Basketball Team: पापा चलाते हैं ऑटो, फटे जूतों में बेटा करता था प्रैक्टिस, अब भारतीय बास्केटबॉल टीम में हुआ चयन

Indian Basketball Team: रोहन को जूनियर चैंपियनशिप यूथ में पहला सिल्वर मेडल मिला था. उसके बाद जूनियर नेशनल्स में उसने ब्रॉन्ज मेडल जीता. इसके बाद  श्रीलंका में हुए साउथ एशियन चैंपियनशिप में उसने गोल्ड मेडल जीता.

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Under 19 Basketball Match: ऑटो चालक सुनील सेजवाल के बेटे रोहन सेजवाल भोपाल जिला बास्केटबॉल संघ (Bhopal District Basketball Association) के होनहार खिलाड़ी है. अपने परिवार के साथ रोहन मैनिट के पास प्रधानमंत्री आवास में रहता है. गरीब घर से होने के बावजूद अपनी काबिलियत के दम पर इन्होंने भारतीय अंडर-19 बास्केटबॉल टीम में अपनी जगह बनाई. इस वक्त वह जॉर्डन में अपने देश का नाम रोशन कर रहा है.

10 साल की उम्र में रोहन ने पहली बार बॉस्केटबॉल खेला और यहीं से जॉर्डन तक का सफ़र तय किया. पैसों की कमी होने से फटे जूते पहनकर प्रैक्टिस करने को रोहन मजबूर थे. वहीं, आज जब रोहन जॉर्डन में आयोजित जूनियर एशियाई बास्केटबॉल चैंपियनशिप में अपना जलवा दिखा रहे है, तो उनके घर वाले गौरवान्वित महसूस करते हैं.

"मैं ऑटो चलाता हूं"

रोहन के पिता ने बताया कि मैं ऑटो चलाता हूं. मेरे तीन बच्चे दो बेटी और एक बेटा है, जब रोहन 9 साल का था, तब  हम उसे कोच यशवंत सिंह कुशवाहा के पास ले गए और उन्हें बताया कि मैं एक ऑटो चालक हूं और अपने बेटे को बास्केटबॉल खिलाना चाहता हूं. फीस पूछने पर उन्होंने बोला कि यहां कोई फीस नहीं लगती है. पिछले 9 साल से सर के पास वह प्रैक्टिस के लिए जाता रहा.

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बहन नेहा सेजवाल ने भाई के मेडल की जानकारी दी

रोहन को जूनियर चैंपियनशिप यूथ में पहला सिल्वर मेडल मिला था. उसके बाद जूनियर नेशनल्स में उसने ब्रॉन्ज मेडल जीता. इसके बाद  श्रीलंका में हुए साउथ एशियन चैंपियनशिप में उसने गोल्ड मेडल जीता.

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बेटे को देश का नाम रोशन करते देख मां हुई भावुक

अपने बेटे को विदेश में खेलते देख उनकी मां की खुशी का ठिकाना नहीं है. गरीबी के कारण जहां रोहन के परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, तो वहीं आज अपने बेटे को देश का नाम रोशन करते देख मां की आंखें भर आती है. मां उषा सेजवाल ने बताया कि खेलने का उसे शुरू से बहुत शौक था. उसके पास  खेलने के लिए जूते तक नहीं रहते थे. उसे उसके दोस्त मदद करते थे, जब वह जीत कर आता था, तो बहुत बहुत खुशी होती थी. अब भी उसके पास फोन नहीं था. 8-15 दिन दूसरे के फोन से हमसे बात करता है. जैसे-तैसे हमने उसे फोन दिलवाया और अब जाकर उससे बात होती है और वह फोटो भेजता है. रोहन आगे ऐसे ही मेहनत करे. आगे बढ़े , देश के लिए खेले और राज्य के साथ देश का नाम रोशन करें. एक छोटे से परिवार का बेटे के इतनी दूर तक पहुंचना हमारे लिए बहुत बड़ी बात है. हमें बहुत खुशी है इस बात की.

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कोच ने हर पल की मदद

पैसे न होने पर खाने के लिए पैसे देने से लेकर रोहन को पहली बॉल तोहफे में कोच यशवंत सिंह कुशवाहा ने ही दी. ये ही नहीं, छोटी उम्र से ही रोहन को ट्रेन कर जोर्डन तक पहुंचाने में भोपाल जिला बास्केटबॉल संघ के सचिव कुशवाहा की बहुत बड़ी भागीदारी रहीं. 10 साल के रोहन का जोर्डन तक सफर के बारे में कोच कुशवाहा ने बताया कि मेरे यहां फीस नहीं लगती. यही फीस है कि बच्चे दोनों टाइम खेलने आए. हमारा ग्राउंड 6 बजे चालू होता था, लेकिन रोहन सुबह 5:30 बजे ही ग्राउंड पर आकर बैठ जाता था. कंडीशनिंग में जब हम बिरला मंदिर की सीढ़ियां चढ़वाते थे, तो बहुत सारे बच्चे डर जाते थे. वहीं, रोहन 6 से 7 बार प्रैक्टिस करता था. यहीं से हमें उसकी काबिलियत का पता चला.

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रोहन अभी अंडर-19 में एक साल और खेलेगा. उसके खेलने के ढंग से यह साफ है कि आगे चलकर उसे आर्मी या रेलवे में जॉब मिल जाएगी. वहां भी उसे टीम में शामिल करेंगे. जहां से वह आगे खेल सकेगा. सभी प्रार्थना करते रहते हैं कि वह सीनियर नेशनल में भी खेलें, ताकि आगे चलकर राज्य का नाम रोशन कर सके. 

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