साहित्य, कला और संस्कृति के महोत्सव 'विश्वरंग' 2023 का हुआ शुभारंभ, मालवी लोक संगीत की बिखरी छटा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साहित्य, कला और संस्कृति के सबसे बड़े महोत्सव टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला महोत्सव 'विश्वरंग' का आगाज गुरुवार को रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय परिसर में बड़ी धूमधाम से विश्व यात्रा के साथ हुआ.

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रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में विश्वरंग महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया.

Vishwarang Mahotsav 2023 in Bhopal: साहित्य, कला और संस्कृति के सबसे बड़े महोत्सव टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला महोत्सव 'विश्वरंग' (Tagore International Literary Arts Festival) का आगाज गुरुवार को रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय परिसर (Rabindranath Tagore University Campus) में बड़ी धूमधाम से विश्व यात्रा के साथ हुआ. इस आयोजन में देश-विदेश के सैकड़ों रचनाकारों, कलाकारों, साहित्यकारों, भाषाविदों द्वारा शिरकत की जा रही है. यह विश्वरंग महोत्सव का पांचवा संस्करण (Fifth edition of Vishwarang Mahotsav) है. आज के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में मॉरीशस से पधारीं विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ. माधुरी रामधारी उपस्थित रहीं. उन्होंने दीप प्रज्वलन करके महोत्सव का शुभारंभ किया. टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे, सह निदेशक लीलाधर मंडलोई, वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष मुकेश वर्मा, विश्वरंग की सह निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीकांत, विश्वरंग सचिवालय के संयोजक जवाहर कर्नावट, अमेरिका से इंद्रजीत शर्मा और अनूप भार्गव, नीदरलैंड्स से रामा तक्षक और वैश्विक हिंदी परिवार संस्था से अनिल जोशी मौजूद रहे.

इस दौरान मुख्य अतिथि डॉ. माधुरी रामधारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि विश्वरंग के आयोजन में हिंदी को खिलखिलाते देखा जा सकता है और साहित्य जीवित दिखता है, कलाएं प्रफुल्लित नजर आती हैं. ऐसा आयोजन आज की महती आवश्यकता है. हिंदी को विश्व की भाषा बनाने के लिए विश्वरंग जैसे आयोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. विश्वरंग यहां से निकलकर विश्व के अलग अलग कोनों तक पहुंचना चाहिए. यदि इसकी शुरुआत मॉरीशस के विश्व हिंदी सचिवालय से हो तो हमें प्रसन्नता होगी. विश्वरंग जैसे अच्छे कार्य होते हैं तो वे वर्षों तक संजोए जाते हैं. विश्वरंग में हिंदी, संस्कृति और साहित्य को लेकर जो कार्य हो रहा है, वो सदियों तक लोगों की स्मृति में रहेगा. साथ ही उन्होंने हिंदी के प्रचार में विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे की भूमिका पर बात करते हुए कहा कि सबको साथ लेकर चलने की शक्ति को संयुक्त शक्ति कहते हैं और यह शक्ति संतोष चौबे के पास है. इसलिए वे इतनी विशाल परिकल्पना कर पाते हैं और टीम को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

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महोत्सव में प्रदेश भर से आए हुए कलाकार शामिल हुए.

बोलियां ही भाषा को ताकत और रस देती हैं

वहीं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि विश्वरंग वैचारिक व हिंदी के पक्ष में एक आंदोलन बन गया है. इसके तहत हिंदी और भारतीय भाषाओं में गहराई में उतर कर कार्य कर रहा है, जिसके चलते यह बड़ा डोमेन बन गया है. हमारा मानना है हिंदी को अन्य भाषा के खिलाफत में नहीं देखना चाहिए क्योंकि प्रत्येक भाषा का अपना एक सम्मान और गरिमा है. इसमें बोलियों की भूमिका का एक अहम पहलू है. हमें उन्हें साथ लेकर चलना होगा. बोलियां ही भाषा को ताकत और रस प्रदान करती हैं. आगे अपने वक्तव्य में उन्होंने प्रवासी भारतीय के साहित्य पर बात करते हुए कहा कि हमें उसे गंभीरता से देखने की जरूरत है. उन्होंने कला, संस्कृति और साहित्य को एक संयुक्त शक्ति बताया जो जोड़ने का काम करती है. उन्होंने एनईपी को भी सराहा और भाषा को कौशल के रूप में देखने की बात कही.

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स्वागत वक्तव्य में विश्वरंग की सह-निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदी ने विश्वरंग की परिकल्पना के बारे में बताते हुए प्रथम संस्करण से लेकर चतुर्थ संस्करण के बारे में विस्तार से जानकारी दी. इस दौरान उन्होंने कोविड काल के समय में भी विश्वरंग में भी अनवरत जारी रखने के बारे में भी बताया. राम तक्षक ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्व रंग के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं एवं संस्कृति को समृद्ध बनाने का काम किया जा रहा है. इसे सफल बनाने हेतु एक  साझा संसार श्री संतोष चौबे, मंडलोई जी, शिवजी एवं मुकेश वर्मा के रूप में एक साथ काम कर रही है. इसे समृद्ध बनाने में निश्चित ही प्रवासी साहित्यकार अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं. यह विश्व रंग प्रवासी साहित्यकार को भी एक वैश्विक मंच प्रदान कर रहा है. रवींद्रनाथ टैगोर के शिक्षण संस्थान स्थापित करने की सोच को यह आईसेक्ट समूह एवं विश्व रंग साकार करने में अग्रसर है.

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इस मौके पर न्यूयॉर्क की संस्था के इंद्रजीत शर्मा द्वारा संतोष चौबे को पं. तिलक राज शर्मा स्मृति शिखर सम्मान प्रदान किया गया. उद्घाटन समारोह का संचालन टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक श्री विनय उपाध्याय ने किया. इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत टैगोर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि से हुई. इस दौरान विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने कहा कि हम हिंदी और भारतीय संस्कृति के वाहक हैं. भारतीय संस्कृति और हिंदी का हमें विस्तार करना है. जब हम भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो इसमें सभी भारतीय भाषाओं का समावेश रहता है.

महोत्सव में कला का भरपूर प्रदर्शन देखने को मिला.

सरोद वादन में “एकला चलो रे...” से मोहा मन

कार्यक्रम की शुरुआत आमिर खान द्वारा सरोद वादन से हुई. इसमें उनके साथ संगत में पखावज पर हृदेश चोपड़ा रहे. अपनी प्रस्तुति में उन्होंने टैगोर के प्रसिद्ध गीत “एकला चलो रे... से शुरुआत की. इसके बाद “आकाश जूरे श्यूनी न्यू...” को पेश किया. अपनी अंतिम प्रस्तुति में “आर नेरे बेला...” से सभी का मन मोहा.

जानकी बैंड में टैगोर की रचनाओं की प्रस्तुति

जबलपुर के श्री जानकी बैंड ने बांग्ला रवींद्र संगीत के द्वारा टैगोर जी की रचनाओं की सांगीतिक प्रस्तुति दी. इसमें पहली प्रस्तुति ‘ओढ़े भाई फागुन लेगे छे...” की रही. दूसरी प्रस्तुति में “एक दुकु हुआ लागे....”. इसके बाद “मानो मोरो मोंजेरू...” और “एकला चलो रे...” को पेश किया. प्रमुख गायिका डॉ. क्षिप्रा सुल्लेरे और परिकल्पना दविन्द्र सिंह ग्रोवर की रही. उनके साथ अन्य कलाकारों में मुस्कान सोनी, मनीषा तिवारी, शालिनी अहिरवार, श्रेया ठाकुर, श्रुति जैन, माही सोनी, मानसी सोनी, मृणालिका शामिल रहीं.

मालवी लोक संगीत ने बिखेरे लोक कलाओं के रंग

अजय सिसोदिया एवं समूह ने भील आदिवासियों के प्रमुख नृत्य भगोरिया की प्रस्तुति से लोक कलाओं के रंग बिखेरे. इसमें तीर कमान के संग युवाओं ढोल मांदल की थाप पर नृत्य पेश किया गया. वहीं, तृप्ति नागर एवं समूह द्वारा मालवी लोक संगीत की प्रस्तुति दी गई.

शहनाई पर गूंजे राग श्याम कल्याण

शहनाई वादन की प्रस्तुति मीर घराना कन्नौज के हाजी मोहम्मद याकूब अली खान द्वारा दी गई. उन्होंने चार सुमधुर रागों की प्रस्तुति दी. इसमें पहली प्रस्तुति राग श्याम कल्याण की रही. इसके बाद राग ललित, राग अहीर भैरव, राग पुरिया को पेश किया. इसके बाद गीतों की प्रस्तुति में लोकप्रिय गीतों को पेश किया जिनमें “दमादम मस्त कलंदर...”, “सरे राह चलते चलते...”, “लग जा गले...”, “तू गंगा की मौज मैं जमना की धारा...” और “ठाड़े रहियो बांके लाल रे...” से सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया.

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