Hingot War in Indore: दीपावली के अगले दिन इंदौर के गौतमपुरा में परंपरा के नाम पर आयोजित खतरनाक हिंगोट युद्ध में 35 लोग घायल हो गए. सदियों पुरानी इस परंपरा में जलते हिंगोट (बारूद से भरे गोले) एक-दूसरे पर फेंककर दोनों दल आमने-सामने आते हैं. हर साल की तरह इस बार भी हजारों दर्शक इस रोमांचकारी खेल का आनंद लेने पहुंचे.
विकासखंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) डॉ. वंदना केसरी ने पीटीआई को बताया कि इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में हिंगोट युद्ध के दौरान लगभग 35 योद्धा झुलस गए हैं. उन्होंने बताया कि इनमें से दो गंभीर मरीजों को देपालपुर के एक अस्पताल भेजा गया.
केसरी ने बताया कि हिंगोट युद्ध के दौरान इनमें से एक व्यक्ति के हाथ की हड्डी टूट गई, जबकि दूसरे व्यक्ति को नाक में चोट आई. बीएमओ ने बताया कि अन्य योद्धा मामूली तौर पर घायल हुए जिन्हें मौके पर पहले से मौजूद चिकित्सा दल ने प्राथमिक उपचार देकर उनके घर रवाना कर दिया.
हिंगोट युद्ध: आग और रोमांच का संगम
गौतमपुरा के मैदान में तुर्रा और रूणजी दलों के बीच हिंगोट युद्ध लड़ा गया. दोनों दलों के योद्धाओं ने जलते हिंगोट हवा में उछालकर एक-दूसरे पर फेंके. मैदान में आग और धुएं के बीच ढोल-नगाड़ों की गूंज सुनाई दी. प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे, फायर ब्रिगेड और एम्बुलेंस मौजूद थे, लेकिन इसके बावजूद पांच लोग आग की चपेट में आकर घायल हो गए.
धार्मिक परंपरा या जानलेवा खेल?
हिंगोट युद्ध को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है. 2017 में इस परंपरा के दौरान एक युवक की मौत हो गई थी, जिसके बाद इसकी वैधता पर कानूनी सवाल उठे. हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें इसे अमानवीय परंपरा बताकर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई. मामला अभी लंबित है, लेकिन आयोजन पहले की तरह जारी रहा.
हिंगोट युद्ध में कड़ें सुरक्षा इंतजाम
गौतमपुरा कस्बे में बड़ी तादाद में उमड़े दर्शक हिंगोट युद्ध के गवाह बने जिनकी सुरक्षा के लिए पुलिस ने प्रशासन के साथ मिलकर युद्ध स्थल पर जरूरी इंतजाम किए थे. अनुविभागीय पुलिस अधिकारी (SDOP) संघप्रिय सम्राट ने बताया कि हिंगोट युद्ध का रणक्षेत्र बने एक मैदान के आस-पास दर्शकों की सुरक्षा के वास्ते ऊंची जालियां व बैरिकेड लगाए गए थे और हालात की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए गए थे.
एसडीओपी ने बताया कि मौके पर पुलिस के करीब 200 कर्मियों और प्रशासन के लगभग 100 कर्मियों की तैनाती के साथ ही पर्याप्त संख्या में दमकलों और एम्बुलेंस को भी तैयार रखा गया था.
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इतिहास और महत्व
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, हिंगोट युद्ध की परंपरा मुगल काल में शुरू हुई थी. मराठा सैनिकों ने मुगलों से लड़ने के लिए सूखे फलों में बारूद भरकर गुरिल्ला युद्ध का तरीका अपनाया. समय के साथ यह धार्मिक आस्था और परंपरा का हिस्सा बन गया. आज यह युवाओं के लिए शौर्य और स्वाभिमान का प्रतीक बन चुका है, लेकिन इसमें जोखिम भी कम नहीं है.
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कैसे बनते हैं 'हिंगोट'?
हिंगोट एक जंगली फल है, जिसका बाहरी खोल बेहद सख्त होता है. इसे सुखाकर अंदर का गूदा निकाला जाता है और उसमें बारूद भरकर उसे पीली मिट्टी से बंद कर दिया जाता है. जलने पर यह स्थानीय देसी बम की तरह फटता है.