भोपाल नगर निगम भी गजब है ! बारिश का आधा मौसम बीता, नगर निगम ने अब निकाला रेनकोट का टेंडर

बारिश का आधा सीजन निकल जाने के बाद निगम को याद आई है कि कर्मचारियों को बरसाती भी देनी है. निगम को जैसे ही इसका इहलाम हुआ उसने रेनकोट के लिए टेंडर (Raincoat Tender) निकाल दिया. बता दें आम तौर पर इस प्रक्रिया में करीब एक महीने का वक्त लगता है. यानी तब तक मानसून बीत चुका होगा.

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Bhopal Nagar Nigam News: रेनकोट यानी बरसाती का इस्तेमाल बारिश में ही होता है...ये तो सभी जानते हैं. जाहिर है भोपाल नगर निगम (Bhopal Municipal Corporation) के अधिकारी भी जानते होंगे. लेकिन इस 'खास' जानकारी का इस्तेमाल शायद वे इस बारिश में नहीं करना चाहते. हम ये बातें यूं ही नहीं कह रहे हैं दरअसल बारिश का आधा सीजन निकल जाने के बाद निगम को याद आई है कि कर्मचारियों को बरसाती भी देनी है. निगम को जैसे ही इसका इहलाम हुआ उसने रेनकोट के लिए टेंडर (Raincoat Tender) निकाल दिया. बता दें आम तौर पर इस प्रक्रिया में करीब एक महीने का वक्त लगता है. यानी तब तक मानसून बीत चुका होगा. इस बीच भारी बारिश के बीच भीगते हुए काम करना नगर निगम कर्मचारियों (Bhopal Municipal Corporation employee) के लिए चुनौती और मज़बूरी दोनों बना रहेगा. आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं के वास्तविक स्थिति क्या है? 

गुरूवार को भोपाल में एक घंटे में करीब डेढ़ इंच पानी बरस गया. आलम ये है कि बीते महीने भर से लगभग हर रोज शहर में बारिश हो रही है. ऐसी बरसात में भी नगर निगम कर्मचारी काम करते रहने को मजबूर हैं. ऐसे ही दो सफाई कर्मचारियों भरत और नितिन से NDTV ने बात की. भरत और नितिन नगर निगम के दिहाड़ी कर्मचारी हैं जिन पर राजधानी भोपाल को स्वच्छ रखने की ज़िम्मेदारी है. भारी बारिश हो या धूप दोनों ही सुबह से लेकर रात तक अपनी ड्यूटी करते हैं. लेकिन बारिश के मौसम में इनकी परेशानियां बढ़ गई हैं. सभी कर्मचारियों की भीगते हुए काम करना पड़ रहा है.

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निगम की ओर से रेनकोट देने के प्रावधान हैं पर इस साल अब तक नहीं मिला. इनकी तनख्वाह इतनी कम है की रेनकोट खरीद भी नहीं सकते. दूसरी परेशानी ये है कि छुट्टी करते हैं तो तनख़्वाह काट ली जाती है.

भरत कहते हैं- हमें नहीं मालूम रेनकोट कब मिलेंगे. हमने  मांगा है लेकिन अभी तक मिला नहीं. हमें इसकी कोई उम्मीद ही नहीं है. बारिश होती है तो हमें रुककर काम करना होता है. एक और सफाई कर्मचारी मुकेश ने भी यही बात कही. 

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दरअसल ये हाल सिर्फ सफाई कर्मचारियों का नहीं है,इसमें कचरा उठाने वालों से लेकर नाले की साफ़ सफाई करने वाले भी शामिल हैं.इन कर्मचारियों की ज़रूरतों का ज़िम्मा AHO पर रहता है,दिनभर AHO के साथ गाड़ी चला कर काम करने वाले कर्मचारी खुद परेशान हैं. उनका कहना है कि बारिश से बचाव के साधन नहीं है,काम करना मज़बूरी है,हर जोन में 300 -400 रेनकोट की डिमांड मानसून के पहले ही रख दी गयी थी.आधी बारिश बीतने के बाद निगम को टेंडर निकलने की याद आयी. परेशानी ये भी है कि अबतक किसी ने टेंडर लेने में भी ख़ास रूचि नहीं दिखाई है. 

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निगम अधिकारी कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष अशोक वर्मा भी कहते है कि टेंडर जारी करने की टाइमिंग बिल्कुल भी सही नहीं है. उनकी लेटलतीफी की वजह से परेशानी कर्मचारियों को हो रही है. निगम को इसका ध्यान रखना ही चाहिए था. दूसरी तरफ प्रशासन का दावा है 15 -20 दिन में काम पूरा हो जाएगा. नगर निगम कमिश्नर हरेंद्र नारायण का कहना है कि इस बार चुनाव आचार संहिता की वजह से टेंडर नहीं निकल पाया था. हम CSR के माध्यम से इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं. हम पूरी प्रक्रिया 15 दिनों में पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल सवाल एक नगर निगम का नहीं है. ये उस प्रशासनिक सोच को बताता है जहां निचले पायदान पर खड़े लोगों के लिये समय और संवेदना दोनों नहीं है.


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