Satna Lok Sabha Seat Profile: चुनाव के दौरान भले ही ये नारे खूब सुनाई दें कि जात-पात छोड़कर मतदान करें लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पूरा चुनावी तानाबाना ही जाति के आधार पर बुना जाता है. हर सीट की अपनी अलग कहानी होती है, अपने अलग-अलग जातीय गणित होते हैं. ऐसी ही सीट सतना लोकसभा सीट (Satna Lok Sabha Seat) भी है जो अपने जातीय समीकरणों के लिए पहचानी जाती है. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए सतना सीट में मतदान (Lok Sabha Voting) 26 अप्रैल को होगा है. उससे पहले इस सीट के लिए तीन प्रमुख दलों (Political Party) ने अपने उम्मीदवारों (Lok Sabha Candidate) के नाम फाइनल कर दिए हैं. अभी तक तो यहां 'कमल (BJP) और 'पंजे' (Congress) को ही सीधे तौर पर आमने-सामने देखा जा रहा था, लेकिन 'हाथी' यानी बीएसपी (BSP) ने नारायण त्रिपाठी (Narayan Tripathi) को अपने कुनबे में शामिल कर बड़ा दांव चल दिया. अब सतना लोकसभा सीट का चुनाव बेहद दिलचस्प दौर में जा पहुंचा है. वैसे भी सतना लोकसभा सीट हमेशा से जातीय समीकरणों के लिए पहचानी जाती रही है. 2019 का लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) छोड़ दिया जाए तो यहां पर जातीय समीकरणों के चलते नेताओं की जीत-हार की इबारत लिखी जाती रही है.
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चुनावी रण में इस बार ये हैं उम्मीदवार
भारतीय जनता पार्टी (BJP Candidate) की ओर से चार बार के सांसद गणेश सिंह मैदान में हैं. जबकि कांग्रेस (Congress Candidate) ने किला फतह करने का जिम्मा अपने सतना विधायक (Satna MLA) सिद्धार्थ कुशवाहा (Siddarth Kuswaha) के कंधों पर दिया है. वहीं अब बहुजन समाज पार्टी (BSP Candidate) ने भी एंट्री मारते हुए नारायण त्रिपाठी को ब्राम्हण कार्ड के तौर पर अपना दांव चल दिया है.
दल बदला पर लोकप्रियता है कायम
नारायण त्रिपाठी ने विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) से पहले बीजेपी से अलग हुए और नई पार्टी विंध्य जनता से विधायकी का चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में नारायण का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. हालांकि उसके बाद भी नारायण के समर्थकों में कोई कमी नहीं आई. लोकसभा चुनाव में जैसे ही उनका नाम बीएसपी ने फाइनल किया वैसे ही उनके समर्थक फिर सक्रिय हो गए.
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निर्णायक होंगे एससी-एसटी के वोट
सतना सीट में ओबीसी और सर्वण नेताओं के मैदान में आने के बाद अब निर्णायक भूमिका में एससी (SC) और एसटी (ST) वर्ग के वोट रहेंगे. इस वर्ग का वोट जिस दल के साथ रहेगा वही जीत अर्जित करेगा.
अब जानिए सतना लोकसभा का चुनावी इतिहास
मध्य प्रदेश की सतना लोकसभा सीट (Satna Lok Sabha Election Results) पर 2014 के आम चुनाव में BJP के गणेश सिंह ने जीत दर्ज की थी. उन्हें 3,75,288 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के अजय सिंह 3,66,600 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे.
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विधान सभा चुनाव में डब्बू से हारे थे गणेश
लोकसभा चुनाव से ठीक तीन चार महीने पहले ही बीजेपी के गणेश सिंह और कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू के बीच भिडंत हो चुकी है. इस दौरान सांसद गणेश सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा था. सांसद गणेश सिंह को 4041 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा को 70638 वोट मिले थे. वहीं गणेश सिंह को 66597 वोट मिले थे.
सतना संसदीय सीट पर पिछले सात चुनावों से हार पर हार झेल रही कांग्रेस ने 28 साल बाद ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया. साल 1996 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने तोषण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था, हालांकि उस समय उन्हें 96 हजारों वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा था. उसके बाद से कांग्रेस ने सतना लोकसभा सीट में हर बार सामान्य वर्ग के जनप्रतिनिधि पर ही भरोसा जताया है. कभी क्षत्रिय तो कभी ब्राम्हण उम्मीदवार उतारे, पर पार्टी को सफलता नहीं मिली और सतना में पिछले सात चुनावों से ओबीसी चेहरा ही चुनाव जीतता रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने भी अपने ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया है.
कांग्रेस ने हर वर्ग को आजमाया फिर भी मिली शिकस्त
1996 से 2019 तक 23 सालों में हुए सात चुनावों के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवारों की यदि बात की जाए तो इस दौरान पार्टी ने एक-एक बार ओबीसी और ब्राम्हण जनप्रतिनिधि पर भरोसा जताया. वहीं 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार क्षत्रिय वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों पर दांव लगाया, लेकिन हर बार पार्टी को निराशा ही हाथ लगी है.
जब कांग्रेस चौथे स्थान पर पहुंच गई
1996 और 2009 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग था. इन दोनों चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों को चौथा स्थान प्राप्त हुआ था. कांग्रेस ने 1996 में तिवारी कांग्रेस से चुनावी समर में उतरे कुंवर अर्जुन सिंह के खिलाफ उनके ही कट्टर समर्थक तोषण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था. तोषण सिंह को चुनाव में 71 उम्मीदवारों के बीच चौथा स्थान मिला था और तो और कांग्रेस उम्मीदवार को जितने वोट मिले थे उससे ज्यादा वोटों से पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था. तोषण सिंह को 85 हजार 751वोट मिले थे लेकिन उनके पराजय का अंतर 96 हजार 545 वोट था. कुछ यही हाल 2009 के लोकसभा चुनाव का था, इस चुनाव में कांग्रेस ने सुधीर सिंह तोमर को अपना उम्मीदवार बनाया था, सुधीर को टिकट दिए जाने से नाराज राजाराम त्रिपाठी ने साइकिल की सवारी कर ली और कांग्रेस को चौथे स्थान पर धकेल दिया. चुनाव में सुधीर सिंह को 21 उम्मीदवारों में चौथा स्थान मिला था. सिंह को भी जितने वोट मिले थे उससे ज्यादा मतों से उन्हे पराजय का सामना करना पड़ा था. सुधीर सिंह को चुनाव में 90 हजार 806 वोट मिले थे और उन्हे 1 लाख 3 हजार 818 मतों से पराजय मिली थी.
कुंवर अर्जुन सिंह के बाद नहीं जीता कांग्रेसी चेहरा
1991 में सतना में कांग्रेस के आखिरी सांसद कुंवर अर्जुन सिंह चुने गए थे. इसके बाद से 2019 तक सात चुनाव हो चुके हैं और पार्टी को लगातार पराजय का सामना करना पड़ रहा है. इस बीच 1996 से 2019 के बीच अब तक 1996 में एक बार बसपा और उसके बाद से लगातार 6 चुनाव से भाजपा जीत रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि बसपा से सुखलाल कुशवाहा ओबीसी वर्ग से आते हैं, तो भाजपा से लगातार पटेल सतना संसदीय सीट में चुनाव जीत रहे हैं, दो बार 1996 और 98 में रामानंद सिंह तो 2004 से गणेश सिंह लगातार सांसद चुने जा रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी भाजपा ने पांचवी बार गणेश सिंह पर ही भरोसा जताया है.
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