7 बच्चों की मां हैं गेंदाबाई, कोई भी साथ रखने को नहीं तैयार ! विदिशा में 85 साल की बुजुर्ग यूं हुईं बेघर

विदिशा जिले की तहसील नटेरन से एक दिल को झकझोर देने वाली सच्ची घटना सामने आई है. यह कहानी है 85 वर्षीय गेंदा बाई की.सात संतानों की मां… जिनकी गोद में कभी बेटा-बेटी लिपटकर खेलते थे, वही गेंदा बाई आज एक वृद्धाश्रम की दीवारों के सहारे जीवन के अंतिम दिन काट रही हैं

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Vidisha Elderly woman News: विदिशा में एक बुजुर्ग महिला हैं..उनके सात बच्चे हैं- तीन बेटे और 4 बेटियां. सभी का भरापूरा परिवार है और आर्थिक तौर पर संपन्न भी हैं लेकिन उनमें से कोई एक भी अपनी विधवा मां को अपने साथ रखने को तैयार नहीं है...वो बेटा भी नहीं जो गांव में मौजूद पैतृक आवास में रहता है और वो भी नहीं जो विदिशा में ही तीन मंजिला मकान में रहता है. तीसरा बेटा जो इंदौर में रह कर अच्छी कमाई करता है वो भी अपनी मां को आसरा देने को तैयार नहीं है . बड़ी बेटी विदिशा में ही रहती है और प्राइवेट नौकरी करती है लेकिन वो तो मां को सीधे वृद्धाश्रम छोड़कर ऐसे भागी जैसे कोई कूड़ा फेंक कर भागता है... ये कहानी है गेंदाबाई की..उम्र है 85 साल और अब उनकी हालत ये है कि उन्हें पता ही नहीं कि वे घर में रह रही हैं या वृद्धाश्रम में. 

विदिशा में बुजुर्ग मां को यूं वृद्धाश्रम के गेट पास छोड़ कर चली गई बेटी

मां को सहारा भी नहीं दे सकते?

कहा जाता है- “मां कभी थकती नहीं… मां कभी रुकती नहीं…” लेकिन जब वही मां बूढ़ी हो जाए, तो उसके बच्चे ही उसे बोझ समझने लगते हैं. यही कहानी है विदिशा जिले की तहसील नटेरन की रहने वाली गेंदाबाई की. गेंदा बाई ने पूरी जिंदगी अपने बच्चों के लिए जिया. अपने सुख-दुख की परवाह किए बिना उन्होंने बेटों-बेटियों को पढ़ाया-लिखाया, घर-परिवार बसाया. लेकिन, जब बुढ़ापा आया और पति की मौत के बाद उन्हें सहारे की ज़रूरत हुई तो उनकी सातों संतानें उन्हें बोझ समझने लगीं. आज वो वृद्धाश्रम की दीवारों के सहारे जीवन के अंतिम दिन काट रही हैं. 

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जब मां को रखने के लिए बच्चों में हुआ एग्रीमेंट

कहानी की शुरुआत उनके बड़े बेटे से होती जो शमसाबाद में स्थित पैतृक आवास में रहकर खेती-किसानी का काम करता है. गेंदाबाई उसके यहां ही रहती थी. इसी जून महीने में वो अचानक ही अपनी मां को एक खंडहर में छोड़ कर चला आया. जब ये खबर स्थानीय अखबार में छपी तो जिला प्रशासन सक्रिय हुआ और उन्हें वृद्धाश्रम में पहुंचाया.

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आश्रम के सह संचालक वेद प्रकाश ने बताया कि वे लोग जब भी ऐसा कोई बुजुर्ग आता है तो कोशिश करते हैं कि उनके बच्चों को समझाया जाए और बुजुर्ग को अपने घर में रहने का अवसर मिल जाए.

इसी उद्देश्य से वेदप्रकाश ने गेंदाबाई से बात करके उनके सातों बच्चों को वृद्धाश्रम बुलाया और उन्हें समझाया कि मां को घर ले जाएं लेकिन कोई राजी नहीं हुआ. तब आश्रम के सह संचालक ने पुलिस प्रशासन को मौके पर बुलाया. इसके बाद SDM की मौजूदगी और दबाव में सातों बच्चों ने एग्रीमेंट पर साइन किया कि सभी बारी-बारी से मां को एक-एक महीने के लिए रखेंगे. 

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मां को वृद्धाश्रम के गेट पर छोड़कर भागी बेटी  

इस एग्रीमेंट के मुताबिक मां को रखने के लिए विदिशा में रहने वाली बड़ी बेटी का पहला नंबर आया. सबके सामने तो वो बेटी मां को लेकर गई लेकिन 4 दिनों बाद ही ऑटो में बैठाकर मां को वृद्धाश्रम के गेट पर छोड़ गईं. वेद प्रकाश बताते हैं कि जब बेटी अपनी मां को छोड़कर जा रही थी तो उन्होंने उन्हें टोका, रुकने के लिए कहा लेकिन उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और वहां से तेजी से भाग गईं. वेद प्रकाश बताते हैं कि काउंसलिंग के दौरान भी सातों बच्चों में मां एक फुटबॉल की तरह इधर-उधर जाती दिख रही थीं.

गेंदाबाई की बेटी उसको कुछ यूं वृद्धाश्रम के बाहर छोड़ गई.

गेंदाबाई का कोई भी बच्चा आर्थिक तौर पर कमजोर नहीं है...सभी सक्षम हैं लेकिन कोई अपनी मां को रखने के लिए तैयार नहीं है. वृद्धाश्रम की संचालक इंदिरा शर्मा कहती हैं –"जिस हाल में गेंदा बाई को छोड़ा गया, वो शब्दों में बयान करना मुश्किल है. सात संतानें होते हुए भी अगर एक मां को वृद्धाश्रम में रहना पड़े, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है?" इस वक्त गेंदा बाई की मानसिक और शारीरिक हालत दोनों बिगड़ चुकी है.वो ये समझने की स्थिति में ही नहीं है कि वे अपने घर में नहीं बल्कि वृद्धाश्रम की छांव में रह रही हैं. जब कोई अनजान चेहरा गेंदा बाई के पास आता है, तो वे उसे अपने बेटे, पोते या नाती की शक्ल में देखने लगती हैं.उनकी आंखें आज भी उम्मीद से भरी हैं कि शायद उनका कोई अपना उन्हें लेने आएगा… लेकिन वो चेहरा अब तक सामने नहीं आया. 
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