Kuno National Park Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में जल्द ही एक बार फिर नए मेहमान आने वाले हैं. चीता प्रोजेक्ट की सफलता को आगे बढ़ाते हुए चीतों की तीसरी खेप के रूप में 8 चीते बोत्सवाना से कूनो नेशनल पार्क लाए जा सकते हैं. प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार ये चीते 26 जनवरी को भारत पहुंच सकते हैं.
बोत्सवाना से आने वाले चीतों के लिए कूनो नेशनल पार्क में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. तीसरी खेप के चीतों को रखने के लिए बोमा यानी बड़े बाड़े तैयार किए जा रहे हैं. इसी क्रम में पहले से मौजूद चीतों की देखरेख और नई व्यवस्थाओं का जायजा लेने के लिए बोत्सवाना से तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल कूनो नेशनल पार्क पहुंचा.
Kuno National Park Madhya Pradesh
चीतों के लिए तैयार किए गए बाड़ों का निरीक्षण
इस टीम में बोत्सवाना के पर्यावरण एवं पर्यटन मंत्रालय के अंतर्गत संचालित डिपार्टमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ एंड नेशनल पार्क्स के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. एमम्माडी रूबेन, सुरक्षा अधिकारी एड्रियन खोली और बायोलॉजिस्ट फेमेलो गादिमांग शामिल थे. प्रतिनिधिमंडल ने कूनो के जंगल क्षेत्र से लेकर चीतों के लिए तैयार किए गए बाड़ों, भोजन, पेयजल और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया.
Kuno National Park Madhya Pradesh
कूनो नेशनल पार्क प्रशासन की ओर से चीता प्रोजेक्ट को लेकर एक विस्तृत प्रस्तुति भी दी गई, जिसमें पिछले तीन वर्षों की प्रगति की जानकारी साझा की गई. इस पर बोत्सवाना के अधिकारियों ने संतोष जताते हुए कहा कि कूनो नेशनल पार्क में प्रोजेक्ट चीता सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और यह सफलता की ओर अग्रसर है.
कूनो नेशनल पार्क के भ्रमण के बाद बोत्सवाना का यह प्रतिनिधिमंडल मंदसौर स्थित गांधी सागर अभयारण्य भी पहुंचा, जहां सदस्यों ने पार्क का निरीक्षण किया. उल्लेखनीय है कि पिछले माह भारत और बोत्सवाना के बीच हुए समझौते के तहत आठ चीतों को भारत लाया जाना है. यह खेप संभावित रूप से जनवरी माह में कूनो नेशनल पार्क पहुंचेगी.
कूनो नेशनल पार्क 1235 वर्ग किलोमीटर में फैला
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो नेशनल पार्क वन्यजीव प्रेमियों के लिए खास पहचान रखता है. यह इलाका अपने खुले घास के मैदानों और कर्दई, खैर व सालई के जंगलों के कारण जाना जाता है. जंगल के भीतर दूर-दूर तक फैले मैदानों में एक साथ कई तरह के वन्यजीव दिखाई देना कूनो की खासियत मानी जाती है. यहां के कुछ घास क्षेत्र इतने बड़े हैं कि उनकी तुलना कान्हा और बांधवगढ़ जैसे बड़े टाइगर रिजर्व से की जाती है.
कूनो के जंगलों में कर्दई के पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. स्थानीय जानकारों के अनुसार वातावरण में नमी बढ़ते ही ये पेड़ मानसून से पहले ही हरे होने लगते हैं. यही वजह है कि कर्दई को कूनो की जीवटता और संघर्षशील प्रकृति का प्रतीक माना जाता है.
कूनो आज भले ही नेशनल पार्क हो, लेकिन इसकी शुरुआत एक अभयारण्य के रूप में हुई थी. पहले इसका क्षेत्रफल करीब 350 वर्ग किलोमीटर था और बीच से बहने वाली कूनो नदी पूरे जंगल को जीवन देती थी. यह नदी साल भर पानी की उपलब्धता बनाए रखती है और इसी के नाम पर इस वन क्षेत्र को कूनो कहा गया.
एशियाई शेरों के पुनर्वास को लेकर जब कूनो को संभावित स्थल के तौर पर चुना गया, तब इसके क्षेत्र और संरक्षित दर्जे को लेकर सवाल उठे. इसके बाद करीब 400 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त वन क्षेत्र को इसमें जोड़ा गया और कूनो को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया. फिलहाल कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यह कूनो वाइल्डलाइफ डिवीजन का अहम हिस्सा है, जिसका कुल क्षेत्रफल 1235 वर्ग किलोमीटर से अधिक है.
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