चुनाव पूरी तरह से मोदी के चेहरे और राहुल की सोच पर आकर सिमट गया है.