Vistadome Coach : रेलवे के लिए गले की फांस बन गया इस रूट का विस्टाडोम कोच, घाटे में चल रहा विभाग ले सकता है बड़ा फैसला

Janshatabdi Express Vistadome Coach: रेलवे इस बात पर भी विचार करेगी कि जबलपुर जनशताब्दी एक्सप्रेस से इसे हटकर देश के किसी अन्य पर्यटन केंद्र की ट्रेन में लगा दें, ताकि लोग इसका आनंद उठा सकें और रेलवे को होने वाले घाटे को भी पूरा किया जा सके.

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Indian Railway News:  जबलपुर से भोपाल के बीच प्राकृतिक नजारों से पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम मध्य रेल ने जबलपुर- भोपाल जनशताब्दी एक्सप्रेस में लगा विस्टाडोम कोच (Vistadome Coach) अब रेलवे के लिए ही गले की फांस बन गया है. रेलवे में ये कोच तो लगा दिया लेकिन सालभर में घाटा ही घाटा हो गया. अब इसे हटाने की प्लानिंग विभाग कर रहा है. 

सालभर पहले लगा था

जबलपुर-भोपाल जनशताब्दी एक्सप्रेस (Jabalpur-Bhopal Janshatabdi Express) में लगा विस्टाडोम कोच में एक चारों तरफ के नजारे दिखने वाला कांच का ट्रांसपेरेंट अत्याधुनिक कोच लगाया है. इसे विस्टाडोम कोच कहा जाता है. इस कोच की सुविधाजनक  सीटों को इस तरह बनाया गया था कि यह 180 डिग्री में घूम सकती हैं. प्राकृतिक नजारों के साथ लोग अपने साथ आए यात्रियों से भी घूम कर बात कर सकते हैं.  

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रेलवे की मंशा यह थी कि देसी-विदेशी पर्यटक इन कोचों में यात्रा कर मध्य प्रदेश के पर्यटन को बढ़ावा देंगे और ग्रुप टूर भी विस्टाडोम कोच में पूरा आनंद उठा सकेंगे. लेकिन 350 दिन गुजर जाने के बाद भी रेलवे को सिर्फ घाटा ही हुआ है.

विस्टाडोम कोच में सिर्फ 12%  यात्रियों ने अभी तक यात्रा की इससे रेलवे को 2 करोड़ रुपए की आय होने का अनुमान था, इसके बदले रेलवे को सर्फ 21 लाख रुपए की ही आय हो सकी है. इन 350 दिनों के दौरान 15312 सीटें विस्टाडोम कोच  की उपयोग में लाई जा सकती थी. लेकिन 13495 खाली रह गई, इसके पीछे मुख्य कारण विस्टाडोम कोच का किराया है. सामान्य चेयर कार में जहां जबलपुर से भोपाल तक जाने का किराया 565 रुपए होता है, वहीं विस्टाडोम कोच में 1390 किराया लगता है.  

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कम यात्री का एक कारण यह भी है कि विस्टाडोम कोच सबसे अंतिम में लगाया जाता है जो बुजुर्ग यात्रियों के लिए असहज उन्हें दोनों बार लंबी दूरी तक चलना पड़ता है. अंतिम छोर पर होने से चाय-पानी वाले भी नहीं आते हैं. इस किराए में कोई भी भोजन या नाश्ता भी शामिल नहीं किया गया है. कुल मिलाकर विस्टाडोम कोच का अंतर सिर्फ ट्रांसपेरेंट रूफ के साथ घूमने वाली सीटों को ही माना जाता है.

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हवाई जहाज की तर्ज पर किया गया था प्रयोग 

रेलवे ने विस्टाडोम कोच का प्रयोग हवाई जहाज प्राकृतिक नजारे दिखाने की टक्कर देने के लिए बनाया था. जबलपुर से भोपाल के बीच निःसंदेह बहुत ही अच्छे प्राकृतिक नजारे हैं, लेकिन किराए के भारी अंतर के चलते लोग एक बार तो विस्टाडोम कोच पर यात्रा कर लेते हैं. उसके बाद फिर अगली यात्रा सामान्य कोच में ही करते हैं . यह भी देखा गया है कि पूरी ट्रेन अंदर से जुड़ी होती है, इसलिए यात्रा के दौरान यात्री कुछ देर विस्टाडोम कोच में घूम कर आते हैं और फिर वापस अपनी सीट पर बैठ जाते हैं.

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गर्मी में कठिन हो जाता है सफर

विस्टाडोम कोच का सफर गर्मी के दिनों में और भी ज्यादा कठिन हो जाता है ठंड और बारिश में तो यात्री विस्टाडोम कोच की ट्रांसपेरेंट सीलिंग और खिड़कियों का पूरा आनंद लेते हैं. लेकिन गर्मी में यह सफर थोड़ा कठिन हो जाता है.

जबलपुर से भोपाल लगातार यात्रा करने वाले यात्री अखिल मिश्रा ने बताया कि कोच का किराया चेयर कर की तुलना में 3 गुण और स्लीपर की तुलना में 8 गुना ज्यादा है एकाद बार तो इस पर यात्रा की जा सकती है, लेकिन निरंतर यात्रा करने में यह बहुत महंगा साबित होता है

बजट में पुनर्विचार किया जाएगा 

रेलवे के जिम्मेदार अधिकारी बता रहे इस बार बजट में विस्टाडोम कोच को आगे के वर्ष में चालू रखना है या बंद किया जाए इस पर  विचार किया जाएगा. क्योंकि अभी तक रेलवे इससे करोड़ों रुपए का नुकसान उठा चुकी है. अब रेलवे इस बात पर भी विचार करेगी की जबलपुर जनशताब्दी से इसे हटकर देश के किसी अन्य पर्यटन केंद्र की ट्रेन में लगा दें, ताकि लोग इसका आनंद उठा सके और रेलवे को होने वाले घाटे को भी पूरा किया जा सके. रेलवे ने नवाचार के चलते यह प्रयोग किया था. लेकिन ऐसा लगता है कि फिलहाल यह विस्टाडोम कोच रेलवे के गले की हड्डी बन गए हैं जब तक यह चलाए जाएंगे नुकसान ही देते रहेंगे.

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