IAS बनने का सपना, दोनों हाथ बेकार... पैरों से 10th Exam में किया कमाल, ऐसी है डिंडौरी की बेटी की कहानी

Success Story: दिव्यांग छात्र सुगंती ने अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत 10वीं की परीक्षा में बता दिया है कि वे पैरों ही ही आसमान छू सकती हैं लेकिन उनको मदद की दरकार है, पर आजतक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने उसकी सुध तक नहीं ली है. सुगंती आदिवासी समुदाय से आती है और डिंडौरी जिले में विभिन्न राजनैतिक दलों के राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं, लेकिन मदद नहीं मिली.

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Inspirational Story: दोनों हाथ बेकार, बोर्ड एग्जाम में कर दिया कमाल

Inspirational Story: हाथों की लकीरों पर कभी विश्वास मत करना, क्योंकि तकदीरें तो उनकी भी होती हैं, जिनके हाथ नहीं होते. ये पंक्तियां सुगंती अयाम पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी (Dindori News) जिले में एक दिव्यांग छात्रा सुगंती ने दिव्यांगता की परिभाषा और मायने को ही बदलकर रख दिया है. छोटे से गांव सुनियामार में रहने वाली जन्म से ही दिव्यांग (Divyang) सुगंती अयाम ने दिव्यांगता को अपने हौसलों के आगे दीवार नहीं बनने दिया. सुगंती ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को कैसे जीवंत करके रख दिया, देखिये डिंडौरी से हमारी खास रिपोर्ट.

ऐसी हैं जिंदादिल सुगंती

सुगंती के दोनों हाथ जन्म से ही बेकार हैं, बावजूद इसके उसने स्कूल जाना नहीं छोड़ा. दोनों हाथ बेकार होने की वजह से सुगंती ने पैर में पेन फंसाकर लिखना शुरू किया था और अब वो पैर से लिखने में कुशल और दक्ष हो चुकी हैं. उसकी राइटिंग और दसवीं की मार्कशीट को देखकर उनकी कुशलता और दक्षता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. सामान्य व्यक्ति के हाथों से लिखने की स्पीड और हैंडराइटिंग से कहीं बेहतर सुगंती पैर से लिख लेती हैं.

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बीते वर्ष ही सुगंती ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 64 प्रतिशत अंकों के साथ फर्स्ट डिवीजन पास किया है. एनडीटीवी से बात करते हुए सुगंती ने कहा की वे पढ़ लिखकर अपने मजदूर माता-पिता का सहारा बनना चाहती हैं, साथ ही उन्होंने आईएएस अधिकारी (IAS Officer) बनने की इच्छा भी जाहिर की है.

सुगंती ने बताया कि बचपन से ही उसकी मां ने पढाई के लिए प्रेरित किया और पैर से ही लिखना सिखाया है. सुगंती के माता-पिता मेहनत मजदूरी करके जैसे-तैसे उसे पढ़ा रहे हैं.

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पीएम श्री स्कूल में 11वीं की छात्रा हैं सुगंती

सुगंती के गांव से स्कूल की दूरी करीब दस किलोमीटर है और स्कूल आने जाने में रोज बीस रुपये किराये में खर्च हो जाता है. सुगंती के दोनों हाथ बेकार होने के साथ साथ उसके पैर भी ठीक से काम नहीं करते हैं, लिहाजा वो ठीक से चल भी नहीं पाती हैं. ऐसे में उसकी बचपन की सहेली उसका पूरा ख्याल रखती है. सुगंती पीएम श्री हायर सेकेंडरी स्कूल गाड़ासरई में ग्यारहवीं की छात्रा हैं.

स्कूल के शिक्षक सुगंती को विलक्षण प्रतिभा का धनी कहते हुए बताते हैं कि सुगंती नियमित रूप से स्कूल आती है और बेहद ही अनुशासित तरीके से पढाई करती है. 

वहीं सुगंती के पिता सरजू ने बताया की बचपन से ही सुगंती के अंदर पढ़ने की ललक थी, जिसे देखते हुए काफी संघर्ष होने के बाद भी वे उसे जैसे-तैसे पढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.

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घरवालों का क्या कहना है?

सुगंती के पिता सरजू ने बताया कि गांव में ही उनकी तीन चार एकड़ जमीन है, जिसमें वो और उनकी पत्नी कृषि कार्य करते हैं. साथ ही घर चलाने के लिए सरजू किसी और का ट्रैक्टर चलाने का काम भी करते हैं. सरजू ने बताया की सुगंती 80 प्रतिशत दिव्यांग है, जिसका सर्टिफिकेट भी स्वास्थ्य विभाग से बना हुआ है, जिसके आधार पर सुगंती को शासन से हर महीने 600 रुपये पेंशन मिल जाता है, लेकिन पेंशन का पैसा तो गांव से स्कूल जाने के किराये में ही खर्च हो जाता है. सरजू ने एनडीटीवी के जरिये सरकार से मदद की अपील की है. एनडीटीवी की पहल के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष रुदेश परस्ते मदद का आश्वासन देते हुए नजर आ रहे हैं. 

डिंडौरी विधानसभा में करीब 17 सालों से मध्यप्रदेश कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता ओमकार मरकाम यहां विधायक हैं, तो बीजेपी के कद्दावर आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र के सांसद हैं, जो खुद को आदिवासियों का मसीहा बताते नहीं थकते हैं, लेकिन इन्होने कभी सुगंती जैसे जरूरतमंद की सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई है.

आज सुगंती उन दिव्यांगों को हौंसला देते हुए नजर आ रही हैं, जो अपने आप को असहाय और कमजोर मानकर समाज से खुद को अलग थलग कर लेती हैं. सुगंती के दोनों हाथ भले ही बेकार हों, लेकिन हौसला आसमां को बाहों में समेट लेने का है, इसलिए एनडीटीवी भी सुगंती के हौसले को सलाम करता है.

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