Gwalior Ki Gajak: तिल की सिकाई, गुड़ के साथ कुटाई... तब बनती है ये मिठाई, जानिए मशहूर शाही गजक का राज

Morena Ki Gajak: आज जब हजारों वैरायटी की मिठाईयां बाजार में हैं, तब भी गजक के कद्रदानों की संख्या में कोई कमी नहीं आयी बल्कि बढ़ती ही जा रही है. ग्वालियर में गजक बनाने के ऐसे ऐसे कारखाने हैं, जहां चार पीढ़ियों से केवल गजक ही बनाई जाती है. मकर संक्रांति को तिल और गुड़ से बनी गजक दान करना काफी अच्छा माना जाता है, लिहाज महज एक दिन मे ही हजारों किलो गजक बिक जाती है.

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Morena Ki Gajak: ग्वालियर चंबल की खास मिठाई

Gud Gajak: जब भी खानपान की बात होती है तब ग्वालियर की गजक (Gwalior Ki Gajak) का जिक्र न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. यह सम्भवत ऐसी मिठाई है, जिसे सर्दियों में खाने की तो वैद्य और डॉक्टर्स तक देते हैं. देश ही नहीं अब तो दुनिया भर में ग्वालियर-चंबल की गजक बड़े ही स्वाद के साथ खाई जाती है. सर्दी के दिनों में तो गजक के कारखाने में दिन-रात काम चलता है. इसके पीछे की वजह हेल्थ भी बताई जाती है. खास बात तो यह है कि मुरैना (Morena Ki Gajak) और ग्वालियर में इन दिनों क्विंटलों की तादाद में गजक बनाई जाती है. तिल और गुड़ की लेयर के ऊपर लकड़ी का हथौड़ा चलाने के दृश्य ग्वालियर और  मुरैना की गली-मोहल्लों में चल रहे गजक निर्माण के घरेलू कारखानों में ठंड के सीजन में दिखना आम बात है. इन दिनों अगर गली मोहल्ले में बने कारखाने के पास से आप गुजरेंगे तो आपको गजक कूटने की आवाज सुनाई देगी और गुड़ तिल की महक मुंह मे पानी ला देगी.

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कैसे बनती है ये खास मिठाई?

देशी गुड़ और तिल को कूट-कूटकर बड़ी मेहनत से तैयार होने वाली गजक नामक यह अनूठी मिठाई चंबल के मुरैना और ग्वालियर में ही बनती है. यहां की सैकड़ों सालों से यह मिठाई पहचान बनी हुई है. सामान्य तौर पर लोग सर्दियों में ही गजक खाते हैं और सिर्फ खाते ही नहीं, बल्कि दूसरों के स्वागत सत्कार में भी गजक भेंट करने जाते हैं.

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इस अंचल में ठण्ड बहुत पड़ती है और लोगों की धारणा है कि गुड़ और तिल के मिश्रण की काफी कुटाई के बाद बनी इस मिठाई को खाने से शरीर मे गरमाहट रहती है, जिसके चलते सर्दी जुकाम, खांसी और निमोनिया जैसी सीजनल बीमारियों से रक्षा होती है.

ऐसे बनती है यह औषधीय मिठाई गजक 

  • सबसे पहले सफेद तिल को साफ किया जाता है उसके बाद एक बड़ी कढ़ाई में भूना जाता है.
  • एक अन्य  कढ़ाई में तिल की बुनाई चलती है तो दूसरी ओर एक टीम चासनी बनाने का काम करती है.
  • गजक बनाने वाले कारीगरों का यह कहना है की सबसे बड़ी कारीगरी चासनी में ही दिखानी होती है अगर चासनी कम या ज्यादा पक जाए तो गजक ना तो खस्ता बनेगी और ना ही स्वादिष्ट.
  • चासनी बनाने के बाद उसे दीवाल में गाड़ी एक खूंटी पर पूरी ताकत से खींचा जाता है लंबे-लंबे रस्सियों जैसे तार बनाए जाते हैं.
  • जब चासनी पूरी तरह से खींचकर सफेद से गुलाबी हो जाती है तो फिर इसमें तिल मिलाने का काम किया जाता है. और तीसरी प्रक्रिया में चासनी में मिली हुई तिल को जमीन पर फैला कर कुटाई की जाती है.
कारीगर बताते है कि गजक बनाने में उन्हें काफी अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि गजक बनाने में किसी एक आदमी का काम नहीं  बल्कि पूरा टीमवर्क का काम होता है. हर एक को अपनी बारी का काम मिनटों के अंदर पूरा करना होता है, नहीं तो गजक में वह स्वाद या खस्तापन नहीं आएगा जो ग्राहक को अपनी तरफ खींचता हैं.

गजक विक्रेताओं का कहना है कि इन दिनों तिल और गुड़ से बनी गजक सर्दी लगने से बचाती है. यह शरीर में गर्माहट लाती है. बच्चों से लेकर बड़े तक गजक का सेवन करें तो सर्दी से बचा जा सकता है. यानी यह आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है. इसकी मांग विदेशों तक है. खंबे बालों का कहना है कि यह गजक पूरे देश में सबसे चौड़ी पट्टी की बनाई जाती है. ऐसी ही शहर मे अनेक प्रसिद्ध गजक की दुकाने हैं.

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